(आशु सक्सेना): महाराष्ट्र और झारखंड़ विधानसभा चुनाव अब अपने अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर है। देश में करीब एक सप्ताह तक चलने वाले दीपावली पर्व के दौरान 4 नवंबर को नाम वापसी की अंतिम तारीख के बाद यह तय हो जाएगा कि दोनों ही राज्यों में दोनों ही गठबंधन एकजुट होकर चुनाव मैदान में हैं या फिर घटक दल मतभेदों के चलते कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबले के लिए चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को चुनाव नतीजों के बाद यह तय हो जाएगा कि जनता ने किस गठबंधन के पक्ष में जनादेश दिया है।
लोकसभा चुनाव के बाद अब तक दो राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं। हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है। वहीं केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव में 'इंडिया' गठबंधन ने जीत का परचम लहराया है। 2019 तक हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव साथ-साथ हुआ करते थे। लेकिन 2024 में चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र चुनाव नहीं करवाया। लिहाजा दो राज्यों के चुनाव नतीज़ों के बाद महाराष्ट्र और झारखंड़ विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी। जो अब 23 नवंबर तक संपन्न हो जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद लगातार तीसरी बार पद की शपथ लेने मे सफल रहे हैं। लेकिन यह पहला मौका है, जब वह बीजेपी के बहुमत वाले पीएम नहीं है, बल्कि एनडीए के प्रधानमंत्री है। यह तथ्य इस बात का साफ संकेत देते है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता में काफी गिरावट आयी है। पीएम मोदी वाराणसी लोकसभा से मात्र एक लाख 52 हजार और 512 मतों से जीत दर्ज कर सके। जबकि 2019 के चुनाव में यह अंतराल करीब छह लाख था।
जाहिर है महाराष्ट्र और झारखंड़ विधानसभा चुनाव के नतीज़ों के बाद पीएम मोदी की लोकप्रियता को लेकर नये सिरे से आंकलन होगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) इन चुनाव नतीज़ों के बाद क्या रूख अख्तियार करता है, उस पर पीएम मोदी की कुर्सी की स्थिरता तय होगी। दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा का अंकगणित गडबड़ा सकता है। इस वक्त शिवसेना (शिंदे गुट) के सात और एनसीपी (अजित पवार) का एक सांसद है। विधानसभा चुनाव के बाद इन सांसदों के पाला बदलने की संभावना बन सकती है। फिलहाल लोकसभा में एनडीए के पक्ष में 293 सांसदों का समर्थन हैं, जो बहुमत के जादुई आंकड़े से बीस अधिक है।
इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आरएसएस की स्थापना के सौवें साल के दौरान हो रहे है। ब्रिटिश भारत के दौरान 27 सितंबर 1925 को महाराष्ट्र के नागपुर में इस गैर राजनैतिक संठगन की स्थापना हुई थी। स्थापना के सौंवे साल तक आरएसएस इस सूबे में अपने अस्तित्व की तलाश कर रहा है। जाहिर है, वर्तमान विधानसभा चुनाव में वह जीतने के लिए शिवसेना में विभाजन का फायदा उठाने की जुगत में है, लेकिन लोकसभा चुनाव नतीज़ों के बाद यह लगभग तय सा माना जा रहा है कि महाराष्ट्र से महायुति यानि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार की विदाई हो रही है। हकीकत तो 23 नवंबर को सामने आएगी।
महाराष्ट्र और झारखंड़ विधानसभा चुनाव के नतीज़े अगर केंद्र की सत्ता पर काबिज एनडीए के विपरित हुए, तो घटक दलों के रूख में भी तब्दीली की संभावना बन जाएगी। ऐसे में आरएसएस अपने सौंवे साल के दौरान केंद्र की सत्ता पर कब्ज़ा बरकरार रखने के लिए पीएम मोदी के चेहरे को बदलने की दिशा में प्रयास शुरू कर सकती है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के गठन में इस बार आरएसएस का दबाव साफ नज़र आया। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पीएम मोदी के बीच तनाव किसी से छिपा नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान के बयान इस हकीकत के प्रमाण हैं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गयी है। उम्रदराज नीतिन गडकरी और राजनाथ सिंह का पद पर बना रहना भी पीएम मोदी की कार्यशैली के विपरित है।