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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जेएनयू छात्र नेता कन्हैया कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए? कन्हैया के वकील राजू रामचंद्रन ने कहा - हाईकोर्ट और पटियाला हाउस कोर्ट एक ही हैक्सागन पर हैं। उन्होंने कहा कि दोनों के वकील कन्हैया का विरोध कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस सारे मामले की लगातार सुनवाई की है। ट्रायल कोर्ट में कन्हैया और वकील की हिफाजत नहीं की जा सकती। उधर, दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में साफ किया कि उन्हें अब कन्हैया कुमार के रिमांड की जरूरत नहीं है। जमानत याचिका में कन्हैया की ओर से कहा गया कि वह बेगुनाह है। पुलिस को अब हिरासत की जरूरत नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि उसके खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिले हैं। उसके खिलाफ ठोस सबूत मिलने से पहले ही गुनाहगार जैसा बर्ताव किया गया। पटियाला हाउस में उसे पीट-पीटकर मार डालने की कोशिश की गई। उसके अधिकारों का हनन किया गया। कन्हैया ने जेल में भी जान का खतरा बताया है। याचिका में यह भी लिखा गया है कि पटियाला हाउस कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सुरक्षा नहीं हो पाई। वहां उसे फेयर ट्रायल नहीं मिलेगा।

नई दिल्ली: भारत ने संसद हमला मामले में फांसी पर लटकाए गए अफजल गुरू के बारे में पाकिस्तान के बयान को लेकर उस पर पलटवार किया और कहा कि जम्मू कश्मीर एक अंदरूनी मुद्दा है और उसकी ‘‘अनावश्यक टिप्पणियां’’ अस्वीकार्य हैं । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘ जम्मू कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है । जम्मू कश्मीर के बारे में पाकिस्तान की अनावश्यक टिप्प्णी अस्वीकार्य है ।’ वह पाकिस्तानी विदेश विभाग के अपने समकक्ष मुहम्मद नफीस जकारिया के उस बयान का जिक्र कर रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था ‘कश्मीरी लोगों ने अफजल गुरू के अन्यायोचित मामले को कभी स्वीकार नहीं किया।’

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अरूणाचल प्रदेश में सरकार गठन का रास्ता वस्तुत: साफ कर दिया जब उसने यथास्थिति बरकरार रखने के अपने आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने यह आदेश गौहाटी उच्च न्यायालय के आदेश से संतुष्ट रहने के बाद दिया जिसमें कांग्रेस के 14 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के आदेश पर रोक लगा दी गई थी। न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कांग्रेस के 14 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने संबंधी रिकॉर्ड का अध्ययन करने के बाद कहा कि प्रथम दृष्टया वह हाई कोर्ट के आदेश से संतुष्ट है। पीठ में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति एनवी रमण भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘प्रथम दृष्टया हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने को हम उन्मुख नहीं हैं और हम इससे संतुष्ट हैं।

नई दिल्ली: जेएनयू विवाद से निपटने में केन्द्र के तरीके और दक्षिणपंथी ताकतों की कार्रवाई को ‘वैध’ ठहराए जाने के खिलाफ पार्टी से इस्तीफा देने वाले एबीवीपी के पदाधिकारियों ने कहा है कि भारत में तालिबान संस्कृति नहीं होनी चाहिए और कानून को अपना काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए। एबीवीपी की जेएनयू इकाई के संयुक्त सचिव प्रदीप नरवाल ने कहा ‘जेएनयू देश का सर्वाधिक राष्ट्रवादी संस्थान है। मुद्दे को लेकर सरकार के रवैये का मैं समर्थन नहीं करता।’ नरवाल ने कहा कि कन्हैया के बारे में दोष और सजा का फैसला उच्चतम न्यायालय को करने दिया जाए। कानून को अपना काम करने देना चाहिए और भारत में ‘‘तालिबान संस्कृति’’ नहीं होनी चाहिए।

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