(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जहां बीता साल चुनौतियों भरा रहा, वहीं साल 2018 की चुनावी शुरूआत के नतीजों ने भी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तस्वीर काफी हद तक साफ कर दी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद यह साफ हो जाएगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ राष्ट्रीय स्तर पर क्या रहने वाला है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सूबे की 28 सीट में से 18 पर कब्जा किया था। इस लिहाज से विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलना चाहिए। लेकिन अभी तक के चुनावी सर्वे भाजपा के पक्ष में ऐसा कोई संकेत नही दे रहे हैं।
दक्षिण में कर्नाटक एकमात्र सूबा है, जहां भाजपा का जनाधार है। इस सूबे में भाजपा को सत्तावापसी के लिए संघर्ष कर रही है। पाटी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी और पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने लाव लश्कर (केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री) के साथ इन दिनों कर्नाटक में डेरा डाले हुए हैं। इस सूबे में कांग्रेस और जनतादल सेक्यूलर और भाजपा के बीच तिकोना मुकाबला है। पार्टी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी ने जनतादल सेक्यूलर प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पहले तारीफ की और फिर अगले की दिन उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच मिलीभगत की बात कह कर अपनी आशंका जाहिर की दी कि बहुमत हासिल नही करने की स्थिति में सत्ता वापसी की संभव नही है।
सूबे के चुनाव प्रचार में आरोप प्रत्यारोप का दिलचस्प दौर चल रहा है। चुनाव नतीजे लोकसभा चुनाव की झलक पेश कर देंगे। फिलहाल देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य से एक बात साफ है कि भाजपा अपने बूते पर बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने में इस बार कामयाब होती नज़र नही आ रही है।
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। देश के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए आम चुनाव के 30 साल बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में किसी एक पार्टी भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था। बीते साल जहां उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पीएम मोदी की लोकप्रियता के लिहाज से भाजपा के लिए उपलब्धी साबित हुआ, वहीं मोदी के गृह राज्य गुजरात विधानसभा चुनाव नतीजों ने पीएम मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ को बहुत तेजी से नीचे ला दिया है। जबकि इस साल की शुरूआत मे भाजपा शासित राजस्थान और उत्तर प्रदेश में दो—दो लोकसभा सीटों के उपचुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार ने थोड़ी धुंधली तस्वीर को ओर ज्यादा साफ कर दिया है। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती लोकसभा में पार्टी के पिछले आंकड़े को बरकरार रखने की हैं। जिसकी संभावना फिलहाल नजर नही आ रही है।
गुजरात में भाजपा की सत्ता में वापसी को भले ही पीएम मोदी की साल के अंत में सबसे बड़ी उपलब्धी माना जा रहा हो, लेकिन विधानसभा चुनाव नतीजों ने निश्चित ही 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की वापसी पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पीएम मोदी की अपने गृहराज्य गुजरात के विधानसभा चुनाव में पहली परीक्षा थी। इस चुनाव के नतीजों से साफ जाहिर है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ में जबरदस्त गिरावट आयी है। लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम मोदी बनाने के लिए गुजरात के 59.1 फीसदी मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मत घटकर 49.18 फीसदी रह गया।
साल 2017 की शुरूआत पीएम मोदी ने अपने साहसिक फैसले नोटबंदी के बाद उभरी स्थिति से निपटने से हुई थी। माना जा रहा था कि नोटबंदी के चलते उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान होगा। लेकिन नतीजे इसके विपरित आए। भाजपा ने प्रदेश में इतिहास रचते हुए 325 सीटों पर कब्जा किया। यह बात दीगर है कि पार्टी के स्टार प्रचारक पीएम मोदी ने यह चुनाव केंद्र के कामकाज पर नही बल्कि विशुद्ध जातिगत और सांप्रदायिक विभाजन के आधार पर जीता था। जातिगत आधार पर चुनावी गठबंधन और शमशान और कब्रिस्तान जैसे जुमलों के बूते पर यह सफलता हासिल की थी।
गौरतलब है कि 2012 का विधानसभा चुनाव गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का भावी प्रधानमंत्री होने के नारे पर जीता था। उसके बावजूद मोदी पिछले विधानसभा चुनाव का आंकड़ा हासिल नही कर सके थे। इस चुनाव में भाजपा की सीट घटकर 115 रह गई थीं। मोदी ने 2007 का विधानसभा चुनाव गुजरात के विकास मॉडल पर लड़ा था, तब भाजपा को 10 सीट का नुकसान हुआ था। भाजपा 127 सीट से घटकर 117 पर सिमट गई थी। लिहाजा 2012 का चुनाव सांप्रदायिक आधार पर विभाजन और विकास के नारे पर जीतना संभव नही था। लिहाजा भाजपा ने मोदी को देश का भावी प्रधानमंत्री बताकर चुनावी जीत हासिल की थी। पिछला चुनाव गुजरातियों के लिए पीएम मोदी का पहला इम्तिहान था, जिसमें उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर कर दिया है। अब सवाल यह है कि अगर गुजरात विधानसभा और लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव नतीजों को 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल माना जाए, तो एक बात साफ है कि इस चुनाव में भाजपा अपने बूते पर बहुमत हासिल करने में कामयाब होती नजर नही आ रही है।
गुजरात के अलावा उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में भाजपा अपने चरम पर है। जहां उसकी सीटों में हिज़ाफे की कोई गुंजाईश नही है। पीएम मोदी की अपने गृहराज्य गुजरात में घटती लोकप्रियता को अगर देश में भाजपा के घटते जनाधार का आधार माना जाए, तो उत्तर प्रदेश 71, बिहार 22, राजस्थान 25, मध्यप्रदेश 27 उत्तराखंड़ 5, हिमाचल प्रदेश 4, छत्तीसगढ़ 10, दिल्ली 7, गोवा 2 हरियाणा 7, गुजरात 26, असम 7,जम्मू कश्मीर 3 झारखंड़ 12, कर्नाटक 17, महाराष्ट्र 23, पश्चिम बंगाल 2 के अलावा छोटे राज्यों में भी भाजपा 2014 का आंकड़ा हासिल करती नजर नही आ रही है। वहीं दक्षिण के राज्यों में भाजपा ने निसंदेह अपना जनाधार बढाया हैं। लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में होने वाले नुकसान की भरपाई वहां करने की स्थिति में नही हैं।
संभव है कि लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा ही सबसे बड़ा दल बनकर उभरे, लेकिन बहुमत के आंकड़े से अगर पींछे रही तब पीएम मोदी के नेतृत्व को लेकर सवाल उठ सकते हैं। भाजपा के सबसे पुराने घटक दल शिवसेना नेतृत्व का पीएम मोदी के प्रति रूख से साफ जाहिर है कि वह उनके नेतृत्व को स्वीकार नही करेगा। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार हांलाकि अब मोदी के साथ नजर आ रहे हैं, जबकि एक समय ऐसा था, जब उन्होंने मोदी के नेतृत्व के खिलाफ ही एनडीए से नाता तोड़ा था। राजस्थान के लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडु के फैसले के बाद स्थिति ओर साफ हो जाती है।
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के चलते भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया था। गुजरात विधानसभा चुनाव और राजस्थान के उपचुनाव मे भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस था। जहां ना सिर्फ कांग्रेस की सीटों में खासा इजाफा हुआ है, वहीं मत प्रतिशत भी बढ़ा है। लिहाजा जिन राज्यों में भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है, वहां कांग्रेस को लाभ मिलने की संभावना बढ़ गई है। इत्तफाक से ऐसे सभी राज्यों में भाजपा अपने चरम पर है। इसके अलावा इन राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ पार्टी भी है। लिहाजा इन सभी राज्यों में भाजपा को पीएम मोदी की गिरती लोकप्रियता के साथ ही सत्ता विरोधी माहौल का भी सामना करना है।
भाजपा 1996 में पहली बार सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। भाजपा को 162 सीट मिली थीं और भाजपा ने अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व में पहली बार केंद्र में सरकार का गठन किया था। लेकिन उस सरकार का 13 दिन में पतन हो गया था क्योंकि बाजपेई जी लोकसभा में अपना बहुमत साबित नही कर सके थे। उसके बाद कांग्रेस के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का गठन हुआ थां। लेकिन वह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी थी। राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को दो बार कांग्रेस और भाजपा के एकमंच पर खडे़ होने के चलते हुआ था।
ब्हरहाल पीएम मोदी की लोकप्रियता में आ रही गिरावट का असर निश्चित ही लोकसभा चुनाव नतीजों पर पडे़गा। पिछला लोकसभा चुनाव मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी। नतीजतन भाजपा ने पहली बार न सिर्फ पूर्ण बहुमत हासिल किया बल्कि अपने घटक दलों को भी जीत का स्वाद चखवाया था। इस बार पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट का खामियाजा भी अब उन घटक दलों को भुगतना पड़ सकता हैं। लिहाजा वह अभी से दूरी बनाने लगे हैं, ताकि लोकसभा चुनाव में कुछ भरपाई की जा सके।