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(आशु सक्सेना) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सपा कांग्रेस गठबंधन को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। मोदी के गठबंधन राजनीति पर निशाना साधने पर यकायक प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए विधानसभा चुनावों में दिये गये उनके पुराने चुनावी भाषण याद आ गये। मोदी ने सपा कांग्रेस गठबंधन के बाद यूपी की पहली चुनावी सभा में इस गठबंधन पर सवालिया निशान लगाया। मोदी ने कहा कि राजनीति में गठबंधन बहुत देखे हैं। लेकिन जब पिछले कुछ दशकों से जो दल एक दूसरों को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, अब एक दूसरे के गले लग गये हैं। आपको याद दिला दें कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने विधानसभाओं में अपनी छवि के बूते पर कब्जा करने की रणनीति अख्तियार की थी। महाराष्ट्र विधानसभा के वक्त मोदी ने अपने पुराने सहयोगी शिवसेना के साथ गठबंधन तोड़कर एकला चलो की नीति अपनाई थी। दरअसल यह चुनाव मोदी की लोकप्रियता का इम्तिहान था। मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में जमकर शिवसेना की आलोचना की। चुनावी सभा में मोदी ने शिवसेना को हफ्ताबसूल पार्टी करार दिया। लोकसभा चुनाव के बाद मोदी की घटती लोकप्रियता का नतीजा यह हुआ कि चुनाव नतीजे खंड़ित आये और कोई दल अपने बूते पर सरकार बनाने की स्थिति में नही था। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता मिला। उस वक्त शिवसेना ने प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका अदा की।

(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषण सुनकर अब ऐसा एहसास होता है कि वह खुद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की आलोचना कर रहे है। पंजाब विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक मोदी ने सूबे की गठबंधन सरकार के पक्ष में मतदान की अपील करते हुए अपने चित परिचित अंदाज में कांग्रेस पर निशाना साधा। अपने भाषण में मोदी ने उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन का ज़िक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस सत्ता के लिए बिन पानी की मछली की तरह तडप रही है। सत्ता की खातिर कांग्रेस किसी के साथ भी हाथ मिलाने को तैयाार है। भाजपा के स्टार प्रचारक मोदी का यह वाक्य सुनते ही एकाएक पड़ौसी राज्य जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का एक चुनावी भाषण याद आ गया। मोदी ने कहा था कि प्रदेश में बाप-बेटी की सरकार नही बनने देनी है। लेकिन प्रदेश के खंड़ित जनादेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मजबूर कर दिया कि वह बाप-बेटी से हाथ मिलाकर ही जम्मू-कश्मीर में सत्तासुख भोग सकते हैं। मोदी के चुनावी भाषणों की समीक्षा करते वक्त महाराष्ट्र का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। इस प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एकला चलो की नीति अपनाई थी। यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल था। मोदी ने अपने चुनावी भाषण में अपने पुराने सहयोगी शिवसेना पर तंज कसते हुए कहा था कि प्रदेश को हफ्ताबसूल पार्टी से भी मुक्ति दिलानी है। प्रदेश के खंड़ित जनादेश के चलते सत्ता की बागड़ोर तो भाजपा के पास आ गई। लेकिन अभूतपूर्व राजनीतिक घटनाक्रम के बाद भाजपा को उसी हफ्ताबसूल पार्टी शिवसेना के साथ सत्तासुख मिल रहा है।

(आशु सक्सेना): उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों को टिकट बंटवारे के बाद यह तय हो गया कि परिवारवाद और जातिवाद अब चुनावी मुद्दा नही है। भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने इस चुनाव जिताऊ सिद्वांत का शिद्दत से पालन किया है। लिहाजा यह तो चुनावी मुद्दा नही है। मसलन अब विकास और भ्रष्टाचार ये दो चुनावी मुद्दे बनें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार के दौरान विकास से कहीं ज्यादा ज़ोर भ्रष्टाचार पर होगा। जबकि मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ दल सपा प्रमुख अखिलेश यादव विकास को चुनावी मुद्दा बनाएंगे। दिलचस्प पहलू यह है कि राजनीति की विसात बिछने के बाद सूबे का चुनाव काफी हद तक अखिलेश बनाम मोदी बन चुका है। मोदी के लिए विधानसभा चुनाव नतीजे़ 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल है। वहीं अखिलेश के लिए यह जंग अगले आम चुनाव में उनकी भूमिका की पटकथा होगी। बहरहाल परिवारवाद और जातिवाद के चुनावी सिद्धांत का अनुसरण करने के चलते यूँ तो सभी राजनीतिक दलों को भीतरघात की बीमारी से जुझना पड़ रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा भाजपा को इस बीमारी का सामना करना पड़ रहा है। जातिगत राजनीति को दुरूस्त करने के लिए भाजपा ने दो क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन किया है। अपनादल और ओमप्रकाश राजभर की पार्टियों का जाति विशेष में जनाधार माना जाता है। अपनादल के साथ भाजपा ने लोकसभा चुनाव भी साथ लड़ा था। जबकि राजभर के साथ अभी हाल में दोस्ती की गई है।

(आशु सक्सेना): उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा इम्तिहान है। प्रधानमंत्री को अपने प्रदेश की जनता को जहां तीन साल के कामकाज का लेखाजोखा देना है। वहीं दूसरी ओर उनके सामने टिकट बंटवारे के बाद प्रदेश भाजपा में मची घमासान के चलते पार्टी के जनाधार को बचाने की चुनौती भी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश की एक चुनावी सभा में कहा था कि प्रदेश के लोगों ने पार्टी को जीता कर केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर देश की सेवा का मौका दिया है। अब सपा और बसपा की परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति को हराकर भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार देकर विकास में पिछड़ रहे प्रदेश के विकास का मौका दें। उस चुनावी रैली में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के फैसले को भी जायज ठहराया था। लिहाजा इस चुनाव के नतीजों को मोदी सरकार के कामकाज पर जनता की रायशुमारी माना जायेगा। बहरहाल प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के बाद मतों के चौतरफा विभाजन की संभावना काफी हद तक कम हुई है। अब प्रदेश में मौटेतौर त्रिकोणीय मुकाबले की तस्वीर उभरी है। प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी अपने बूते पर चुनाव मैदान में है। वहीं भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को बरकरार रखने की रणनीति को अंजाम देने में जुटी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपनादल के साथ गठबंधन करके प्रदेश की 80 सीटों में से 73 सीटों पर कब्जा किया था। भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले अप्रत्याशित सफलता मिली थी।

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