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नई दिल्ली: जेएनयू विवाद से निपटने में केन्द्र के तरीके और दक्षिणपंथी ताकतों की कार्रवाई को ‘वैध’ ठहराए जाने के खिलाफ पार्टी से इस्तीफा देने वाले एबीवीपी के पदाधिकारियों ने कहा है कि भारत में तालिबान संस्कृति नहीं होनी चाहिए और कानून को अपना काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए। एबीवीपी की जेएनयू इकाई के संयुक्त सचिव प्रदीप नरवाल ने कहा ‘जेएनयू देश का सर्वाधिक राष्ट्रवादी संस्थान है। मुद्दे को लेकर सरकार के रवैये का मैं समर्थन नहीं करता।’ नरवाल ने कहा कि कन्हैया के बारे में दोष और सजा का फैसला उच्चतम न्यायालय को करने दिया जाए। कानून को अपना काम करने देना चाहिए और भारत में ‘‘तालिबान संस्कृति’’ नहीं होनी चाहिए।

एबीवीपी की जेएनयू इकाई के संयुक्त सचिव प्रदीप नरवाल, एबीवीपी इकाई की जेएनयू के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज (एसएसएस) के अध्यक्ष राहुल यादव और इसके सचिव अंकित हंस ने बुधवार को भाजपा की छात्र शाखा से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि वे ‘ऐसी सरकार जिसने छात्रों पर ज्यादती शुरू कर दी है के मुखपत्र बनकर नहीं रह सकते।’ उन्होंने कहा ‘हम जेएनयू के लिए लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। अगर कानून कन्हैया को दोषी पाता है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। अगर उमर खालिद दोषी है तो उसे जेल भेज देना चाहिए। लेकिन पूरे विश्वविद्यालय, छात्रों और शिक्षकों पर हमला नहीं होना चाहिए। असहमति की आवाज के लिए जगह होनी चाहिए।’ अंकित हंस ने कहा ‘मुद्दे को लेकर पार्टी के साथ हमारे वैचारिक मतभेद थे ऐसे में हमने अपने आप को अलग करने का फैसला किया। हम छात्र के रूप में विश्वविद्यालय के साथ खड़े रहना चाहते हैं, न कि एक संगठन के रूप में राजनीतिक नेताओं के साथ, जिनका रूख हमें स्वीकार्य नहीं है।’ एबीवीपी के वरिष्ठ नेता जहां यह दावा कर रहे हैं कि तीनों छात्र पार्टी के खिलाफ काम करने और मुद्दे को भटकाने के लिए किसी से ‘प्रभावित’ हुए हैं, वहीं हंस ने कहा ‘यह हमारा व्यक्तिगत फैसला है। हमने यह किसी के प्रभाव में आकर नहीं किया है।’ हाथ से लिखे त्यागपत्र में तीनों ने दावा किया था कि ‘हमें लगता है कि पूछताछ करने और विचारों को कुचलने और पूरे वामपंथ की राष्ट्र-विरोधी ब्रांडिंग करने में अंतर है। हम एक ऐसी सरकार का मुखपत्र नहीं हो सकते जिसने छात्र समुदाय पर ज्यादती शुरू कर दी है।’ पत्र में लिखा गया है ‘हर रोज हम देखते हैं कि लोग भारतीय तिरंगे के साथ मुख्य गेट पर जेएनयू छात्रों की पिटाई करने के लिए जमा होते हैं, यह गुंडागर्दी है, राष्ट्रवाद नहीं है। राष्ट्र के नाम पर आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते, गुंडागर्दी और राष्ट्रवाद के बीच अंतर है।’ हालांकि, तीनों छात्रों ने कहा कि वे कन्हैया कुमार की रिहाई की मांग को लेकर छात्रों की जारी हड़ताल में शामिल नहीं होंगे।

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