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नई दिल्ली: जानी मानी भागवत कथा वाचक और मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोरी को इन दिनों सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। बीते दिनों जया किशोरी एयरपोर्ट पर एक ब्रांडेड लग्जरी बैग के साथ स्पॉट हुईं। बैग डिओर ब्रांड का था। यूजर्स ने सोशल मीडिया पर दावा किया है कि उस बैग की कीमत 2 लाख रुपये से ज्यादा है। उसे बनाने के लिए गाय की चमड़ी का इस्तेमाल होता है। अब जया किशोरी ने अपने ब्रांडेड बैग को लेकर सफाई दी है।
मैं साधु-संत या साध्वी नहीं हूं: जया किशोरी
जया किशोरी ने कहा कि उनका बैग एक कस्टमाइज बैग है। इसमें कहीं भी लेदर का इस्तेमाल नहीं हुआ है। उन्होंने इस दौरान यह भी कहा कि वो कोई संत, साधु या साध्वी नहीं हैं। उन्होंने कभी नहीं कहा कि सब मोह माया है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक जया किशोरी ने कहा, "मेरे बैग को लेकर बहुत कंट्रोवर्सी हो रही है। मैं इसे साफ कर देना चाहती हूं। वो बैग एक कस्टमाइज बैग है। कस्टमाइज का मतलब आप अपनी मर्जी और अपने हिसाब से बैग को डिजाइन करा सकते हैं। इसमें कहीं भी लेदर का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
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मुंबई: पुणे में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट एक बार फिर विवादों के घेरे में है, क्योंकि पिछले महीने उनके अनुयायियों के एक समूह ने मुंबई के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद जेसीसी ने अपने पुराने आदेश को वापस लेते हुए ओआईएफ के आवेदन को खारिज कर दिया। जिसको ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने पहले हाई कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन अब ओआईएफ ने सुप्रीम कोर्ट से भी अपनी याचिका वापस ले ली है।
ओशो आश्रम पुणे की स्थापना से जुड़े रहे स्वामी चैतन्य कीर्ति ने 'जनादेश' को बताया कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (ओआईएफ) ने ओशो के जन्मदिन 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली है। बता दें कि ओआईएफ ने क्रॉस एग्जामिनेशन के संयुक्त चैरिटी कमिश्नर (जेसीसी) के आदेश के खिलाफ पहले हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बोम्बे हाई कोर्ट से उसकी याचिका पहले ही ख़ारिज हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जेसीसी से इस पर रिपोर्ट मांगी थी।
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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! उस दिन हमको हुज़ूर साहब के पास गए हुए फिर तीन दिन हो गए थे। सलाम करके हम बैठ गए। हमने देखा कि हुज़ूर साहब पहले से ज्यादा बीमार लग रहे थे। हमने कहा अब तो हुज़ूर साहब के दुश्मनों की तबीयत कुछ ज्यादा ही नाशाज़ लग रही है। तो हल्के से मुस्कुराए, ‘मियाँ हमारा तो कोई दुश्मन है ही नहीं हाँ इन दिनों हमारी तबियत कुछ दुरुस्त नहीं है आखिर मौत को भी तो कोई बहाना चाहिए।‘
हमने कहा हुज़ूर साहब ऐसा नहीं कहिए। महाराज जी की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है, वो भी यही कहते हैं और अब आप भी... हमारा क्या होगा? तो बोले, "देखिए मियाँ, जो रब की राह में चलते हैं उन्हें अड़चन आने पर कोई न कोई सहारा मिल ही जाता है। देखिए जिस रास्ते पर भी जब कोई चलता है, उसे उसी रास्ते के लोग सहारा देने के लिए मिल ही जाता है। जैसे कोई ताज़िर तिज़ारत शुरू करता है, तो पुराने ताज़िर उसे बताने लगते हैं कि उन्हें कैसे करना चाहिए। कोई नया क्लर्क ऑफिस में आता है, तो सीनियर क्लर्क उसे समझाने लगते हैं।"
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(सुरेन्द्र सुकुमार): असल्लाहमालेकुम दोस्तो ! अगले तीन दिन हम ख़ानक़ाह नहीं जा पाए, फिर जब गए तो हुज़ूर साहब कुछ गम्भीर मुद्रा में दिखे। सलाम करके बैठ गए। रोज की ही तरह उन्होंने ख़ादिम को आवाज़ लगाई, ‘मियाँ चाय लाइए, जनाब सुकुमार साहब तशरीफ़ फरमा हैं।' हमने चाय पी... फिर उन्होंने पान लगाया... "लीजिए नोश फ़रमाइए।" हमने सलाम करके पान मुंह में रख लिया। फिर हमने पूछा कि हुज़ूर साहब आपके दुश्मनों की तबियत कुछ नाशज़ लग रही है? तो बोले, "मियाँ हमारा तो कोई दुश्मन ही नहीं है, हाँ हमारी तबियत जरूर कुछ नाशाज़ है। लगता है कि जाने का बख़्त क़रीब आ गया है।" हमने कहा ऐसा नहीं कहिए हुज़ूर साहब। तो बोले, "जो आया है, वो तो जाएगा ही। देर सबेर से ही सही"... हाँ तो उस दिन हम हज़रत निजामुद्दीन औलिया की बात कर रहे थे।
औलिया कहा करते थे कि हज़्ज़ उम्रह से बेहतर है, ग़रीब गुरबाह की मदद करना, उन्हें खाना खिलाना, उनकी बीमारी में तीमारदारी करना, वो ऐसा करते भी थे इस वज़ह से कट्टर इस्लामी उनके बहुत से ख़िलाफ़ हो गए थे। पर इससे उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। वो मुतबातिर अपने काम में लगे रहे।
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