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(आशु सक्सेना) मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के उपलक्ष्य में इन दिनों विभिन्न मंत्रालयों के अपने मंत्रालय की उपलब्धियों के प्रजेंटेशन का सिलसिला जारी है। इसी क्रम में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने अपने मंत्रालय का प्रजेंटेशन दिया। पत्रकार वार्ता के दौरान स्वच्छता अभियान का ज़िक्र आने पर एक पत्रकार ने सवाल दाग दिया कि आप सफाई की बात कर रहे हैं। जबकि गंदगी उनके घर के पास ही देखी जा सकती है। इस सवाल के जबाव में मंत्री का जबाव बेहद हास्यस्पद था।

उन्होंने कहा कि हर कोई यह कहता है कि उसके घर के पास गंदगी है। इसके लिए उसे पहल करके वह गंदगी साफ करनी चाहिए। मंत्री जी के इस बयान को हास्यास्पद इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैं अपने अनुभव से कह सकता हूॅं कि मंत्री जी कभी ऐसी स्थिति से रूबरू नही हुए हैं। अन्यथा वह ऐसी जोखिम वाली सलाह नही देते। मंत्री जी को कल्पना भी नही होगी कि सफाई शुरू करने की हिमाकत करने पर बवाल हो सकता है, जिसके चलते खूनखराबे की संभावना से इंकार नही किया जा सकता। बवाल सांप्रदायिक रंग ले सकता है और जिससे कानून व्यवस्था की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है।

बहरहाल, मंत्री जी दिल्ली के हैं, लिहाजा उनके लिए मोदी जी के "मिनी इंडिया" यानि दिल्ली की कहानी ही मौजू रहेगी। दिल्ली का विश्वास नगर विधानसभा क्षेत्र यूं तो पीएम मोदी के पीएम बनने से पहले 2013 में ही कांग्रेस मुक्त हो चुका था। लेकिन अब नगर निगम चुनाव के बाद 2017 में यह क्षेत्र काफी हद तक कांग्रेस मुक्त और भाजपा युक्त हो चुका है। नगर निगम पर लगातार तीसरी बार भाजपा ने परचम फहराया है। पिछले चुनाव में वार्ड नंबर 19 ई को पूरी तरह कांग्रेस मुक्त कहा जा सकता है। यह बार्ड भाजपा की अपर्णा गोयल ने कांग्रेस से छिना है।

निर्वाचित पार्षद अपर्णा गोयल पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के विश्वास नगर विधानसभा क्षेत्र में रहती है। उनका निवास स्थान विधानसभा क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण इलाके में स्थित "सुख सागर अपार्टमेंट" में है। उन्के धर के पिछले हिस्से में करीब चार साल से ज्यादा समय से उद्धाटन का इंतजार कर रहे एक नगर निगम के स्कूल की इमारत नजर आती है। जहां अब निश्चित रूप से पहले की अपेक्षा काफी सुधार नजर आता है। जोशी कालोनी में स्थित स्कूल की इमारत के सामने पड़ने वाले कूड़े का खत्ता खत्म हो चुका है। स्कूल के सामने पार्क के लिए खाली पड़ी डीडीए की जमीन का व्यवसायिक इस्तेमाल हो रहा है। यह जगह पार्किंग के लिए अस्थाई रूप से आवंटित कर गई है। कुल मिलाकर यह जगह पहले की अपेक्षा काफी साफ सु​थरी नजर आने लगी है। लेकिन पार्षद जी के अपार्टमेंट के सामने वाले फुटपाथ पर आज भी स्वच्छता अभियान और विकास की खुलेआम थज्जी उड़ती देखी जा सकती हैं।

दरअसल, "सुखसागर अपार्टमेंट" के बगल वाले प्लाट में पंकज प्लाजा कम्पलेक्स है। यहां एक शराब की दुकान है। सुख सागर अपार्टमेंट के मुहाने पर एक बस स्टेंड है। लिहाजा काफी लम्बे समय से यह शराबियों का अघोषित अड्डा बना हुआ है। बस का इंजतार करने वाले मुसा​फिर को सुविधा रहती है कि वह शराब खरीद कर कही आसपास उसे निपटा ले और अपने गंतव्य के लिए रवाना हो जाए। अब सवाल यह है कि शराबी जब अपने काम से निवृत हो जाता है, तब उसे लघुशंका यानि मूत्रालय की याद आती है। बस स्टाप मुहाने पर है, लिहाजा उस शराबी को सबसे नजदीक स्टेण्ड के पीछे वाली जगह नज़र आती है और वह वहां पूर्व में किये गये मूत्रदान को देखकर बेहिचक निवृत होना शुरू कर देता है।

अब कहानी शुरू होती है मंत्री जी के सुझाव यानि स्वच्छता अभियान के लिए पहल को अमलीजामा पहनाने की। अमूमन तो यहां पेशाब करने वाले को कोई टोकता नही है। अगर आसपास रहने वाला कोई व्यक्ति स्वच्छता ​अभियान से संबंधित टीवी पर चल रहे अमिताभ बच्चन के विज्ञापन से प्रभावित होकर गलती से उन सज्जना से पूछ लेता है कि भाईजान यह पेशाब करने की जगह है। तब पहला जबाव होता कि यहां सब करते हैं। जब दूसरी बार जोर देकर उनसे पूछा जाता है कि भाई मेरा कहना है कि क्या यह पेशाब करने की जगह है। तब बहुत कम लोग मिलते है, जो अपनी गलती मानते है। अधिकांश का जबाव होता है कि हम यहीं करेंगे, जो करना हो कर लेना। इतना ही नही भविष्य में सबक सिखाने की धमकी भी दे दी जाती है।

ऐसे में मंत्री जी के सुझाव को अमलीजामा पहनाने की हिम्मत कौन सा राष्ट्रभक्त करेगा। यह तो वह ही बता सकेंगे। फिलहाल हम तो आपको मोदी जी के मिनी इंडियां के कांग्रेस मुक्त इस क्षेत्र में चार साल से तैयार स्कूल की इमारत की याद दिला सकते है। आखिर इस स्कूल के शुरू होने में क्या अड़चन हैै। जबकि सांसद, विधायक और अब पार्षद भी भाजपा का है। वहीं एक साल पहले बनी भाजपा पार्षद के निवास के सामने वाले फृटपाथ पर स्वच्छता अभियान, विकास के साथ साथ कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ने के एक नजारे से रूबरू करवा सकते हैं। भाजपा पार्षद के घर के सामने वाले फुटपाथ पर देश मे 70 साल से चल रहे विकास का सबसे बेहतरीन नमूना देखा जा सकता है।

यहां स्थित बस स्टेण्ड का जीर्णोंधार 2010 में कॉमन बेल्थ गेम के आयोजन से पहले हुए विकास कार्यो के दौरान हुआ था। पूरे दिल्ली में पुराने बस स्टेण्ड को ढाह कर नये डिजायन के बस स्टेण्डों का निर्माण किया गया था। चूंकि यह इलाका अंदरूनी है, लिहाजा यहां का विकास भी फाइल का पेट भरने के लिहाज से ही किया जाता है। पिछले आठ साल में बस स्टाप पर लगे टाइल्स पर चलते वक्त पहाड़ी क्षेत्र में चलने का एहसास होता है। परंपरा है कि ऐसी जगह ठेकेदार काम निपटाने के लिए हैं। खाना पूरी करते हैं।

विकास का सबसे बेहतरीन नजारा बस स्टाप के नजदीक पड़ा वह मलवे का ढेर है। ​जो पिछले आठ साल से फुटपाथ से उठने का इंतजार कर रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि इस मलवे को उठाने की जिम्मेदारी किस विभाग की है। इसे लेकर ही विवाद है। क्षेत्र की पार्षद अपर्णा गोयल इस मलवे को हटाने के लिएदिल्ली सरकार से लिखित अनुरोध कर चुकी हैं। लेकिन दिल्ली सरकार ने अभी तक उनके अनुरोध की चिठ्ठी को कोई तबज्जों नही दी है। एक साल बाद भी यहां यथास्थिति बरकरार है।

फिलहाल यह मलवे का ढेर अब इन शराबियों का सबसे बेहरीन अण्डा है। दरअसल यह मलवा उस वक्त तोडे गये बस स्टेण्ड के खंबें के अवशेष हैं। जो लोहा होने के चलते इतने भारी हैं कि उन्हे सिर्फ क्रैंन से ही उठाया जा सकता है। स्वाभाविक है कि मलवे की सफाई के नाम पर 2010 में सरकारी खर्च हो चुका होगा। बहरहाल अब बस स्टेण्ड और फुटपाथ पर बैठने वाले दर्जी और प्रेस वाले के बीच पड़ा यह मलवे का ढेर शराबियों का खास अण्डा बन चुका है। प्रेस वाले और दर्जी के पास आसपास के लोगों का जमावड़ा रहता है। लिहाजा शराबियों को एकांत में होने का भय भी नही रहता है। कांग्रेस मुक्त और भाजपा युक्त विश्वास नगर विधानसभा क्षेत्र में स्वच्छता अभियान और देश में चल रही विकास की सतत प्रक्रिया को काफी नजदीक से देखा जा सकता है।

दिलचस्प पहलू यह है कि भाजपा पार्षद के सामने वाले फुटपाथ पर स्थित बस स्टेण्ड को मूत्रालय की तरह इस्तेमाल करने वालों में वहां खड़े होने वाले रेड्डी और थ्री व्हिलर के कुछ दबंग लोगों के अलावा कुछ ऐसे लोग भी शामिल है। जिन्हें सफाई अभियान को लागू करने की जिम्मेदारी मिली हुई है। सुख सागर अपार्टमेंट के सामने नीथी अपार्टमेंट है। उसमे रहने वाले लोगों को उन पालतू कुत्तों से भी एजराज है, जो आसपास के अपार्टमेंट से घूमने आते है। कुत्तों को गंदगी करने से रोकने के लिए वह लोग वहां तैनात गार्ड को सख्ती से उसे रोकने की हिदायत देते है। लेकिन स्वच्छता अभियान की धज्जी उड़ते उस वक्त देखी जा सकती हैं, जब वह गार्ड सड़क पार बस स्टेण्ड के पीछे पेशाब करते हुए देखा जाता है। पार्षद का ड्राइवर जो दिन भर स्वच्छता अभियान को सफल बनाने की मुहिम का हिस्सा होता है। उसे रात को घर लौटते वक्त बस स्टेण्ड के पीछे बने मूत्रालय का इस्तेमाल करने में कोई एतराज नही होता है।

कहने का अभिप्राय: यह है कि जब तक लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता नही आयेगी, तब तक आप विज्ञापनों में आंकड़े बाजी कर सकते है। लेकिन उसे चरित्रार्थ नही कर सकते। यहां यह ज़िक्र करना जरूरी है कि प्लाजा मार्केट में नगर निगम का शोचालय बना हुआ है। लेकिन कम ही लोग उसका इस्तेमाल मूत्रालय के तौर पर करते है। बताया जाता है यह शौचालय सरकारी अंदाज में चलता है। जब रखरखाव करने वाला छुट्टी पर जाता है। तब शौचालय में ताला रहता है। रेहडी और थ्री व्हिलर के ड्राइवरों का पहला तर्क यही होता है।

अब लगे हाथ पिछले 70 साल से चल रहे विकास के अंदाज का ज़िक्र भी कर दिया जाए। चूंकि यह अंदरूनी इलाका है, लिहाजा भुगतान के वक्त फिजीकल वेरिफिकेशन का खतरा नही होता। लिहाजा निर्माण भी लापरवाही से होता है। इस शौचालय को इस्तेमाल करने वाले लोगों का कहना है कि पुरूष मूत्रालय की बनावट ही डिफेक्टिव है।

दिल्ली की इस कहानी के बाद अब मंत्री जी से कुछ सवाल है। जो सवाल सरकारी पत्रकार वार्ता में पूछने की इजाजत नही है। वहां तो पत्रकार वार्ता में सवाल जबाव की रस्म अदायगी के बाद भोज के बाद बात खत्म हो जाती है। अखबारों में भी सरकारी दावे सुर्खियां पा जाते हैं। लेकिन यह एक बड़ा सवाल है कि स्वच्छता अभियान को कैसे सही मायनों में सफलता पूर्वक लागू किया जाए। जब दिल्ली में इस अभियान के प्रति लोगों में कोई विशेष उत्साह नजर नही आ रहा है। तब समूचे देश में इसकी सफलता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। क्या मंत्री जी बता सकते हें कि स्वच्छता अभियान की पहल के एवज में सरकार उस नागरिक को क्या सुरक्षा मुहैया करवाएगी, जो यह जोखिम उठाने का साहस कर रहा है। इसके अलावा ऐसे मामलों में कानून व्यवस्था बनाए रखने की सरकार के पास कोई विशेष योजना है।

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