(नरेन्द्र भल्ला): महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का सारा फोकस ओबीसी वोटों पर है। महाराष्ट्र में ओबीसी राजनीति की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां 351 ओबीसी समुदाय हैं, जो राज्य की जनसंख्या का 52% हिस्सा हैं। इनमें से 291 समुदाय केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं। पिछले हफ़्ते ही शिंदे सरकार ने सात नई जातियों और उनकी उप-जातियों को शामिल करने का प्रस्ताव पारित कर उसे केंद्र को भेजा है। हालांकि यह मांग 1996 से ही लंबित थी।
क्रीमी लेयर की आय सीमा बढाई गई
मोटे तौर पर देखें, तो महाराष्ट्र में भी बिल्कुल हरियाणा वाला ही हाल है। मराठों की नाराजगी के चलते बीजेपी को लोकसभा चुनावों में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लिहाज़ा,अब पार्टी यहां भी हरियाणा वाला फॉर्मूला लागू करने की तैयारी कर रही है। एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण की तरह बीजेपी यहां एंटी मराठा वोटों को जोड़ने की तैयारी कर रही है। अब देखना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है।
बीती 10 तारीख को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में ओबीसी वोटर्स को लुभाने के लिए दो प्रस्ताव पास किए गए। पहले प्रस्ताव में केंद्र से क्रीमी लेयर की आय सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये प्रति वर्ष करने की सिफारिश की गई है। नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र, जो यह बताता है कि किसी व्यक्ति की वार्षिक पारिवारिक आय निर्धारित सीमा से कम है, वह ओबीसी वर्ग में आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। क्रीमी लेयर की यह सीमा 8 लाख से सीधे 15 लाख कर दी गई है। मतलब साफ है कि मु्ट्ठी भर परिवार भी नहीं बचेंगे,जो क्रीमी लेयर के दायरे में आएंगे और उन्हें ओबीसी कैटेगरी के आरक्षण से वंचित होना पडे़गा। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार पूरी तरह मेहरबान है ओबीसी केटेगरी पर। दूसरी ओर,मराठा लगातार आरक्षण की मांग कर रहे हैं लेकिन उन्हें इधर उधर की गोली दी जा रही है।
इस सिफारिश के एक दिन पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने महाराष्ट्र के सात समुदायों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। गौरतलब है कि महायुति सरकार ने एनसीबीसी से केंद्रीय ओबीसी सूची का विस्तार करने का अनुरोध किया था, जिसमें निम्नलिखित जातियों और उप-जातियों को शामिल किया जाए: 1- लोध, लोढ़ा, लोधी; 2- बडगुजर; 3- सूर्यवंशी गुजर; 4- लेवे गुजर, रेवे गुजर, रेवा गुजर; 5- डांगरी; 6- भोयर, पवार; 7- कापेवार, मुन्नार कापेवार, मुन्नार कापु, तेलंगा, तेलंगी, पेंटररेड्डी, बुककारी। जाहिर है कि विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे इलाकों में विधानसभा चुनावों में यह बहुत काम आएगा।
मराठी अखबारों की खबरों के मुताबिक भोयर और पवार समुदायों की उपस्थिति विदर्भ क्षेत्र के वर्धा, चंद्रपुर, भंडारा-गोंदिया, यवतमाल और नागपुर जिलों में है, जिसमें 62 विधानसभा सीटें हैं। .कह सकते हैं कि यहां पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। जबकि बडगुजर, लेवे गुजर, रेवे गुजर और रेवा गुजर समुदाय उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव, नासिक, नंदुरबार और अहमदनगर जिलों में रहते हैं। यहां 35 विधानसभा सीटें हैं, और उत्तर महाराष्ट्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। प्याज किसानों की असंतुष्टि के चलते लोकसभा चुनावों में बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था। उम्मीद की जा रही है कि कुछ डैमेज कंट्रोल हो सकेगा। इसी तरह तेलंगी, पेंटररेड्डी और मुन्नार कापु समुदाय मराठवाड़ा क्षेत्र के नांदेड़ और पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर में केंद्रित हैं। ये समुदाय 35-40 सीटों पर महायुति के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
मराठा बनाम पिछड़ों का संघर्ष कराने की कोशिश:
दरअसल,मुसलमानों, मराठाओं और दलितों के भाजपा से दूर होने के बाद, पार्टी ने अपनी पारंपरिक ओबीसी वोट बैंक पर फिर से ध्यान केंद्रित करने का रणनीतिक निर्णय लिया है। हरियाणा में भी ऐसा हुआ था। मुसलमानों के साथ जाटों और दलितों का वोट नहीं मिलने वाला था, इसलिए हरियाणा में एंटी जाट सेंटीमेंट पर पार्टी ने चुपचाप काम किया,जबकि कांग्रेस सिर्फ जाट पर फोकस हो गई और बीजेपी ने एंटी जाट पर ध्यान केंद्रित कर लिया। बीजेपी ने महाराष्ट्र में पहले भी माधव – माली, धनगर और वंजारी (ओबीसी) – फॉर्मूला विकसित किया था,जिसने भाजपा को कई चुनावों में फायदा पहुंचाया।
वैसे सियासी चर्चा यही है कि मराठों की नाराजगी के चलते बीजेपी के वोटों में जो कमी हुई है,उसे पूरा करने के लिए ही भाजपा मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है। महाराष्ट् में भी भाजपा को उम्मीद है कि एंटी मराठा सेंटीमेंट ही ओबीसी और दलितों के बीच पार्टी की पैठ को और बढ़ाने में कामयाब होगा।