(आशु सक्सेना): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनसभाओं को संबोधित करते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के 25 साल के कुशासन के खिलाफ मतदान की अपील की है। साथ मतदाताओं को आश्वस्त किया कि दिल्ली में डबल इंजन की सरकार 'मोदी की गारंटी' को लागू करेगी।
5 फरवरी को दिल्ली में विकास का नया बसंत आने वाला है: पीएम मोदी
बसंत पंचमी वाले दिन अपनी आखिरी जनसभा में पीएम मोदी ने कहा कि "बसंत पंचमी के साथ ही मौसम बदलना शुरू हो जाता है। तीन दिन बाद 5 फरवरी को दिल्ली में विकास का नया बसंत आने वाला है। इस बार दिल्ली में बीजेपी सरकार बनने जा रही है। इस बार पूरी दिल्ली कह रही है, अबकी बार बीजेपी सरकार!"
सवाल यह है कि यह घोषणा पीएम मोदी ने किस खुफिया जानकारी के आधार पर की है। इसका खुलासा करना, तो संभव नहीं है। लेकिन पीएम मोदी के इस आशावाद पर दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास पर निगाह डालना ज़रूरी है, ताकि यह निष्कर्ष निकल सके कि पीएम मोदी हवा मेंं नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर बोल रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव 1952 मेंं हुआ था। लेकिन उसके बाद यह बंद हो गया। 1993 में पीवी नरसिंह राव सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनाव करवाने का फैसला किया। पहला चुनाव बीजेपी ने जीता और मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन पांच साल के दौरान दिल्ली में दो सीएम बदले गये। खुराना की जगह जग प्रवेश को सीएम बनाया गया। लेकिन चुनाव से ठीक पहले बीजेपी की तेजतर्रार नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा।
कांग्रेस ने 15 साल शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली पर राज किया
इस चुनाव में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में बहुमत हासिल किया और 15 साल तक मख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। 2012 के चुनाव में दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना आंदोलन के बाद अस्तित्व में आयी आम आदमी पार्टी ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। 2013 के विधानसभा चुनाव में आप ने 70 सीटों के सदन में 29 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि बीजेपी 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। लेकिन बहुमत से चार सीट पीछे थी। सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस मात्र आठ सीट पर सिमट गयी। आपको याद दिला दें कि इस विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने बीजेपी के भावी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रचार किया था।
दिल्ली विधानसभा के खंडित जनादेश के बाद कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से रोकने की मुहिम के तहत आम आदमी पार्टी को अपने आठ विधायकों के बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी। जिसके चलते आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पहली बार कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन 49 दिन बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की घोषणा कर दी। नतीजतन, विधानसभा को निलंबित करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।र्र्
राष्ट्रपति शासन के दौरान हुए चुनाव में पीएम मोदी को लगा झटका
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार केंद्र में पूर्ण बहुमत हासिल किया और नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बने। पीएम मोदी ने करीब एक साल के राष्ट्रपति शासन के दौरान दिल्ली को नेतृत्व किया और राष्ट्रपति शासन के दौरान हुए विधानसभा चुनाव में कहा कि दिल्ली मिनी इंडिया है और यहां का संदेश पूरे देश में जाता है। अपनी चुनावी सभाओं में पीएम मोदी आम आदमी पार्टी को नज़रअंदाज करते हुए कांग्रेस पर आक्रामक रहे। कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम के तहत वह अपनी हर जनसभा में यह जानकारी देना नहीं भूलते थे कि 60 साल तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस पार्टी लोकसभा में इतने सदस्यों को जीताने में कामयाब नहीं हुई है कि वह नेता प्रतिपक्ष के पद का दावा कर सके। दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी में पीएम मोदी के खिलाफ ताल ठौकी थी। हालांकि उन्हें काफी बड़े अंतराल से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन अपने तीसरे कार्यकाल में पीएम मोदी ने दिल्ली मेंं पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोला है। हार जीत का फैसला आठ फरवरी को चुनाव नतीजों के बाद ही होगा।
बहरहाल, जब 2015 का जनादेश सामने आया, वह चौंकाने वाला था। विधानसभा में 32 सदस्यों वाली बीजेपी सिमट कर तीन सदस्यों तक पहुंच गयी थी। इत्तफाक से विधानसभा में बीजेपी दस प्रतिशत सदस्योंं की जीत वाला नियम पूरा करने की स्थिति में नहीं थी। लेकिन केजरीवाल ने बीजेपी को नेता विपक्ष का पद दिया था।
इस पराजय के बाद पीएम मोदी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में एक भी जनसभा को संबोधित नहीं किया। दिल्ली से जुड़े कुछ कार्यक्रमों को पीएम निवास तक सीमित रखा गया। इस चुनाव में भी आप ने अपने प्रदर्शन को जारी रखा और 70 में से 63 सीटों पर जीत दर्ज की। हां बीजेपी ज़रूर नेता प्रतिपक्ष की दावेदारी लायक सात सीट जीतने में सफल रही थी। यह चुनाव पीएम मोदी ने बीजेपी के सहयोगी जेडीयू और लोजपा के साथ चुनावी गठबंधन के तहत लड़ा था।
पीएम मोदी ने 2025 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर सक्रिय भूमिका अदा करने का फैसला किया है। पीएम मोदी ने ना सिर्फ कई जनसभाओं को संबोधित किया है, बल्कि बीजेपी के चुनाव प्रचार में भी दिल्ली वालों को मोदी की गारंटी की याद दिलायी जा रही है। विधानसभा चुनाव नतीजा 8 फरवरी को आएगा। तभी पीएम मोदी के दावे की हकीकत सामने आएगी। लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य मेंं स्थिति पीएम मोदी के दावे के उलट है। लोकसभा में बीजेपी बहुमत खो चुकी है। यह पहला मौका है, जब पीएम मोदी की कुर्सी घटक दलों के समर्थन तक सुरक्षित है। इतना ही नहीं पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट का आलम यह है कि वाराणसी संसदीय क्षेत्र में उनकी जीत का आंकड़ा 1,52,515 मतों (एक लाख बाव्वन हजार पांच सौ पंद्रह मत) तक सिमट गया है।