(आशु सक्सेना) उत्तर विधानसभा चुनाव साल 2002 से सूबे में भारतीय जनता पार्टी का वनवास चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में चुनाव प्रचार के शुरूआती दौर में एलान किया था कि यह चुनाव 14 साल स ेचल रहे भाजपा के वनवास को खत्म करेगा। दरअसल यह साल भाजपा के लिए दो तरफा मुसीबत लेकर आई थी। एक तरफ केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद काशी, मथुरा और अयोध्या वाले प्रदेश से भाजपा की विदाई हुई। वहीं भाजपा शासित गुजरात अचानक दंगे भड़क गये और यह सूबा अंतर राष्ट्रीय ख़बरों की सुर्खियां बन गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सूबे के मुख्यमंत्री होने के नाते इस घटना के बाद पहली बार विश्व स्तर पर चर्चा का मुद्दा बने थे। बहरहाल भाजपा अब पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज है और वह उत्तर प्रदेश में मोदी के करिश्में के बूते पर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। निसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करिश्माई व्यक्ति हैं। संपन्न प्रदेश गुजरात की लगातार 12 साल सेवा करने के बाद उन्होंने अपने करिश्में के बूते ही देश की सेवा का दायित्व हासिल किया है। भाजपा के इतिहास में मोदी संभवतः पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही ख़ुद को देश का अगला प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करवा दिया। उनकी इस दावेदारी पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान मोहर लगा दी।
सुषमा स्वराज ने कहा था कि मोदी एक कुशल प्रशासक है, लिहाजा वह प्रधानमंत्री के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं। ऐसे चुनाव प्रचार के बावजूद विकास पुरूष वाले मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन नही दोहराया पाये। इस चुनाव में उन्हें 2007 के चुनाव के मुकाबले दो सीट का नुकसान हुआ था। जबकि 2007 में भाजपा की दस सीट कम हुई थी। इसके बावजूद मोदी अपने करिश्में के बूते पर पार्टी में यह दबाव बनाने में कामयाब रहे कि 2014 का लोकसभा चुनाव उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री प्रत्याशी बना कर लड़ा जाए। आरएसएस नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनाने के पक्ष में थी। इसकी अहम वजह थी गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए विकास पुरूष के साथ ही मोदी की छवि आक्रामक हिंदु नेता और वक्ता के रूप में उभरी थी। इसको मोदी का चमात्कार ही कहा जाएगा कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए तीन विधानसभा चुनाव लडे और उनकी जीत का आंकड़ा लगातार घटा। इसके बावजूद प्रधानमंत्री प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने अपनी लोकप्रियता उस हद तक पहुंचाई कि भाजपा को पहली बार पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला। यह मौका उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार से पार्टी को मिले अप्रत्याशित समर्थन के चलते मिला था। मोदी उत्तर प्रदेश की धार्मिक पर्यटन नगरी वाराणसी से सांसद हैं। इस सूबे में मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार बाजपेयी के नेतृत्व के वक्त से बेहतर प्रदर्शन किया। लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा और उसके घटक अपनादल को 73 सीट पर जीत मिली। अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी लोकप्रियता के बूते पर क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा की 15 साल बाद सत्ता में वापसी करवाने में सफल रहेंगे। क्या आज भी मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। दरअसल 2014 में मोदी की लोकप्रियता चरम पर इसलिए नही थी कि वह आक्रामक हिंदु नेता है। उनकी लोकप्रियता का कारण यह था कि लोग विकास पुरूष की छवि वाले इस नेता से अच्छे दिन की उम्मीद कर रहे थे। मोदी के भाषण और चुनाव नारों से लोग खासकर युवा इतने प्रभावित थे कि एक शब्द भी उनके खिलाफ सुनना पसंद नही करते थे। लेकिन आज लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन साल के कामकाज का आंकलन कर रहे हैं। निसंदेह युवाओं में भी मोदी के प्रति वह जोश नजर नही आ रहा है, जो 2014 में दिखा था। यह मोदी सरकार की असफता ही कही जाएगी कि विधानसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में लोगों को सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए पूरे मंत्रिमंड़ल को पहुंचना पड़ा और अलग अलग वर्ग के लोगों को भविष्य में होने वाले लाभ को समझाना पड़ा। इन हालातों में सूबे में भाजपा की राह आसान प्रतीत नही होती है। गुजरात से विकास पुरूष की छवि लेकर उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदु मतों के धुव्रीकरण की रणनीति अपनानी पड़ी। मोदी चुनाव प्रचार के दौरान जहां ज़मीन पर उतरी अपनी किसी भी उपलब्धी को गिनाने में रक्षात्मक रहे, वहीं शमशान और कब्रिस्तान का मुद्दा छेड़कर उन्होंने चुनाव को सांप्रदायिक रंग दे दिया है। वहीं दूसरी तरफ गरीब सूबे में विकास पुरूष की छवि लेकर उभर रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का चुनाव प्रचार प्रदेश के विकास पर फोकस है। मोदी उनके खिलाफ कांग्रेस से गठबंधन और गुुंडाराज को चुनावी मुद्दा बनाए हुए है। इसके जबाव में वह बेहद शालीनता से कहते हैं मोदी बहुत विदेश गये, लेकिन हमारे लिए क्या लाये। बताओ क्या कुछ लाए। उनसे अच्छे तो हम है हमने अधिकारियों को भेजकर एक ऐसी तकनीक हासिल की है। जिससे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। अब पुलिस आपके द्वार पर पहुंचेगी। गठबंधन को वह युवाओं का गठबंधन करार देकर युवाओं को आकर्षित करते है। वहीं युवाओं में मोदी का आकर्षण कम रहा है। इस सूबे में आखिरी बार 2002 में खंड़ित जनादेश आया था। उसके बाद हुए दो चुनाव में सूबे के मतदाताओं ने जिस भी दल को चुना है, उसे पूर्ण बहुमत दिया है। 27 फरबरी 2002 को गौधरा कांड़ के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने की सफल यात्रा की है। सवाल यह है कि 8 मार्च 2002 को उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदख होने वाली भाजपा को क्या वह अपनी लोकप्रियता के बूते पर बहुमत के आंकड़े तक पहुंचा देंगे या फिर यह प्रदेश फिर खंड़ित जनादेश की ओर लौट जाएगा। पूर्ण बहुमत की बारी, इस बार भाजपा की है। अगर इसके विपरित अखिलेश यादव सत्ता में लौटे, तो यह इस प्रदेश के लिए इतिहास होगा क्योंकि आज़ादी के बाद अभी तक किसी भी मुख्यमंत्री ने पांच साल का कार्यकाल पूरा करके दोबारा मुकुट हासिल नही किया है।