(आशु सक्सेना) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब अपने अंतिम पडाव पर है। अभी तक के चुनाव प्रचार और मतदान के रूख को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ये चुनाव दो चेहरों के बीच सिमट चुका है। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। वहीं दूसरी तरफ देश के सबसे बडे़ सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का चेहरा है, जो अपने कामकाज पर मतदाताओं से एक ओर मौका मांग रहा है। मेरी याददाश्त में इस पिछडे़ हुए प्रदेश में शायद यह पहला मौका है, जब सूबे के आम चुनाव में जिरह बहस विकास भी है। दरअसल संपन्न प्रदेश गुजरात से विकास पुरूष ही छवि को लेकर उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज का तुलनात्मक अध्ययन सूबे में विकास पुरूष की छवि लेकर उभर रहे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ किया जा रहा है। जहां बहुमत का यह मानना है कि विकास की दृष्टि से सूबे की बागड़ोर संभालने का अधिकार सिर्फ अखिलेश यादव के पास है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की चर्चा में शरीक होने वाले हर व्यक्ति का एक ही मत है कि पिछले तीन साल में अच्छे दिन आने की बातें सुन रहे हैं, लेकिन फिलहाल ज़मीन पर वह नज़र नही आ रहे हैं। अब सवाल यह है कि इन चर्चाओं के बीच आखिर जीत किसकी होगी। इसकी एक अहम वजह इस बार भी सूबे के जातिगत समीकरणों को बताया जा रहा है। इस चर्चा में बसपा सुप्रीमों मायावती की मौजूदगी का ज़िक्र लाजमी है।
सर्व समाज के नारे पर एक बार पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली मायावती ने इस बार दलित मुसलिम गठजोड़ का दाव खेला है। साथ ही उन्होंने उम्मीदवारों के चयन में जातिगत समीकरणों को साधने की भी कोशिश की है। मायावती यह चुनाव विशुद्ध धर्म निरपेक्षता के नारे पर लड़ रही हैं। वह चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से वादा कर रहीें हैं कि वह इस बार भाजपा से नाता जोड़ने से बेहतर विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी। तीन बार भाजपा से हाथ मिलाकर सूबेदारी हासिल करने वाली मायावती इस बार ऐसा नही करेंगी, इस सवाल को लेकर धर्म निरपेक्ष खासकर हिंदु धर्म निरपेक्ष मतदाता मायावती के साथ नज़र नही आ रहा है। हांलाकि मतदान के पांचवें चरण तक पहुंचते हुए यह चुनाव जातिवाद और सांप्रदायिकता से ओतप्रोत हो चुका है। मायावती का चुनाव प्रचार मुसलिम समुदाय को यह समझाने पर केंद्रीत है कि वह अपना मत सपा को देकर बर्बाद नही करें, वहीं भाजपा नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार हिंदु मतों के ध्रुवीकरण पर टिका हुआ है। इससे इतर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह चुनाव विकास और जन कल्याण को अहम मुद्दा बनाकर लड़ रहे हैं। वहीं अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके धर्म निरपेक्ष मतों के बिखराव को रोकने की कोशिश की है। इस गठबंधन की विधिवत घोषणा के बाद पहली बार चुनावी रैली को मेरठ में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गठबंधन को निशाना बनाया और उन्होंने इस गठबंधन को दो भ्रष्ट कुनबों का गठजोड़ करार दिया। इसके जबाव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे युवाओं का गठजोड़ प्रचारित किया। दिलचस्प पहलू यह है कि जहां प्रधानमंत्री नोदी अपनी उपलब्धियां गिनाने में रक्षात्मक नज़र आ रहे हैं, वहीं अखिलेश यादव अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगातार आक्रामक होते जा रहे हैं। वह प्रधानमंत्री मोदी को विकास के मुद्दे पर बहस की चुनौती दे रहे हैं। इस बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में एक बात साफ नज़र आ रही है कि विकास के मुद्दे पर अखिलेश यादव मतदाताओं की पहली पसंद हैं। वहीं सूबे के परिपेक्ष्य में नरेंद्र मोदी मतदाताओं के लिए एक सवालिया निशान हैं। मोदी इसी सूबे से अपार जन समर्थन हासिल करके केंद्र की सत्ता पर बहुमत से काबिज हुए हैं। मतदाता मोदी से अपने वोट का हिसाब मांग रहा है। अच्छे दिन की आस में भाजपा के मोदी को मत देने वाले को मंहगाई की मार पहले से ज्यादा झेलनी पड़ी। रोजगार के अवसर सृजित होने के बजाय कम हुए हैं। मोदी की उपलब्धी स्वच्छ भारत अभियान को माना जा सकता है। इस अभियान को कामयाब बनाने के लिए केंद्र सरकार जबरदस्त प्रचार कर रही है। इसके प्रचार पर काफी खर्च किया जा रहा है। इस अभियान की कामयाबी के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने आधा प्रतिशत कर भी अनिवार्य कर दिया है। जो अप्रत्यक्ष कर के तौर पर देश के हर व्यक्ति से बसूला जा रहा है। बहरहाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांचवें चरण के मतदान की पूर्व संध्या पर अपने पांच साल का लेखाजोखा पेश करते हुए कहा कि लोहिया जी कहते थे कि ज़िंदा कौमे पांच साल का इंतजार नही करती हैं। संभवतः यह तंज अखिलेश ने मोदी पर उनके इस बयान पर किया हो कि अखिलेश ने कांग्रेस से गठजोड़ करके लोहिया जी का अपमान किया है। जहां तक मेरी जानकारी है लोहिया जी ने कभी कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना नही की थी। हां वह कांग्रेस को विपक्ष में ज़रूर देखना चाहते थे। उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे क्या होंगे यह तो 11 मार्च को होली से एक दिन पहले ही तय होगा। लेकिन इस वक्त के आंकलन तक अखिलेश यादव इस चुनावी दौड़ में आगे दिख रहे हैं। क्योंकि मुद्दों की राजनीति में अखिलेश यादव भविष्य की बात कर रहे हैं, वहीं मोदी शमशान और कब्रिस्तान की बात तक सीमित नज़र आ रहे हैं।