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(संदीप ठाकुर) गांवाें में जंगली जानवराें से फसल काे हाेने वाले नुकसान से बचाने के लिए किसान जाेर जाेर से टीन,टप्पर,ढाेल या नगाड़े बजाते हैं। इसके शाेर से जानवर खेताें तक नहीं पहुंच पाते हैं। वही हाल माेदी सरकार के तीन साल का है। रेडियाे,टीवी,पत्र,पत्रिकाएं व अन्य संचार माध्यमाें के जरिए प्रधानमंत्री माेदी व उनके मंत्रीगण उपलब्धियाें का ढ़िढाेरा जाेर जाेर से पीट रहे हैं आैर लाेगाें काे बता रहे हैं कि जाे काम 70 सालाें में नहीं हुआ वह 3 साल में हाे गया है। ढ़िढाेरा पीटाे अभियान ने जनता के आंखाें व मन पर एक एेसी छद्म पट्टी चढ़ा दी है कि उसे भी लगता है कि बात में ताे दम है। काम ताे हाे रहा है। विकास हाे रहा है। देश में खुशहाली आ रही है। जीवन स्तर सुधर रहा है। अच्छे जिन आने वाले हैं। लेकिन सही मायनाें में अभी तक एेसा कुछ नहीं हुआ। पिछले 10 दिनाें में मैंने करीब एक दर्जन मंत्रियाें की प्रेस कांफ्रेंस अटेंड की है। मेरा मानना है कि 3 साल की उपलब्धि के नाम पर मंत्रियाें के पास बताने काे कुछ नहीं है। अब लाख टके का सवाल है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की तीन साल की असली उपलब्धियां क्या हैं? स्कूली बच्चाें के रिजल्ट अच्छे हाे रहे हैं,खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं,इसरो के वैज्ञानिक सेटेलाइट छोड़ रहे हैं,सीमा पर सैनिक मार या मर रहे हैं, पानी-बिजली की उपलब्धता बढ़ गई है या दुकानें अधिक खुल रही हैं...क्या एेसे कामाें काे मोदी सरकार की उपलब्धि माना जा सकता हैं? दरअसल यह ताे सरकारी पॉलिसी के निरंतरता के कारण है।

पॉलिसी पिछले सरकार,उससे पिछले सरका,उससे भी पिछले सरकार की हाे सकती है। हर नई सरकार थाेड़ा आगे पीधे कर उसे ही आगे बढ़ाती है। एेसे काम पहले भी थोड़े कम या ज्यादा स्पीड से चल ही रहे थे आैर आगे भी चलते ही रहेंगे। क्या ये सरकार की उपलब्धियां हैं ? माेदी सरकार के उपलब्धियाें का आकलन स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं के आधार पर हाेना चाहिए। इन याेजनाआें से देश में क्या बदलाव आया है ? क्या मेक इन इंडिया अभियान ने भारत में निवेश बढ़ा दिया है और इससे भारत में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं? क्या स्वच्छ भारत अभियान से भारत पहले से ज्यादा साफ सुथरा हुआ है? क्या आदर्श ग्राम योजना से गांवों की स्थिति सुधरी है? क्या तीन साल में गंगा साफ हुई है? शौचालय बनाने के अभियान से क्या देश खुले में शौच की महामारी से मुक्त हो गया? सरकार की उपलब्धियों का आकलन रोजगार की उपलब्धता और महंगाई के आंकड़ों पर भी किय़ा जाना चाहिए। लेकिन एेसा हाे नहीं रहा है। दूर दराज के गांवाें की बात ताे छाेड़ दें, राजधानी दिल्ली में सैकड़ों झुग्गी बस्तियों के लोग अब भी खुले में शौच कर रहे हैं। दिल्ली के अंदर से होकर गुजरने वाली किसी भी रेल लाइन पर सुबह सबेरे हाथ में डिब्बा लिए लाेगाें की कतार देखी जा सकती है। तीन साल में देश में बेरोजगारी बढ़ी है। देश की सारी कंपनियों में छंटनी चल रही है। इन्फाेसिस हाे या एलएंडटी, टाटा समूह हो या रिलांयस व बिड़ला कंपनी सब अपने कर्मचारी कम कर रहे हैं। पिछले दिनाें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि उनकी सरकार ने स्वरोजगार के अवसर दिए हैं। कितना हास्यासपद है यह कहना। स्वरोजगार का कौन सा अवसर सरकारें देती हैं? मान लीजिए कि देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेन में भर-भर कर दिल्ली, मुंबई पहुंचने वाले लोग सड़क किनारे पानी बेचने लगते हैं, ठेला या रिक्शा चलाने लगते हैं, सब्जी या आइसक्रीम की रेहड़ी लगाने लगते हैं या छोटा मोटा कोई कारोबार करने लगते हैं तो क्या इस स्वरोजगार का श्रेय सरकार काे लेना चाहिए ? स्वराेजगार के लिए बैंकाें से लाेन जरुर दिया जाता है लेकिन लाेन लेना जितना पहले मुश्किल था उतना ही अब भी मुश्किल है। सवाल है कि जिन आठ करोड़ लोगों को स्वरोजगार के अवसर देने का दावा किया जा रहा है, उनमें से कितना रोजगार लोगों को सरकारी योजना के तहत मिला है? लेकिन प्रचार के जरिए लोगों से मान लेने के लिए कहा जा रहा है कि उनका जीवन सुधर गया है और अच्छे दिन आ गए हैं। हकीकत ठीक इसके विपरीत है। हर जगह मंदी है। प्राेपर्टी बाजार हांफ रहा है। उपभाेक्ता बाजार बुरी तरह मंदी की चपेट में है। राेजगार के अवसर सीमित हाेते जा रहे हैं। बेराेजगारी बड़े पैमाने पर बढ़ रही है। महंगाई आसमान पर है। विदेशी निवेश नहीं के बराबर है। रुपए की तुलना में डॉलर लगातार बढ़ रहा है। फिर भी यह कहा जा रहा है कि जाे 70 साल में नहीं हुआ वह 3 साल में कर दिया गया। इसे कहते हैं मीडिया की ताकत,जाे आम आदमी की धारणा बदल कर रख दे। लाेग परेशान हैं लेकिन फिर भी उन्हें मनाेवैज्ञानिक ताैर पर लगता है कि देश बदल रहा है। अधिकांश उपलब्धियां सब कुछ अच्छा होने की धारणा पर आधारित हैं। देशवासियाें काे लग रहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।

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