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(आशु सक्सेना): भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भले ही लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के करीब पहुंची है। लेकिन अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश ने बीजेपी को बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने से रोक दिया है। यूं प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह समेत कई प्रमुख मंत्री व नेताओं ने जीत की हैट्रिक लगाई है। लेकिन वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर घटकर 1 लाख 52 हजार 13 मतों तक सिमट गया है। यही नहीं पीएम मोदी अपने गृहराज्य गुजरात को भी इस बार पूरी तरह कांग्रेस मुक्त रखने में सफल नहीं रहे। पीएम मोदी के गृहराज्य में कांग्रेस अपनी उपस्थिति दर्ज करने में सफल रही है। पीएम मोदी को तीसरे कार्यकाल से पहले जबरदस्त झटका लगा है। उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गयी है।

पीएम मोदी अपने चुनावी भाषणों में कांग्रेस के शासन की आलोचना के अलावा किसी ना किसी मुद्दे पर सांप्रदायिक रंग जरूर देते थे। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद पीएम मोदी का कोई भी चुनावी भाषण हिंदू मुसलिम का ज़िक्र किये बगैर पूरा नहीं हुआ।

उत्तर प्रदेश पर पीएम मोदी ने पूरा ध्यान केंद्रीत किया। एक दिन में तीन तीन ज़िलों में चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इसके बावजूद अयोध्या, काशी और मथुरा वाले उत्तर प्रदेश में अपनी शिकस्त को नहीं रोक सके। इंडिया गठबंधन ने सूबे की आधे से ज्यादा लोकसभा सीटों पर विजयी पताका लहराकर पीएम मोदी के लिए जबरदस्त चुनौती खड़ी कर दी है। उत्तर प्रदेश में सपा ने सबसे अधिक 37 सीटों पर कब्जा किया है। वहीं भाजपा मात्र 33 सीटों पर सिमट गयी है। इसके अलावा कांग्रेस 6, आरएलडी 2, अपना दल एक और एक निर्दलीय सांसद ने विजय दर्ज की है। बीजेपी को इस बार सूबे में तीस सीटों का नुकसान हुआ है।

लोकसभा चुनाव नतीजों ने पीएम मोदी की मजबूत सरकार की अपील को पूरी तरह नकार दिया है। पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल का कंट्रोल सैद्धांतिक रूप से उनके धूर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनतादल (यू) और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु के हाथों में होगा। इसके अलावा चिराग पासवान के पांच सांसद हमेशा ख़तरा बने रहेंगें।

एनडीए के पास 293 सांसदों का समर्थन है। इनमें बीजेपी 240, टीडीपी 16, जेडीयू 12, एलजेपी 5, शिवसेना 7, आरएलडी 2, जेडीएस 2, एनसीपी 1, अपनादल 1 और एजेएसयू ने एक सीट जीती है। लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत होती है। अगर एनडीए में से धर्म निरपेक्ष दल बाहर निकाल जाएं, तब एनडीए बहुमत से काफी पीछे चला जाएगा। ऐसी कमजोर सरकार में क्या पीएम मोदी अपनी कार्यशैली को बरकरार रख सकेंगे। इसमेंं संदेह है।

दरअसल, आंध्र प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु 1996 में गैर कांग्रेस गैर भाजपा के मोर्चे के संयोजक थे। 1996 में त्रिशंकु ​लोकसभा में पहली बार बीजेपी 161 सांसदों वाली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी बाजपेयी को सरकार बनाने का न्यौता दिया। लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी 282 का जादुई आंकड़ा पाने में सफल नहीं हुए और 13 दिन बाद उनकी सरकार गिर गई। इस बीच जनतादल​ (46 सांसद) की अगुवाई में संयुक्त मोर्चा (यूएफ) गठित किया गया। इस मोर्चे में वामपंथी दल और क्षेत्रीय दल शामिल हुए। यूएफ के 190 सांसदों ने हस्ताक्षरयुक्त 190 सांसदों के पत्र नत्थी करके मोर्चे की सरकार बनाने का दावा पेश किया। इस मोर्चे को कांग्रेस ने अपने 139 सांसदों का समर्थन दिया था। मोर्चे ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा को अपना नेता चुना था। लिहाजा राष्ट्रपति ने एचडी देवगौड़ा को सरकार बनाने का न्यौता दिया और केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से यूएफ सरकार सत्तारूढ़ हो गयी।

संयुक्त मोर्चा के संयोजक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु थे। यूएफ की देवगौड़ा सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। दस महिने बाद कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और देवगौड़ा सरकार का पतन हो गया। उसके बाद कांग्रेस की शर्त पर पीएम का चेहरा बदलकर यूएफ ने आईके गुजराल के नेतृत्व में दूसरी सरकार गठित की। लेकिन कुछ ही महिने में जैन आयोग की रिपोर्ट में राजीव गांधी हत्याकांड़ में डीएमके की संलिप्तता के मुद्दे पर सरकार का पतन हो गया था। उसके बाद हुए मध्यावधि चुनाव में यूएफ 94 सीट पर सिमट गया। यूएफ के संयोजक एवं टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडु ने दिल्ली के आंध्र भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में लोकसभा चुनाव में हार को स्वीकार करते हुए घोषणा की कि मोर्चा संसद में विपक्ष की भूमिका निभाएगा। लेकिन हैदराबाद पहुंच कर नायडु ने अटल बिहारी बाजपेयी को समर्थन की चिठ्ठी फैक्स से राष्ट्रपति को भेज दी। जिसके बाद अन्य क्षेत्रीय दलों के समर्थन से अटल बिहारी बाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और दूसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए।

इत्तेफाक से 2024 में एक बार फिर टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडु के हाथ में केंद्र सरकार की कमान होगी। इस बार भी वह सबसे मजबूत सहयोगी है क्योंकि आंध्र प्रदेश में वह अपने बूते पर पूर्ण बहुमत की सरकार का गठन करने वाले है। वहीं केंद्र में उनकी पार्टी के 16 सांसदों के अलग होने के बाद मोदी सरकार का सिंघासन हिलने लगेगा। वहीं नायडु के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदले के बाद मोदी सरकार की विदाई का बिगुल बज जाएगा। चुंकि सरकार गिरने के बाद नयी सरकार के गठन की संभावना है, लिहाजा सांसदोंं को पाला बदलने से रोक पाना किसी आसान नहीं होगा।

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