(पुष्प रंजन): जब आप बहत्तर छेद ढूंढ निकालने में लग जाएँ, तो भारत रत्न सम्मान में छेद ही छेद दिखने लगेंगे। पहला पुरस्कार से ही सवाल उठने आरम्भ हो जायेंगे कि वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत रत्न क्यों दिया? क्योंकि वो ब्राह्मण थे, या कि वो गांधीजी के समधी थे? राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह, गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था। फिर आप ढूंढने लग जायेंगे कि अबतक जिन 53 लोगों को भारत रत्न पुरस्कार दिया गया, उनमें दलित-पिछड़े-मुसलमान कितने थे? किसी भी पुरस्कार का सफ़ेद-स्याह पक्ष दोनों होता है। पैंडोरा बॉक्स खोलेंगे, उसके पीछे की कहानी उधेड़ेंगे, रुई वातावरण में उड़-उड़कर इतना फ़ैल जायेगा कि समेटना मुश्किल होगा।
भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सम्मानों में शीर्ष पर है, भारत रत्न। उसकी कड़ी में क्रमशः पद्म विभूषण, पद्म भूषण, और पद्मश्री हैं। कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा, और खेल में जिनका अभूतपूर्व योगदान रहा है, वो इसके पात्र हैं। इस सम्मान की शुरुआत 2 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई थी।
प्रारम्भ में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, यह प्रावधान 1955 में जोड़ा गया।
सचिन तेंदुलकर एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिनको भारत रत्न प्राप्त हुआ है। सचिन, भारत रत्न प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति भी हैं। एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिये जाने की परिपाटी चली आ रही थी। लेकिन, वर्ष 2024 में 5 लोगों को भारत रत्न देने की घोषणा की गयी- कर्पूरी ठाकुर, चौधरी चरण सिंह, पी.वी. नरसिम्हा राव, एम. एस. स्वामीनाथन (चारों मरणोपरांत)। भारत रत्न सम्मान पाने वाले पांचवे एकलौते जीवित व्यक्ति हैं, लालकृष्ण आडवाणी।
आमतौर पर भारत में जन्मे नागरिकों को ही भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है, लेकिन मदर टेरेसा, दो और गैर-भारतीयों, पेशावर में जन्में ख़ानअब्दुल गफ्फार ख़ान और दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला को भारत रत्न प्रदान किया गया है। किसी को आपत्ति न हो, तो लाल कृष्ण आडवाणी तीसरे व्यक्ति हो सकते हैं। लालकृष्ण आडवाणी का जन्म आठ नवंबर, 1927 को सिन्ध प्रान्त के कराची में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
भारत रत्न देते वक़्त बहस और विवाद का पुराना सिलसिला रहा है। आम्बेडकर और पटेल को भारत रत्न देर से देने का सवाल उठता रहा, लेकिन संसद के पटल पर यह सवाल नहीं उठता कि महात्मा गांधी को भारत रत्न पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया? 2012 में कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें अदालत से गृह मंत्रालय को महात्मा गांधी को भारत रत्न देने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। 27 जनवरी 2014 को आरटीआई से जानकारी मिली कि गांधी को भारत रत्न देने की सिफ़ारिशें, पहले भी कई बार प्राप्त हुई हैं। कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह विषय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया के लिए उपयुक्त नहीं है। सम्मान किसे देना है, यह शासन के विवेक पर निर्भर है।
इससे पहले 2008 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के लिए भारत रत्न की मांग कर दी थी। लेकिन ज्योति बसु ने खुद कहा कि अगर उन्हें यह सम्मान दिया भी जाता है, तो वे इसे लेने से मना कर देंगे। इसी तरह की मांग तेलुगु देशम पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, और शिरोमणि अकाली दल ने अपने-अपने नेताओं एन. टी. रामाराव, कांशी राम और प्रकाश सिंह बादल के लिए की थी। सितंबर 2015 में शिवसेना ने विनायक दामोदर सावरकर के लिए भारत रत्न की मांग करते हुए कहा कि उन्हें "पिछली सरकारों द्वारा जानबूझकर उपेक्षित किया गया था", लेकिन सावरकर परिवार ने स्पष्ट किया कि उन्हें मान्यता के लिए पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है।
2019 में भूपेन हज़ारिका को जब भारत रत्न दिया गया, अमेरिका में रहने वाले उनके बेटे तेज हजारिका ने एक ईमेल के ज़रिये उसका विरोध करते हुए लिखा, “भारत रत्न, हालांकि जरूरी हैं, लेकिन नागरिकता विधेयक मेरे पिता के स्वभाव के बिल्कुल विपरीत है।” 1977 में के. कामराज को मरणोपरांत भारत रत्न देने के फैसले के हवाले से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आरोप लगा कि 1977 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को खुश करना इसका मकसद था। 1988 में भी वही हुआ, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. जी. रामचंद्रन को मरणोपरांत पुरस्कार प्रदान करने के फैसले की आलोचना की गई थी, बताया गया कि इसका मक़सद 1989 में तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले मतदाताओं को प्रभावित करना था।
1991 में, सरदार पटेल को भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा हुई, तब सवाल उठा कि पटेल की मृत्यु के पचास साल बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव को उनकी याद क्यों आई? 23 जनवरी 1992 को सुभाष चंद्र बोस को मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार देने के फैसले को एक जनहित याचिका में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने बोस का मरणोपरांत उल्लेख पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह "हास्यास्पद" है, क्योंकि सरकार ने 18 अगस्त 1945 को उनकी मृत्यु को आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया था। याचिकाकर्ता ने 1956 की शाह नवाज समिति और 1970 के खोसला आयोग द्वारा एकत्र की गई जानकारी के आधार पर 18 अगस्त 1945 से आज तक बोस के ठिकाने की जानकारी मांगी थी। आख़िरकार, 1997 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद यह पुरस्कार रद्द कर दिया गया था।
नवंबर 2013 में, जब सी.एन.आर. राव और सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई, तो पुरस्कारों को चुनौती देते हुए कई मुकदमे दायर किए गए। चुनाव आयोग में तेंदुलकर के खिलाफ शिकायत दर्ज़ कराई गई कि उन्हें पुरस्कार देना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है, क्योंकि इससे उन पांच राज्यों के मतदाताओं को प्रभावित करने की मंशा सत्ता पक्ष की रही है, जहां उस समय चुनाव चल रहे थे। 4 दिसंबर 2013 को, चुनाव आयोग ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि गैर-मतदान वाले राज्यों के लोगों को पुरस्कार देना आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है।
तेंदुलकर को पुरस्कार दिए जाने के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और खेल मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह के खिलाफ एक और मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद को "नजरअंदाज करने की साजिश" का आरोप लगाया गया था। बाद में कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया।
यों, पुरस्कार देने की आलोचना से पीएम मोदी भी बच नहीं पाए। 2015 में उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों के समय मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने की जब घोषणा हुई, तो लोग इसके उद्देश्यों पर सवाल करने लगे। 2024 में एक के बाद एक 5 भारत रत्न पुरस्कार दिए जाने की भी ज़ेरे तनक़ीद की गई। आलोचकों का तर्क था कि यह सब 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। बिहार में पिछड़ों के वोट चाहिए था, तो कर्पूरी ठाकुर की छवि का इस्तेमाल किया गया। कुछ समाचारपत्रों ने सवाल भी किया कि भाजपा को लालकृष्ण आडवाणी की याद इस समय क्यों आई? मंदिर और मंडल के इर्द-गिर्द भारत रत्न पुरस्कार घूमता रहा। सोशल मीडिया पर लोग भारत रत्न सम्मान को राजनीतिक चतुराई के नुक्ते नज़र से देख रहे थे।
अब तक भारत के आठ प्रधानमंत्रियों ने भारत रत्न पुरस्कार प्राप्त किये हैं। पद पर रहते सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू (1955), 1966 में लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरांत), श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी पद पर रहते 1971 में भारत रत्न लिया था। राजीव गांधी को 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से नवाज़ा गया। मोरारजी देसाई (1991), गुलज़ारीलाल नंदा (1997), 2015 में अटल बिहारी वाजपेयी और 2024 में पीवी नरसिम्हा राव। सभी छह पूर्व प्रधानमंत्री मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित हुए थे। ठीक से देखा जाय, तो पीएम की कुर्सी पर रहते केवल दो, नेहरू और इंदिरा गांधी ने भारत रत्न पुरस्कार लिया था।
अब सवाल यह है कि पीएम मोदी को क्यों नहीं भारत रत्न मिलना चाहिए? 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट पर चर्चा में भाग लेते वक्त भारतीय जनता पार्टी के सांसद गुमान सिंह डामोर ने लोकसभा में मांग की थी कि पीएम मोदी को “भारत रत्न” मिलना चाहिए। पीएम मोदी ने अपने जीवनकाल में जितने उल्लेखनीय कार्य किये, ख़ुद ही जब राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बखान करते हैं, कुछ घंटे कम पड़ जाते हैं। दुनिया के 20 से अधिक मुल्कों ने पीएम मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है, लेकिन वो ख़ुद के देश में सर्वोच्च सम्मान से वंचित क्यों हैं? क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरफ से कोई अदृश्य बाधा है?
दो दशकों के कालखंड में पीएम मोदी की छवि 'एंटी मुस्लिम' वाली बनी है। मगर, सवाल उठता है, मुस्लिम मुल्कों ने ऐसी शख्सियत को सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्यों दिया? 3 अप्रैल 2016 को सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पीएम मोदी को मिला था। 4 जून 2016 को अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान। 10 फरवरी 2018 को रामल्ला में फिलिस्तीन का सर्वोच्च नागरिक सम्मान। 8 जून 2019 को मालदीव का सर्वोच्च नागरिक सम्मान। 24 अगस्त 2019 को संयुक्त अरब अमीरात का सर्वोच्च नागरिक सम्मान। 24 अगस्त 2019 को बहरीन का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान। ये चंद उदाहरण हैं। मोदी को ट्रम्प ने भी 21 दिसंबर 2020 को 'लीजन ऑफ मेरिट' का सम्मान दिया था, और पुतिन ने इसी साल रूस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 'ग्रैंड क्रॉस विद कॉलर' दिया है। एक साथ दो विपरीत ध्रुवों पर बैठे देशों से पुरस्कार लेना कोई मामूली बात नहीं। कई सारे अफ़्रीकी और तीसरी दुनिया के देश इस सूची में रह गए। आप सम्मान देखते-पढ़ते थक जायेंगे।
पीएम मोदी को भारत रत्न देने में देर नहीं होनी चाहिए। जब अपने जीवन काल में नेहरू-इंदिरा भारत रत्न सम्मान ले सकते हैं, तो मोदी क्यों नहीं? देश के चौथे भारतरत्न चर्चित दार्शनिक, डॉ. भगवानदास के अमूर्त शब्दों का स्मरण कीजिये, "अहं एतत् न' (मैं-यह-नहीं)। यह एक ऐसा महावाक्य है कि यदि इसके तीनों शब्दों के अर्थ एक साथ लिए जाएँ, तो केवल एक एकाकार, एक रस, अखंड, निष्क्रिय, संवित् दीखते हैं। "मैं' और "यह', दोनों इसमें मौजूद हैं। मोदी, "मैं" भी हैं, और "यह" भी। यह पुरस्कार पीएम मोदी के बिना अधूरा रहेगा!
(फेसबुक पर साझा किए गये 'दैनिक सर्वोदय' का आलेख साभार)