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पर्यावरण निधि के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

(पुष्प रंजन): 9 नवम्बर 2016 को आपदा प्रबंधन पर प्रधानमंत्री का 10 सूत्रीय एजेंडा जारी किया गया था। उन दस सूत्रों में दो अहम् थे- पहला आपदा प्रबंधन की दक्षता को बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी का फायदा उठाया जाए। दूसरा, किसी भी आपदा से सीखने का मौका नहीं गंवाना चाहिए। तेलंगाना के श्रीसैलम में निर्माणाधीन सुरंग की छत का हिस्सा ढहने के बाद जो कुछ हुआ, क्या उससे देश के प्रधानमंत्री वाकिफ हैं? क्या उन्हें सेठ जी के प्राइवेट पशुशाला का उद्घाटन करने, व्याघ्र शावकों से खेलने, उन्हें दूध पिलाने और उत्तरखंड में मंदिर दर्शन करना ज़्यादा ज़रूरी लगता है? 13 दिन हो गए इस हादसे के, सारे प्रयास और उपलब्ध तकनीक विफल साबित हुए।

तेलंगाना के श्रीसैलम सुरंग में जिन लोगों के मारे जाने की आशंका है, उनकी पहचान रॉबिंस टनल बोरिंग मशीन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के सनी सिंह और गुरप्रीत सिंह तथा जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के मनोज कुमार, श्रीनिवास, संदीप साहू, संतोष साहू, अनुज साहू और जगत खेस के रूप में हुई है। चार साल पहले रिपोर्ट आई थी कि यह जगह सुरंग खोदने के योग्य नहीं है। उसे अनदेखा कर, सुरंग की ड्रिलिंग शुरू हुई।

पहले भी हुई हैं सुरंग निर्माण के समय दुर्घटनाएं

उससे पहले भी सुरंग निर्माण के समय दुर्घटनाएं हुई हैं। हमने उससे क्या सबक लिया? नवंबर 2023 में उत्तरकाशी का सिलक्यारा सुरंग हादसा हुआ था, वहां निर्माणाधीन इस सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था, जिससे 41 मज़दूर 17 दिनों तक अंदर फंसे रहे थे। जब वो बच के निकले पूजा-पाठ, मंदिर स्थापना का ढोल पीटने में सरकार व्यस्त दिखी। बजाय सबक लेने के, ताकि आगे इसकी पुनरावृत्ति न हो।

उससे पहले, मई 2022 में जम्मू-कश्मीर के रामबन ज़िले में एक सुरंग के ढहने से 10 मज़दूरों की जान चली गई थी। उससे पहले पटना का मेट्रो टनल हादसा हुआ था, जिसमें दो मज़दूरों की मौत हो गई थी। सवाल यह है, 9 नवम्बर 2016 को आपदा प्रबंधन पर जो ज्ञान आदरणीय मोदीजी ने दिया था, उसका पालन क्यों नहीं हुआ?

तेलंगाना के श्रीसैलम में निर्माणाधीन सुरंग बचाव अभियान में शामिल एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, "छत फॉल्ट जोन के आसपास तीन मीटर तक धंस गई।" बचाव अभियान को बीच-बीच में रोकना पड़ा क्योंकि सुरंग में पानी भरता रहता है। अधिकारी ने बताया कि यहां सुरंग खोदने वाली मशीन एक डेड-एंड पर फंस गई है, और मजदूर कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।

तेलंगाना में एसएलबीसी सुरंग का एक हिस्सा ढहने से पांच साल पहले, जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड द्वारा कमीशन की गई एक रिपोर्ट में सुरंग में संभावित "फॉल्ट ज़ोन" की चेतावनी दी गई थी - ऐसे हिस्से जहाँ ढहने की संभावना अधिक है। जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड नोएडा स्थित कंपनी है जिसे 2005 में सुरंग बनाने का ठेका दिया गया था।

सुरंग भूकंपीय पूर्वानुमान (टीएसपी) - 303 प्लस नामक रिपोर्ट जनवरी 2020 में अम्बर्ग टेक एजी द्वारा तैयार की गई थी, जो सुरंग बनाने का सर्वेक्षण करने वाली एक कंपनी है। रिपोर्ट के अनुसार, फॉल्ट ज़ोन सुरंग के मुहाने से 13.88 किमी (13,882 मीटर) और 13.91 किमी (13,914 मीटर) के बीच मौजूद था। रिपोर्ट में इस हिस्से में चट्टान की ताकत में कमी भी पाई गई और इस बात पर प्रकाश डाला गया कि यह हिस्सा पानी वाला क्षेत्र था।

कंपनी ने भूकंपीय तरंगों को चट्टान के द्रव्यमान में संचारित करके और विसंगतियों वाले भागों को रिकॉर्ड करके और उनका मूल्यांकन करके जोखिम की गणना की। रिपोर्ट में टिप्पणी में लिखा गया है, "चट्टान की कठोरता में कमी", "संभावित संयुक्त कतरनी चट्टान द्रव्यमान", और "संभावित जल असर क्षेत्र"। बचावकर्मियों ने बताया कि यह हादसा इसी इलाके के पास हुआ।

पता चला है कि यह रिपोर्ट 2020 में जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड को सौंपी गई थी। एक सूत्र ने कहा, "यह पता नहीं है कि यह रिपोर्ट राज्य सरकार के सिंचाई विभाग के साथ साझा की गई थी या नहीं।" इस बीच, सुरंग पर एक अन्य अध्ययन ने 2020 में फिर से एक अलग विसंगति का खुलासा किया था। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक मंडपल्ली राजू और जयप्रकाश एसोसिएट के भूविज्ञानी ऋतुराज देशमुख के एक शोध पत्र के अनुसार, सुरंग का निर्माण खराब उपसतह अन्वेषण के साथ शुरू हुआ था।

तेलंगाना में एएमआर परियोजना के एसएलबीसी में टीबीएम द्वारा संचालित लंबी सुरंग के भू-तकनीकी पहलुओं पर लिखे गए पेपर में लिखा है, "चूंकि पूरी सुरंग का संरेखण टाइगर रिजर्व फ़ॉरेस्ट में पड़ता है, इसलिए सुरंग संरेखण के साथ ड्रिलिंग बोरहोल या ड्रिफ्ट की खुदाई जैसी उपसतह जांच की अनुमति नहीं थी। इसके अलावा, सुरंग संरेखण का अधिकांश हिस्सा भौतिक जांच के लिए दुर्गम है। नतीजतन, सुरंग की खुदाई बिना किसी पुख्ता और पुष्ट भू-तकनीकी डेटा के शुरू कर दी गई।"

वरिष्ठ पत्रकार पुष्परंजन का फेसबुक पर साझा आलेख साभार

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