(जलीस अहसन) अभी कुछ ही दिन पहले तक अमेरिका के राष्ट्रपति डाॅनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जांग उन एक-दूसरे के देश को नेस्त ओ नाबूद कर देने की धमकियों के साथ एक-दूसरे को नट्टुल, मूर्ख, सठिआया बूढ़ा पागल आदि की उपाधियों से नवाज़ रहे थे। लेकिन सिंगापुर में हाल की आपसी गल बगियों के बाद ये जान कर हैरान रह गए कि वे कितने नादान थे कि एक-दूसरे को पहचान नहीं पाए। दोनों ने एक-दूसरे को ‘अत्यधिक टैलन्टिड ‘ और ‘ सयाना ‘ पाया। ऐसा आभास होते ही दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन ये दस्तावेज़ इतना अस्पष्ट है कि दुनिया समझ ही नहीं पा रही है कि इन ‘‘टैलन्टिड और सयाने ‘‘ महारथियों ने जो समझौता किया है वह कैसे लागू होगा और उसकी पुष्टि करने के क्या तरीके होंगे। इसके बावजूद ट्रंप के प्रशंसकों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति इस बार शांति के नोबेल पुरस्कार के पक्के हकदार हैं।
उधर विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप ने बिना कुछ पाए किम को काफी कुछ दे दिया है। ट्रंप ने दक्षिण कोरिया और अमेरिका के समय समय पर होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास को खुद ही ‘‘काफी भड़काने वाली कार्यवाही ‘‘बता कर उसे समाप्त करने की घोषणा कर किम को बड़ा तोहफा दिया।
ऐसा करते हुए अमेरिका ने तीन पीढ़ियों से चले आ रहे उत्तर कोरिया के क्रूर राजवंशीय शासन को मान्यता दे दी। समझौते में उत्तर कोरिया प्रायद्वीप के पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण की बात कही गई है, लेकिन यह कैसे होगा, इसकी पुष्टि कैसे की जाएगी, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है। किम के पिता और दादा के साथ भी पूर्व में ऐसे समझौते हो चुके हैं लेकिन कोई भी कामयाब नहीं रहा और बीच में उत्तर कोरिया ने एकतरफा तौर पर उन्हें समाप्त कर दिया। अपने पिता और दादा से किम कहीं चालाक निकले और उन्होंने एक के बाद एक परमाणु बमों तथा मिसाइलों के परीक्षण करके अपने को किसी संभावित हमले से काफी हद तक सुरक्षित कर लिया है। समझौते में इसका कोई उल्लेख नहीं है कि उत्तर कोरिया ने जो 20 से 30 परमाणु बम बना लिए हैं, उनका क्या किया जाएगा और क्या किम उन्हें नष्ट करने के लिए तैयार होंगे।
उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण, यूरेनियम संवर्धन और लंबी दूरी के मिसाइल परीक्षणों पर रोक के लिए ही हामी भरी है। उसके पास जो 20-30 परमाणु बमों का जखीरा है, उसके बारे में वह चुप्पी साधे हुए है। इन परीक्षणों को रोकने के बदले अमेरिका ने खाद्य कमी से जूझ रहे उत्तर कोरिया को 240000 मीट्रिक टन खाद्यान्न देने का वायदा किया है।
उत्तर कोरिया 1985 से अपने परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने के लिए अमेरिका और कई देशों के साथ कम से कम छह बार समझौते कर चुका है, लेकिन हर बार उसने उन्हें बीच में ही तोड़ दिया। 1985 में उसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए लेकिन अंतराष्ट्रीय एटाॅमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के साथ सुरक्षा समझौता नहीं किया। उसने मांग की कि ऐसा करने से पहले दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिका की सेना हटे। ऐसा नहीं होने पर वह अपने परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने के समझौते से पीछे हट गया।
गौरतलब है कि इस बार भी ‘‘टैलन्टिड‘‘ किम की मांग है कि दक्षिण कोरिया से अमेरिका की सेना और वहां स्थापित परमाणु छतरी हटे। 1992 में उत्तर कोरिया ने आईएईए से सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए लेकिन पूर्ण आईएईए इंस्पेक्शन से इंकार कर दिया। साल 2002 में उसने परमाणु इंस्पेक्टर को देश से बाहर का रास्ता दिखाते हुए 1994 के समझौते को तोड़ने की घोषणा की। इसके बाद 2003 में बीजिंग में अमेरिका, जापान, रूस, चीन और दोनों कोरिया के प्रतिनिधियों की बैठक हुई, लेकिन वह भी बेनतीजा रही।
2005 में उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार कार्यक्रम बंद करने के बदले बड़े पैमाने पर खाद्यान्न एवं उर्जा सहायता देने के साथ अपने राजनयिक अलगाव समाप्त करने का समझौता किया लेकिन बाद की वार्ताओं का उसने बहिष्कार कर दिया। साल 2007 में अमेरिका के साथ फिर इस सिलसिले में एक समझौता हुआ लेकिन परमाणु निरस्त्रीकरण की पुष्टि कैसे हो, इस बात को लेकर अगले साल ही यह समझौता भी धराशायी हो गया।
अपने पिता के निधन के बाद किम जांग उन ने देश के सर्वोच्च नेता का पद संभालने के बाद परमाणु हथियार बनाने और उसे दागने की मिसाइलें बनाने पर सबसे ज्यादा ज़ोर दिया। उनका मानना है कि ऐसा नहीं करने पर अमेरिका उसका लीबिया और वहां के नेता कर्नल कज्ज़ाफी जैसा हाल कर सकता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने कज्ज़ाफी पर सहायता के बदले परमाणु कार्यक्रम समाप्त करने का दबाव बनाया। लेकिन लीबिया द्वारा ऐसा करने के कुछ ही दिन बाद उस पर हमला कर तहस नहस कर दिया और और कज्ज़ाफी को भी क्रूर मौत का सामना करना पड़ा।
कुछ राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि ट्रंप अमेरिका में और अमेरिका के बाहर खास कुछ कर नहीं पाए हैं। उनका और उनके देश का ओहदा लगातार गिरता ही जा रहा है। हाल यह हो गया है कि हाल में कनाडा में हुई जी-7 देशों की बैठक में ट्रंप के ‘‘पहले अमरीका और संरक्षणवादी रवैये‘‘ से गुस्साए फ्रांस ने अमेरिका को ही इस समूह से निकाल देने की धमकी दे डाली। फ्रांस के नाराज़ राष्ट्रपति ने कहा कि जी-7 को जी-6 बनाया जा सकता है। कहां, ट्रंप ने रूस को इसमें शामिल करके इसे जी-8 बनाने की पेशकश की थी।
यह दर्शाता है कि लंबे समय पर दुनिया पर छाए रहे अमेरिका के रूतबे में किस तेज़ी से कमी आ रही है। दुनिया में अमेरिका के दबदबे को लगातार गिरते देख ट्रंप उत्तर कोरिया समझौते से कुछ सकारात्मक छवि बनाना चाहते हैं, जिससे देश के अगले राष्ट्रपति के चुनाव में वह अपनी कोई एक बड़ी उपलब्धि गिना सके। लेकिन ‘‘ टैलन्टिड ‘‘ किम शायद ही ऐसा होने दे।