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"जनादेश" 11 जून को अपने सातवें साल में प्रवेश कर चुका है। पत्रकारिता ​के लिहाज से यह साल बेहद चुनौतीपूर्ण है। आज जब गोदी पत्रकारिता की बात की जा रही हो। जिसके चलते ख़बरों के तमाम माध्यम आज जब आम जनमाानस के बीच अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हों। ऐसे में पत्रकारिता का दायित्व बन जाता है कि जनमानस तक देश की वास्ताविक तस्वीर पहुंचाई जाए। उन तमाम ख़बरों को प्राथमिकता दी जाए, जिन्हें गोदी पत्रकारिता के दौर में आम जनमानस के पास तक पहुंचने से रोका जा रहा है।

"जनादेश" इस चुनावी साल में फिर दोहराना चाहता है कि वह पत्रकारिता के निर्धारित मूल्यों के लिए समर्पित है। हम आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि भविष्य में भी हम अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन ​करते रहेंगे। यह साल निश्चित रूप से पत्रकारिता के लिए चुनौतीपूर्ण है। अगले साल यानि 2019 की शुरूआत चुनावी शोरशाराबे से होनी है। लोकसभा का बजट सत्र राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा। लेकिन विधायी कामकाज होने की कोई संभावना नही है।

"जनादेश" 11 जून को अपने सातवें साल में प्रवेश करेगा। पत्रकारिता ​के लिहाज से यह साल बेहद चुनौतीपूर्ण है। आज जब गोदी पत्रकारिता की बात की जा रही हो। जिसके चलते ख़बरों के तमाम माध्यम आज जब आम जनमाानस के बीच अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हों। ऐसे में पत्रकारियता का दायित्व बन जाता है कि जनमानस तक देश की वास्ताविक तस्वीर पहुंचाई जाए। उन तमाम ख़बरों को प्राथमिकता दी जाए, जिन्हें गोदी पत्रकारियता के दौर में आम जनमानस के पास तक पहुंचाने से रोका जा रहा है। 

"जनादेश" अपने सातवें साल में प्रवेश करते हुए फिर दोहराना चाहता है कि वह पत्रकारिता के निर्धारित मूल्यों के लिए समर्पित है। हम आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि भविष्य में भी हम अपने कर्तव्य का ईमानदारी से निर्वहन ​करते रहेंगे। यह साल निश्चित रूप से पत्रकारिता के लिए चुनौतीपूर्ण है। अगले साल यानि 2019 की शुरूआत चुनावी शोरशाराबे से होनी है। लोकसभा का बजट सत्र राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होगा। लेकिन विधायी कामकाज होने की कोई संभावना नही है। बहरहाल राजनीतिक दलों ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां अभी से शुरू कर दी है।

"जनादेश" करीब सवा तीन महीने की जद्दोजेहद के बाद एक बार फिर पाठकों के बीच है। इस दौरान "जनादेश" लाइव होते हुए पाठकों को खबरें नही दे पा रहा था। दरअसल, इस साल बजट सत्र से ठीक एक दिन पहले 28 अप्रैल 2018 को दोपहर को अचानक "जनादेश" का प्रसारण बंद हो गया। इस बावत जब मैंने अपने इंजीनियर पवन यादव से संपर्क किया, तब उसने बताया कि बेव की हो​सटिंग की रिन्यू करवाने की तारीख खत्म होने के कारण प्रसारण बाधित हुआ है।

तब मैंने नाराजगी व्यक्त करते हुए पवन से कहा कि ऐसी ज़रूरी तारीख का एलर्ट आता है, तब आपने रिन्यू क्यों नही करवाई? इस पर पवन का तर्क था कि जिस मोबाइल नंबर पर यह दर्ज था, वह गुम हो गया। अब हमें उस कंपनी से अपना डेटा बेस लेना होगा। क्योंकि अब दूसरा कोई विकल्प नही था। लिहाजा मैंने पवन से कहा कि जल्द से जल्द इस काम को अंजाम दो, संसद का महत्वपूर्ण बजट सत्र चल रहा है। उसके बाद पवन यादव ने 3 फरवरी को मुझसे मेरा ईमेल आईडी और पासवर्ड मांगा, ताकि डोमिन को नई होस्टिंग में ट्रांसफर किया जा सके। मैंने उसे यह उपलब्ध करवा दिया।

पवन ने कहा कि डेटा अपलोड होने में थोड़ा समय लगेगा। पवन ने 3 फरवरी को "जनादेश" लाइव कर दिया, लेकिन उसका लोगो गायब रहा। उसके बाद पवन ने 13 फरवरी को मुझे बताया कि बेव साइट डेटा के साथ अब लाइव हो गई है और उसका पासवर्ड भी पुराना ही है। लिहाजा मैंने 13 फरवरी से बेव को अपडेट करवाना शुरू कर दिया। लेकिन 15 फरवरी को अचानक बेव की सेटिंग बिगडने लगी।

"जनादेश" ने अपने जीवन के छठे साल का सफर शुरू कर दिया है। इस यात्रा में पिछले पांच साल की "पत्रकारिता" का सफर यकायक नजर के सामने से गुजर गया। हुआा यूं कि 2012 में अचानक दस साल बाद मेरे जीवन में पहली बार इतने लंबे अरसे तक चली नौकरी पर बेरोजगारी के बादल मड़राने लगे थे। "पंजाब टूडे" यानि एसटीवी एंटरप्राइजज़ का मालिकाना हक हरियाणा के तत्तकालीन मंत्री गोपाल कांडा ने खरीद लिया था और कंपनी के हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही थी। मैं "पंजाब टूडे" के लिए आखि़री बार संसद का मॉनसून सत्र कवर कर रहा था। इसी दौरान एक दिन मेरे अनुज और इलेक्ट्रोनिक मीड़िया के बडे़ नाम वाले एक मित्र का फोन आया। उस वक्त मैं संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में था। फोन पर मित्र ने पूछा कहा हैं, मैंने उन्हें जानकारी दे दी। थोड़ी देर में मेरे वह मित्र संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में आ गये और उन्होंने मुझे बताया कि एक हिंदी न्यूज बेवसाइट शुरू होनी है। क्या आप उसको शुरू करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं। चूंकि बात हिंदी न्यूज बेवसाइट शुरू होने की थी, लिहाज़ा मना करने का कोई सवाल नही था। यू भी नई नौकरी की तलाश भी शुरू हो चुकी थी। मेरे इन मीड़िया मित्र ने इस नए प्रोजेक्ट के एवज़ में मुझे पचास हजार रूपपे की नगदी पेशगी के नाम पर दिलवा कर उस वक्त मेरी बहुत बढ़ी मदद की थी और इसके साथ ही उन्होंने ना कहने के सभी दरवाजे़ भी बंद कर दिये थे।

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