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(धर्मपाल धनखड़) पूरे देश की तरह 2019 के आम चुनाव को लेकर हरियाणा में भी राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। हरियाणा में लोकसभा चुनाव के करीब छह महीने बाद ही विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसलिए राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को संगठित करने और जनता को अपने साथ जोड़ने की कवायद में जुट गये हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इन दिनों डोर टू डोर अभियान चलाकर लोगों को केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियां बताने में जुटी है। इससे पहले बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने का अभियान भी चला चुकी है। बूथ स्तर पर पार्टी कितनी मजबूत हुई इसका पता तो फरवरी महीने में जींद में हुई हुंकार रैली से बखूबी चल गया था, जिसमें खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शिरकत की थी। शाह ने पिछले दिनों मंत्रालयों और सांसदों के रिपोर्ट कार्ड की समीक्षा भी की थी और पार्टी को मजबूत करने के टिप्पस भी दिये थे।

पिछले दिनों दिल्ली में हुई एक मीटिंग में शाह हरियाणा भाजपा के कर्ताधर्ताओं को खूब खरी खोटी भी सुनाई। राज्य सरकार के पास भले ही साढे़ तीन साल के कार्यकाल की कोई बड़ी उपलब्धि लोगों को बताने के लिए नहीं है। लेकिन सरकार के मंत्री पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। पार्टी के विशिष्ट जनों से सीधे संपर्क साधने के अभियान के तहत राज्य के जेल मंत्री कृष्ण लाल पंवार रोहतक जेल में साध्वियों के यौन शोषण मामले में सजा काट रहे सिरसा डेरे के प्रमुख रामरहीम गुरमीत से भेंट कर उन्हें साधने की कोशिश की, ताकि चुनाव में वे अपने समर्थकों के वोट भाजपा को दिला सकें।

(आशु सक्सेना) 2019 नजदीक आने के साथ ही देश का माहौल बदलता जा रहा है। जम्मू कश्मीर के बहाने जहां सांप्रदायिक भावनाओं को उभारने का प्रयास तेज हुआ है। वहीं हिंदु मतों को एकजुट करने के लिए एक बार फिर राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को जोरशोर से उठाया जा रहा है। फिलहाल देश में निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी, मंहगाई, सुरक्षा और विकास जैसे अहम मुद्दे कहीं नेपथ्य मे खो गये हैं। यह सबकुछ ऐसे चल रहा है, जैसे किसी ने पहले से इसकी स्क्रिप्ट लिख रखी हो। पिछले दिनों मोदी सरकार ने अपने चार साल पूरे होने का जश्न काफी जोरशोर से मनाया। सभी मंत्रालयों ने पत्रकार वार्ता आयोजित करके अपने मंत्रालय की उपलब्धियों का प्रजेंटेशन दिया। इस प्रदर्शन में काफी सरकारी पैसा खर्च हुआ। 

मोदी सरकार के पांचवें साल में प्रवेश करते ही भाजपा ने सबसे पहले जम्मू कश्मीर की अपनी सरकार को कुर्बान कर दिया। मोदी सरकार ने इस कुर्बानी को राष्ट्रभक्ति से जोड़ने का प्रयास किया है। यह बात दीगर है कि साल 2014 से लगातार सूबे की चुनी हुई सरकार का भाजपा हिस्सा रही। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यपाल शासन लगने के बाद सूबे में पहुंच कर जम्मू के साथ भेदभाव का आरोप गढ़कर समूचे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।

(आशु सक्सेना) अमरनाथ यात्रा से करीब एक सप्ताह पहले जम्मू कश्मीर की मेहबूबा सरकार का पतन राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के हित में हो सकता है। लेकिन तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से भाजपा का यह फैसला काफी जोखिम भरा नजर आता है। अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकवाद के खात्मे का अभियान निश्चित ही आतंकियों के लिए चुनौती है। इस दौरान आतंकी सुरक्षाबलों के साथ साथ श्रद्धालुओं को ​निशाना बनाने की फिराक में रहेंगे। लिहाजा तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार को अतिरिक्त चौकसी करनी होगी। ऐसे में देश के चौ​कीदार पीएम मोदी ​की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें देशवासियों को विश्वास दिलाना होगा कि हिंदुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ी इस तीर्थयात्रा के दौरान किसी भी श्रद्धालु को जानमाल का कोई खतरा नही है।

यूं तो इतिहास साक्षी है कि अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकवादी हर साल ही किसी न किसी वारदात को अंजाम देने में सफल होते आए हैं। लेकिन वर्ष 2000 की अमरनाथ यात्रा के दौरान हुए नरसंहार को इस धार्मिक यात्रा के इतिहास में अभी तक का सबसे बड़ा हादसा माना जाता है। उस साल आतंकवादियों ने अनंतनाग और डोड़ा जिले में श्रद्धालुओं के कैंपों पर घात लगाकर हमला किया था। जिसमें काफी तादाद में हिदु श्रद्धालुओं के अलावा मुसलिम दुकानदार, सेना के जवान और स्थानीय नागरिकों जान गई थी, जबकि 62 लोगों के ज़ख्मी होने की खबर थी।

(आशु सक्सेना) मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के खिलाफ विपक्ष के महागठबंधन की कोशिशें तेज हो गई हैं। सूबे में महागठबंधन के लिए कांग्रेस, बसपा और सपा के बीच शुरूआती दौर की बातचीत हुई है। इस बातचीत में इस बात पर सहमति बन गई है कि भाजपा विरोधी मतों के बिखराव को रोकने के लिए समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट होकर चुनावी मुकाबला करना चाहिए।

सूत्रों का कहना है कि ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए सभी दलों ने कोशिशें तेज कर दी है। इसी रणनीति के तहत इस मुहिम को उस वक्त एक झटका लगता नज़र आया, जब मायावती की पार्टी बसपा के एक प्रदेश पदाधिकारी ने मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात कही।दरअसल, प्रदेश के संभावित महागठबंधन से जुड़े नेताओं का मानना है कि बातचीत अभी शुरुआती स्तर पर है और समझौते के लिए सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है। लिहाजा अंतत: समझौता हो जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में संभावित महागठबंधन के लिए बसपा, सपा समेत अन्य छोटी पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन जारी है। सभी दल सीटों के बंटवारे में ज्यादा हिस्सेदारी के लिए दबाव बना रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस समर्थित महागठबंधन और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। जिसमें भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना होगा।

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