नई दिल्ली (जनादेश ब्यूरो): कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा कि कल भारत के संविधान को अपनाए जाने की 75वीं वर्षगांठ पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में मनाई जाएगी, जिसका नाम अब संविधान भवन रखा गया है।
जयराम रमेश ने आगे लिखा, दरअसल आज 25 नवंबर को संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर के उस ऐतिहासिक भाषण की 75वीं वर्षगांठ है, जिसमें उनकी अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार संविधान के मसौदे को अपनाने की सिफ़ारिश की गई थी।
उस भाषण में डॉ. अंबेडकर की निम्न बातें हमेशा याद रहेंगी:-
"संविधान सभा भानुमति का कुनबा होती, एक बिना सीमेंट वाला कच्चा फुटपाथ, जिसमें एक काला पत्थर यहां और एक सफेद पत्थर वहां लगा होता और उसमें प्रत्येक सदस्य या गुट अपनी मनमानी करता तो प्रारूप समिति का कार्य बहुत कठिन हो जाता। तब अव्यवस्था के सिवाय कुछ न होता। अव्यवस्था की संभावना सभा के भीतर कांग्रेस पार्टी की उपस्थिति से शून्य हो गई, जिसने उसकी कार्रवाईयों में व्यवस्था और अनुशासन पैदा कर दिया।”
उन्होंने कहा था, "यह कांग्रेस पार्टी के अनुशासन का ही परिणाम था कि प्रारूप समिति के प्रत्येक अनुच्छेद और संशोधन की नियति के प्रति आश्वस्त होकर उसे सभा में प्रस्तुत कर सकी। इसीलिए सभा में संविधान के ड्राफ्ट का सुगमता से पारित हो जाने का सारा श्रेय कांग्रेस पार्टी को जाता है।”
जयराम रमेश ने अंत में लिखा कि कांग्रेस के प्रति डॉ. अंबेडकर ने जो सम्मान व्यक्त किया था उसकी आवाज़ जब गूंज ही रही थी, तभी 30 नवंबर 1949 को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने भारत के संविधान पर हमला करते हुए कहा कि इसने मनुस्मृति से प्रेरणा नहीं ली है और 11 जनवरी 1950 को, भारतीय गणराज्य के जन्म से कुछ दिन पहले, ख़ुद डॉ. अंबेडकर की बेहद कटु शब्दों में निंदा की थी।
संविधान को मंजूरी देने की ऐतिहासिक घटना के चार दिन बाद, आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र, ऑर्गनाइज़र ने 30 नवंबर, 1949 को एक संपादकीय में शिकायत की:-
"लेकिन हमारे संविधान में प्राचीन भारत में हुए अनूठे संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनु के कानून स्पार्टा के लाइकर्गस या फारस के सोलोन से बहुत पहले लिखे गए थे। आज भी मनुस्मृति में वर्णित उनके कानून दुनिया भर में प्रशंसा का विषय हैं और सहज आज्ञाकारिता और अनुरूपता को बढ़ावा देते हैं। लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।"