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(जलीस अहसन) अभी कुछ ही दिन पहले तक अमेरिका के राष्ट्रपति डाॅनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जांग उन एक-दूसरे के देश को नेस्त ओ नाबूद कर देने की धमकियों के साथ एक-दूसरे को नट्टुल, मूर्ख, सठिआया बूढ़ा पागल आदि की उपाधियों से नवाज़ रहे थे। लेकिन सिंगापुर में हाल की आपसी गल बगियों के बाद ये जान कर हैरान रह गए कि वे कितने नादान थे कि एक-दूसरे को पहचान नहीं पाए। दोनों ने एक-दूसरे को ‘अत्यधिक टैलन्टिड ‘ और ‘ सयाना ‘ पाया। ऐसा आभास होते ही दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन ये दस्तावेज़ इतना अस्पष्ट है कि दुनिया समझ ही नहीं पा रही है कि इन ‘‘टैलन्टिड और सयाने ‘‘ महारथियों ने जो समझौता किया है वह कैसे लागू होगा और उसकी पुष्टि करने के क्या तरीके होंगे। इसके बावजूद ट्रंप के प्रशंसकों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति इस बार शांति के नोबेल पुरस्कार के पक्के हकदार हैं।
उधर विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप ने बिना कुछ पाए किम को काफी कुछ दे दिया है। ट्रंप ने दक्षिण कोरिया और अमेरिका के समय समय पर होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास को खुद ही ‘‘काफी भड़काने वाली कार्यवाही ‘‘बता कर उसे समाप्त करने की घोषणा कर किम को बड़ा तोहफा दिया।
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(आशु सक्सेना) मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इन दिनों विभिन्न मंत्रालयों के अपने मंत्रालय की उपलब्धियों के प्रजेंटेशन का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने अपने मंत्रालय का प्रजेंटेशन दिया। पत्रकार वार्ता के दौरान स्वच्छता अभियान का ज़िक्र आने पर एक पत्रकार ने सवाल दाग दिया कि आप सफाई की बात कर रहे हैं। जबकि गंदगी उनके घर के पास ही देखी जा सकती है। इस सवाल के जबाव में मंत्री का जबाव बेहद हास्यस्पद था।
उन्होंने कहा कि हर कोई यह कहता है कि उसके घर के पास गंदगी है। इसके लिए उसे पहल करके वह गंदगी साफ करनी चाहिए। मंत्री जी के इस बयान को हास्यास्पद इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैं अपने अनुभव से कह सकता हूॅं कि मंत्री जी कभी ऐसी स्थिति से रूबरू नही हुए हैं। अन्यथा वह ऐसी जोखिम वाली सलाह नही देते। मंत्री जी को कल्पना भी नही होगी कि सफाई शुरू करने की हिमाकत करने पर बवाल हो सकता है, जिसके चलते खूनखराबे की संभावना से इंकार नही किया जा सकता। बवाल सांप्रदायिक रंग ले सकता है और जिससे कानून व्यवस्था की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है।
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(आशु सक्सेना): उपचुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सहयोगी दलों से रिश्ते सुधारने की कवायद शुरू कर दी है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा अपने नाराज सहयोगी दलों को साधने में जुट गयी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीती बाजी हारने व साझा विपक्ष के कारण उपचुनाव के खराब परिणामों ने भाजपा का अपने सहयोगी दलों के प्रति रूख़ थोड़ा नरम होता नजर आ रहा है। इस दिशा में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की संभावित मुलाकात को अहम माना जा रहा है। यह मुलाकात बुधवार शाम छह बजे उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री में संभव है। दोनों सहयोगियों में पिछले चार साल में काफ़ी तल्ख़ी देखी गई है। हाल ही में पालघर लोकसभा उपचुनाव में दोनों पार्टियां आमने-सामने थीं। उधर, मौके की नजाकत को भांपते हुए एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों ने भी लोकसभा चुनाव के लिए अधिक सीटों के लिए भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है।
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता पाने के बाद पीएम मोदी ने सबसे पहले अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना को नाराज किया था। पीएम मोदी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ना सिर्फ एकला चलों की राह अख्तियार की थी, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान अपने सहयोगी शिवसेना की जमकर आलोचना भी की थी। उस वक्त पीएम मोदी ने शिवसेना को हफ्ताबसूल पार्टी की संज्ञा दी थी।
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(जलीस अहसन) नरेन्द्र मोदी के चार साल के शासन के दौरान पंजाब को छोड़ कर एक के बाद एक सभी राज्यों में भाजपा के हाथों सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस हाल में हुए कर्नाटक को भी लगभग गवां चुकी थी। लेकिन ऐन वक्त पर उसने, कुछ दिन पहले तक भाजपा की बी टीम बताने वाली, जेडीएस को सत्ता की कमान सौंप कर, 2019 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ते मोदी के रथ के रास्ते में कुछ रोड़ा ज़रूर डाल दिया है। कर्नाटक में संख्या में जेडीएस से दोगुनी होने के बावजूद भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए उसने एच डी कुमारस्वामी की अगुवाई में सरकार बनाना मंजूर किया। अगर चुनाव से पहले वह अपने ‘‘बिग ब्रदर‘‘ वाली हैकड़ी छोड़ कर उससे पहले ही समझौता कर लेती तो उसे शायद आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।
कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना कर उसने अपनी कमज़ोर हो चुकी स्थिति को जगज़ाहिर कर दिया है। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के खिलाफ हो रही विपक्षी लामबंदी में कांग्रेस का मुख्य भूमिका में बने रहना असंभव हो चुका है। सरकार बनाने में सिर्फ आठ सीट से पीछे रह गई भाजपा की मोदी और अमित शाह की जोड़ी लोकसभा चुनाव से पहले इस दक्षिणी राज्य में जेडीएस-कांग्रेस सरकार को गिराने का हर अवसर तलाशती रहेगी।
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