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संविधान ने देश में बदलाव लाने में उल्लेखनीय मदद की: सीजेआई खन्ना
संविधान की प्रस्तावना में भी संशोधन कर सकती है संसदः सुप्रीम कोर्ट

पणजी: रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि विवादास्पद अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में 4 मई को वह संसद के समक्ष विस्तृत ब्यौरे के साथ सभी तथ्यों को पेश करेंगे। उन्होंने कहा, 'मैं संसद के समक्ष बुधवार को हेलीकॉप्टर सौदे के बारे में विस्तृत ब्यौरा और तथ्यों को रखूंगा। मैं विस्तृत घटनाक्रम रखूंगा जिसमें बताउंगा कि किस तरह और कैसे कंपनी के मुताबिक नियमों और प्रावधानों में ढील दी गई।' उन्होंने कहा, 'जिन लोगों को रिश्वत मिली वे अपने ऊपर अभियोजन चलाने के लिए सबूत नहीं छोड़ेंगे लेकिन हमें इसे साबित करना है (कि रिश्वत ली गई)। हमें हर चीज साबित करनी है। चूंकि मामले को संसद के समक्ष रखा जाएगा इसलिए मैं मीडिया को विस्तार से जानकारी नहीं दूंगा।' पर्रिकर ने पूछा, 'कंपनी के खिलाफ 2014 तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? तत्कालीन यूपीए सरकार ने कंपनी को काली सूची में क्यों नहीं डाला? मैं कांग्रेस को चुनौती देता हूं कि यूपीए सरकार के आदेश को दिखाएं कि अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी को काली सूची में डाला गया।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन की वजह से बढ़ते प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए कोई उपाय नहीं करने पर केंद्र सरकार से नाराजगी जताई और कहा कि ‘आप लोग केवल कॉफी की चुस्की ले रहे हैं और कुछ नहीं कर रहे।’ प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘मंत्रालय में लोग क्या कर रहे हैं? वे कुछ अनुसंधान और समाधान क्यों नहीं निकाल सकते? आप यह शोध क्यों नहीं कर सकते कि शेष दुनिया में क्या हो रहा है? आप लोग केवल कॉफी की चुस्की ले रहे हैं और कुछ नहीं कर रहे। अदालतों को इन सभी मामलों को देखने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।’ पीठ में न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति आर. भानुमति भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि मंत्रालय के लोग केवल इस बात का इंतजार कर रहे हैं कोई अदालत के समक्ष समाधान लेकर आए और फिर वे इस मुद्दे से निपटें। पीठ ने कहा, ‘आप क्यों इस बात का इंतजार करते हैं कि वरिष्ठ अधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल और उनका दल शोध करे और समाधान निकाले। आप खुद यह क्यों नहीं कर सकते। यह जीवन की बात है और लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं।’

नई दिल्ली: केंद्र सरकार से बढ़ते टकराव के बीच कांग्रेस ने शनिवार को ऐलान किया कि वह छह मई को संसद का घेराव करेगी, ताकि उत्तराखंड के राजनीतिक संकट, सूखे के हालात और विपक्ष के खिलाफ चलाए जा रहे 'छल-कपट और जानबूझकर झूठ से भरे अभियान' से जनता को अवगत कराया जा सके। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कई नेता एवं कार्यकर्ता अगले शुक्रवार को जंतर-मंतर से मार्च शुरू कर संसद का घेराव करेंगे। पिछले साल, कांग्रेस ने जमीन अधिग्रहण विधेयक का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल को राम लीला मैदान में एक रैली आयोजित की थी। इस विधेयक को पार्टी ने 'किसान विरोधी और कॉरपोरेट हितैषी' करार दिया था। इससे पहले सोनिया ने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक विपक्षी नेताओं के मार्च की अगुवाई की थी। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह घोषणा करते हुए कहा कि 'लोकतंत्र बचाओ' मार्च के अंत में संसद का घेराव किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जनता की ओर से चुनी गई सरकारों को 'गिराने' की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की कोशिशों, जैसा कि अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड की 'साजिशों' में देखा गया, के मद्देनजर यह फैसला किया गया है।

नई दिल्ली: मोदी सरकार को दो साल पूरे होने वाले हैं और इस बीच शनिवार को एक ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि करीब आधे प्रतिभागी (49 प्रतिशत) अपने जीवनस्तर में कोई बदलाव महसूस नहीं करते, वहीं अन्य 15 प्रतिशत को लगता है कि हालात दरअसल बदतर हो गये हैं। मीडिया अध्ययन केंद्र (सीएमएस) के सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि बड़ी संख्या में (43 प्रतिशत) लोगों का मानना है कि मोदी सरकार के कार्यक्रमों और योजनाओं से गरीब जनता को लाभ नहीं हो रहा। उसी समय मोदी सरकार के दो साल के कामकाज प्रदर्शन का आकलन करने पर पता चला कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कामकाज को बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद किया है जिनकी संख्या 62 फीसदी है और करीब 70 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि वे पांच साल के पहले कार्यकाल के बाद भी प्रधानमंत्री बने रहें। 15 राज्यों के शहरी और ग्रामीण इलाकों में करीब 4000 प्रतिभागियों के बीच सर्वेक्षण कराया गया जिसमें यह बात सामने आई कि एक तिहाई से कम प्रतिभागियों को लगता है कि प्रधानमंत्री ने वादे पूरे किये हैं वहीं 48 फीसदी मानते हैं कि वादे आंशिक रूप से पूरे किये गये हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, ‘क्या लोगों का जीवनस्तर दो साल पहले की तुलना में आज बेहतर हुआ है तो करीब आधे (49 प्रतिशत) को लगता है कि कोई बदलाव नहीं हुआ है वहीं 15 प्रतिशत मानते हैं कि हालात या स्थितियां बदतर हो गयी हैं।’

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