(नरेन्द्र भल्ला): खनिज -संपदा के लिहाज़ से देश के प्रमुख राज्य झारखंड का विधानसभा चुनाव इस बार कुछ दिलचस्प होता नज़र आ रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के लिये जहां सत्ता बचाने की चुनौती है, तो वहीं बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के लिए सत्ता पर काबिज़ होना "करो या मरो" वाली स्थिति के समान है। दोनों तरफ़ से बड़े-बड़े वादों और दावों की भरमार है, लेकिन यह तो जनता ही तय करेगी कि उसे किस पर ज्यादा भरोसा है। सत्ता की चाबी अपने पास रखने वाले आदिवासी बहुल राज्य में वैसे तो मुद्दों की कमी नहीं, लेकिन कम से कम 4 ऐसे बड़े फैक्टर हैं, जिनसे चुनाव का नतीजा तय होने वाला है। 81 सीटों वाले झारखंड में 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है, लिहाज़ा हर चुनाव में राजनीतिक दलों की किस्मत का फैसला वही करते हैं।
दोनों गठबंधन की महिला वोटर्स पर नजर
इस बार दोनों ही गठबंधन महिला वोटरों को लुभाने के लिए एक से बढ़कर एक दावे कर रहे हैं। इनमें से प्रमुख है महिलाओं के लिए मासिक आर्थिक मदद।
झामुमो सरकार ने इसी साल "मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना" की शुरुआत की। इसके तहत महिलाओं को 1000 रुपए मासिक सहायता दी जा रही थी। भाजपा ने एनडीए सरकार बनने पर 2100 रुपए मासिक देने का वादा किया तो अब झामुमो ने आगे निकलने की होड़ में 2500 रुपए देने का एलान कर दिया है। हेमंत सोरेन सरकार ने चुनावों की घोषणा से दो दिन पहले ही इस प्रस्ताव को कैबिनेट से पास कर दिया है। यही वजह है कि महिला वोटर्स को इस चुनाव में सबसे अहम फैक्टर माना जा रहा है।
आदिवासी बनाम बांग्लादेशी का मुद्दा
बीजेपी ने राज्य में खासकर संथाल परगना में कथित तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठ को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की है और उसकी चुनावी रणनीति का फोकस भी यही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2 अक्टूबर को हजारीबाग की रैली में इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया था। झारखंड में इस बार रोटी, बेटी और माटी बचाने की लड़ाई बताते हुए उन्होंने मंच से कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से आदिवासियों की संख्या कम हो रही है। बीजेपी के प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को आक्रामकता के साथ उठाया है और बीजेपी के कार्यकर्ता इस मुद्दे को आदिवासियों तक पहुंचाने के लिए गांव-गांव, गली-गली का दौरा कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार या फिर विक्टिम कार्ड
झारखंड के चुनावी नतीजे में एक अहम फैक्टर ये भी होगा कि राज्य की जनता बीजेपी की ओर से मौजूदा सरकार पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर विश्वास करती है या फिर हेमंत सोरेन के विक्टिम कार्ड पर। बीजेपी जहां झामुमो और कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती आ रही है तो वहीं जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन विक्टिम कार्ड खेलने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। गौरतलब है कि राज्य में पिछले पांच सालों में लगातार ईडी और सीबीआई की छापेमारी चलती रही, जिसमें भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई है
किसका साथ देंगे आदिवासी वोटर्स ?
झारखंड में सत्ता की असली चाबी आदिवासियों के हाथ में ही मानी जाती है। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर ही लगा था। पार्टी 28 आरक्षित सीटों में से 26 पर चुनाव हार गई थी। माना गया था कि प्रमुख आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी के अलग पार्टी बनाकर लड़ने से बीजेपी को नुकसान हुआ। हालांकि, बाद में बीजेपी में उनकी घर वापसी हो गई और फिलहाल प्रदेश में पार्टी की कमान उनके हाथ में है। वैसे तो इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी आदिवासी सीटों पर बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं रही। आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी ने जो कार्ड चला था, उसकी सबसे बड़ी परीक्षा भी झारखंड चुनावों में ही होगी। वहीं दूसरी तरफ हेमंत सोरेन "आदिवासी" और "मूलवासी" के मुद्दे को पूरे जोरशोर से उठा रहे हैं।