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(आशु सक्सेना) प्रेस क्लब ऑफ़ इंड़िया यानि पीसीआई के नये भवन की कवायद यूं तो दशकों पुरानी है, लेकिन यह मुद्दा पिछले दो दशक से काफी गरमाया हुआ है। ​साल 2007 से हर साल होने वाले क्लब के वार्षिक चुनाव में भी यह मुद्दा अहम छाया रहता है। दरअसल, प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की 13 महीने की सरकार के कार्यकाल में शहरी विकास मंत्री राम जेठमलानी ने पीसीआई को 7 रायसीना रोड का बंगला आवंटित किया था। पीसीआई के इतिहास में यह एआर विग-चांद जोशी कमेटी की महत्वपूर्ण उपलब्धी थी। लेकिन इस बंगले को अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली अगली एनडीए सरकार ने बलपूर्वक खाली करवा लिया था। जाहिरानातौर पर इस प्रकरण की मीड़िया में तीखी प्रतिक्रिया हुई।

इस मामले को शांत करने के लिए सरकार ने 27 मार्च 2002 को राजेंद्र प्रसाद रोड़ पर स्थित बंगला संख्या 6 और 8 पीसीआई को कुछ शर्तों पर आवंटित किया। लेकिन उस जमीन पर पीसीआई का आज तक कब्जा नही हो सका है। जबकि उस जमीन के एवज में पीसीआई अब तक करीब दो करोड़ बीस लाख रूपये भारत सरकार को अदा कर चुका है। पीसीआई की 5 मई को हुई ईजीएम में जानकारी दी गई कि क्लब को आवंटित जमीन पर कब्जे के लिए अभी 2 करोड़ रूपये सरकार को ओर देने है। यह रकम अदा नहीं करने की स्थिति में सरकार इस जमीन के आवंटन को रद्द कर सकती है।

इस ईजीएम में क्लब की मौजूदा कमेटी ने राज्यसभा टीवी की तरफ से इस जमीन के संबंध में मिले एक लिखित प्रस्ताव को पेश किया। जिसमें आरएसटीवी ने भवन निर्माण में पीसीआई को आर्थिक मदद के एवज में पीसीआई को आवंटित जमीन को पुन:आरएसटीवी और पीसीआई को संयुक्त रूप से आवंटित करने का प्रस्ताव किया गया था। मौजूदा कमेटी का तर्क था कि पीसीआई दो करोड़ रूपये देने की स्थिति में नही है। लिहाजा आरएसटीवी के प्रस्ताव को मंंजूर कर लेना चाहिए, ताकि क्लब को एक बेहतर भवन मिल सके। हांलाकि पीसीआई की ईजीएम ने इस प्रस्ताव को एक स्वर से खारिज कर दिया। लेकिन सवाल यह है कि आखिर पीसीआई को आजतक इस जमीन पर कब्जा क्यों नही मिला। क्या इसका अहम कारण आर्थिक है या फिर पीसीआई की आंतरिक राजनीति इसमें रूकावट बनी हुई है।

आपको याद दिला दें कि राजेंद्र प्रसाद रोड़ पर स्थित दो बंगले 27 मार्च 2002 को पीसीआई को आवंटित किये गये थे। जमीन आवंटन के सिलसिले में उस वक्त पीसीआई में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री अनंत कुमार और भाजपा के वरिष्ठ नेता वीके मल्होत्रा ने शिरकत की थी। पत्रकारों के साथ बातचीत में वीके मल्होत्रा ने पीसीआई को यह जमीन आवंटित करवाने का श्रेय सुदेश वर्मा को देते हुए चुनाव में उन्हें जीतवाने की बात कही थी। उस साल पीसीआई के चुनाव में सुदेश वर्मा ने महासचिव पद पर दावेदारी ठोकी। लेकिन इस चुनाव में सुदेश वर्मा को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा और संघ से रिश्ता सुदेश वर्मा की हार का अहम कारण था। सर्वविदित है कि सुदेश वर्मा अब भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। माना जाता है कि वामपंथी दूसरे शब्दों में प्रगतिशील विचारधारा के पत्रकारों का पीसीआई पर कब्जा रहा है। यह भी माना जाता है कि वह कब्जा आज भी बरकरार है।

बहरहाल, पीसीआई पर संघियों का कब्जा हो या वामपंथी विचारधारा के पत्रकारों का इससे कोई खास फर्क नही पड़ता। सवाल यह है कि दोनों ही विचारधारा के पत्रकारों को आखिर जरूरत के मुताबिक एक भव्य आ​लीशान भवन आज तक क्यों नही मिल पा रहा है। पिछले दो दशक में खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक मीड़िया के आने के बाद पत्रकारों की ​तादाद में ​कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है। जाहिरानातौर पर पीसीआई के सदस्यों की संख्या में भी हिजाफा होना भी लाजमी है। पर पीसीआई आज भी 1957 में लाइसेंस पर आवंटित बंगला संख्या 1 रायसीना रोड़ स्थिति छोटे से बंगले से अपनी तमाम गतिविधियों को संचालित कर रहा है। हर साल चुनाव से पहले नये सदस्यों को बनाया जा रहा है। अब स्थिति यह हैं कि अगर क्लब के सभी सदस्य उस प्रांगण में पहुंच जायें, तब किसी भी बड़े हादसे की आशंका से इंकार नही किया जा सकता। दरअसल, हकीकत यह है कि किसी विशाल भवन से पत्रकारों को वंचित रखने में पीसीआई की आंतरिक राजनीति ही ज्यादा जिम्मेदार रही है।

आपको याद दिला दूं कि पीसीआई की एआर विग-चांद जोशी कमेटी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए 25 दिसंबर 1998 को शहरी विकास मंत्रालय को आवेदन पत्र दिया। जिसमें 1 रायसीना रोड़ की जगह क्लब का 7 रायसीना रोड़ आवंटित किये जाने का अनुरोध किया गया। क्लब का कहना था कि क्लब का वर्तमान भवन सदस्यों की बढ़ती तादाद के मद्देनजर काफी छोटा है। अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली एनड़ीए सरकार ने 20 अपैल 1999 को बंगला संख्या 7 रायसीना रोड़ को 10505 रूपये मासिक लाइसेंस फीस पर आवंटित कर दिया। पीसीआई को दो एकड़ में फेले इस बंगले पर कब्जा मिल गया। पीसीआई के भव्य कार्यक्रम इस बंगले में आयोजित होने लगे। बंगले पर कब्जे के बाद हुए क्लब के वार्षिक चुनाव में एआर विग-चांद जोशी पैनल हार गया। उस चुनाव में बॉबी माथुर-असगरी जैदी पैनल की जीत हुई। इत्तफाक से उस चुनाव में 13 वें सदस्य के तौर पर मैं भी जीत गया था।

इस नई कमेटी पर दो बंगलों के साथ ही क्लब के करीब 100 स्थाई कर्मचारियों को नियमित वेतन देने की जिम्मेदारी थी। मौजूदा भवन की लाइसेंस फीस के साथ 7 रायसीना रोड़ की लाइसेंस फीस भी देनी थी। 7 रायसीना रोड़ की लाइसेंस फीस और बाकी खर्च मिलाकर क्लब पर करीब 40 हजार रूपये का अतिरिक्त भार था। इस खर्च को कैसे पूरा किया जाये, यह मुद्दा जब कमेटी की बैठक में आया, तब यह प्रस्ताव पास किया गया कि क्लब के सदस्यों को इस बंगले के मैदान उनके निजी कार्यक्रमों के लिए दिये जाए, ताकि इस खर्च को पूरा किया जा सके। साथ कमेटी में इस बात पर विवाद खड़ा हो गया कि क्लब को 7 रायसीना रोड़ पर शिफ्ट किया जाये या नही। इस मुद्दे पर कमेटी में मतभेद थे। क्लब को शिफ्ट करने के पक्ष में यह ​तर्क दिया गया कि क्लब के सदस्यों की संख्या बढ़ रही है। लिहाजा फिलहाल हमें उस बंगले में अस्थाई कंस्टेक्शन करवा कर वहां शिफ्ट हो जाना चाहिए। अन्यथा वह जगह हमसे छीन जाएगी। इस पर कमेटी में इस प्रस्ताव का विरोध् करने वालों में खासकर रेनू मित्तल को सख्त एतराज था। उनका कहना था कि 1 रायसीना रोड़ से हम लोगों का लगाव है। यहां से काफी यादें जुड़ी हुई हैं लिहाजा इसे नही छोड़ा जा सकता।

बॉबी माथुर-असगरी जैदी कमेटी का कार्यकाल 18 महीने का रहा। क्लब संविधान के मुताबिक 18 महीने में कमेटी का चुनाव अनिवार्य है। इस दौरान कमेटी ने क्लब को आवंटित दोनों भवनों को बरकरार रखा। इसके अलावा इस कमेटी ने दो साल की आडिटेड रिर्पोट पेश की। साथ ही एक नई परंपरा शुरू की कि चालू वर्ष की अंतरिम रिर्पोट भी एजीएम के समक्ष रखी। करीब 150 सदस्यों की सदस्यता रद्द करने और क्लब की सदस्यता के लिए नियमों में बदलाव करने जैस महत्वपूर्ण काम भी इस कमेटी ने ही किये थे। क्लब की सदस्यता के लिए ऐसा कोई प्रावधान नही था कि सदस्यता के लिए पत्रकारिता का कितना अनुभव होना चाहिए। कमेटी ने सदस्यता के लिए पांच साल का अनुभव होना अनिवार्य किया। इस कमेटी के कार्यकाल में ही सदस्यता के लिए नये फार्म छपे थे। पहली बार फार्म के पिछले पृष्ठ पर बदले हुए नियमों को प्रकाशित किया गया था। इस कमेटी में क्लब को 7 रायसीना रोड़ पर शिफ्ट करने के मुद्दे पर बहस चलती रही।

चुनाव से पहले कमेटी की बैठकों लंबी चर्चा के बाद इस बात पर सहमति बनी कि कमेटी की बैठकों को उस भवन में आयोजित किया जाए। चुनाव से पहले कमेटी की दो बैठक 7 रायसीना रोड़ पर हुई। कमेटी की आखिरी बैठक में मेरे इस प्रस्ताव पर काफी गरमा गरमी हुई कि इस साल के चुनाव के लिए मतदान और मतों की गिनती 7 रायसीना रोड़ पर ही होनी चाहिए। ताकि इस जगह पर कब्जा बरकरार रखने के लिए क्लब की गतिविधियों को दर्शाया जा सके। अंत में इस बात पर तो सहमति बन गई कि मतदान 7 रायसीना रोड़ पर होगा। लेकिन मतों की गिनती के लिए 1 रायसीना रोड़ को ही चुना गया। उस चुनाव में रेनु मित्तल-फराज अहमद पैनल चुनाव में उतरा।

क्लब की आंतरिक राजनीति के चलते इस चुनाव का मुद्दा क्लब को मिला नया भवन था। विरोधी पक्ष का आरोप था कि मौजूदा कमेटी ने 7 रायसीना रोड़ को बरात-घर बना दिया है। बहरहाल उस चुनाव में प्रभात डबराल-एके धर का पैनल जीता गया। पत्रकारों के बरात-घर के प्रचार का नतीजा यह हुआ कि एनडीए सरकार ने 7 रायसीना रोड़ से क्लब का सामान उठाकर बाहर रख दिया और प्रांगण को अपने कब्जे में ले लिया। आज उस जगह पर नेशनल मीड़िया सेंटर की भव्य इमारत खड़ी हुई है।

यहां से क्लब की भवन राजनीति का श्रीगणेश होता है। क्लब के नये भवन के लिए एनडीए सरकार पर दबाव बनाया जाने लगा। सरकार ने भी 7 रायसीना रोड़ पत्रकारों से छीनने के बाद थोड़ी उदारता दिखाते हुए इस बंगले के पीछे राजेंद्र प्रसाद रोड़ पर बंगला संख्या 6 और 8 आवंटित कर दिया। यह जमीन शहरी विकास मंत्रालय के प्रपत्र संख्या 3388/2 दिनांक 27 मार्च 2002 को आवंटित की गई। सरकार ने इस जमीन की कुल लागत एक करोड़ 43 लाख चार हजार 258 रूपये तय की थी। यह राशि क्लब को निर्धारित अवधि में किश्तों में अदा करनी थी। शर्त के मुताबिक क्लब को जमीन की किश्त साल में छह महीने के अंतराल में दो बार जमा करनी थी। शर्त के मुताबिक ऐसा नही करने की स्थिति में क्लब को पैनल्टी के तौर ब्याज अदा करना था, जो कि समय-समय पर सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

बहरहाल जमीन आवंटन के बाद प्रभात डबराल-एके धर कमेटी ने 15 लाख रूपये की पहली किश्त अदा की। लेकिन उसके बाद 2006 त​क क्लब ने इस जमीन पर कोई ध्यान नही दिया। 2006 में राहुल जलाली-पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ कमेटी ने क्लब को आवंटित जमीन की फाइल की धूल झाड़ी और भारत सरकार को बकाया राशि की किश्तें देना शुरू किया इस कमेटी ने 2010 तक भारत सरकार को करीब डेढ़ करोड़ रूपये की धनराशि अदा कर दी थी। कमेटी ने सरकार का दिये गये चैक की फोटोस्टेट प्रति क्लब के नोटिस बोर्ड पर चस्पा की। 2010 के चुनाव में परवेज अहमद-पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ पैनल हार गया। उस वक्त क्लब को आवंटित जमीन पर कब्जे के लिए करीब 25 लाख रूपये देना बाकी था।

यहां क्लब की आंतरिक राजनीति का जिक्र करना बेहद जरूरी है। 2010 में दिल्ली में कॉमन वेल्थ खेलों का आयोजन होना था। क्लब के अध्यक्ष परवेज अहमद, महासचिव पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ, उपाध्यक्ष रितु वर्मा,कोषाध्यक्ष जयंत भट्टाचार्य के अलावा कई सदस्यों के प्रतिनिधिमंड़ल ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। इस मुलाकात में कमेटी ने सोनिया गांधी को बताया कि पीसीआई का वर्तमान भवन नेहरू जी के जमाने में क्लब को आवंटित हुआ था। जो अब काफी खस्ता हालत में है। क्लब के लिए एनडीए सरकार ने जमीन आवंटित की थी। जिसके एवज में करीब डेढ़ करोड़ रूपये सरकार को दिये जा चुके हैं। क्लब बकाया राशि भी देने में सक्षम है। लेकिन भव्य भवन का निर्माण करवाना क्लब के लिए संभव नही है। बताया जाता है कि सोनिया गांधी ने सरकार से भवन निर्माण करवाने का अनुरोध करने का आश्वासन दिया था।

इस मुलाकात के दौरान शिष्टाचार के तौर पर सोनिया गांधी को क्लब की ऑनररी सदस्यता प्रदान की गई थी। जो कोई नई परंपरा नही थी, पहले भी क्लब ऐसी सदस्यता देता रहा था। लेकिन पत्रकार विरादरी ने इस मुलाकात को मुद्दा बना दिया। अंग्रेजी के दो बड़े अखबारों में प्रतिष्ठित पत्रकारों ने खबर छापी कि क्लब पर कांग्रेसियों का कब्जा होने वाला है। इस विवाद के बाद सोनिया गांधी ने सदस्यता का आई कार्ड क्लब को वापस कर दिया और भवन निर्माण का मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला गया।

अब सवाल यह है कि 2010 से अभी तक क्लब प्रबंधन ने जमीन के एवज में 70 लाख रूपये भारत सरकार को अदा किये हैं। वर्तमान कमेटी के मुताबिक इस जमीन के लिए अभी 2 करोड़ रूपये ओर अदा करने हैं। सवाल यह है कि पिछले आठ साल से क्लब पर काबिज पत्रकारों की कमेटी इस जमीन पर कब्जा क्यों नही कर सकी। यहां आपको याद दिलवा दें कि 2011 में चुनाव वाले दिन होने वाली एजीएम में क्लब के कोषाध्यक्ष नदीम काजमी ने जानकारी दी थी कि भवन निर्माण के लिए जो धनराशि क्लब को मिल रही है। उसे भारत सरकार को ना देकर क्लब के एक अलग खाते में जमा की जा रही है। सरकार को एकमुश्त राशि अदा की जाएगी। क्योंकि सरकार को किश्तों में भुगतान करने से क्लब को उस राशि पर ​बैंक से मिलने वाले ब्याज का नुकसान होता है। दिलचस्प पहलू यह है कि 2010 में देय राशि करीब 25 लाख थी, जो अब बढ़कर दो करोड़ हो चुकी है।

क्लब को होने वाले इस नुकसान के लिए जिम्मेदार कौन है। पिछले आठ साल में क्लब प्रबंधन ने इस अहम मुद्दे पर ध्यान क्यों नही दिया। इससे इतर इस दौरान क्लब संविधान में संशोधनों और क्लब के मौजदा भवन की साज सज्जा पर ही वर्तमान कमेटी ने ज्यादा ध्यान केंद्रीत किया।है। क्लब का वर्तमान प्रबंधन इस मुद्दे पर भविष्य में क्या करने जा रहा है। क्या वह सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाएगा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चौथे खंबे के राष्ट्रीय क्लब के भवन के लिए आवंटित जमीन पर लगने वाले ब्याज को माफ किया जाए और जमीन पर ना सिर्फ कब्जा बल्कि भवन निर्माण में भी दुनिया के दूसरे देशों की तरह पीसीआई की मदद की जाए। या फिर यह कमेटी भी एक बार फिर क्लब को आवंटित जमीन वापस सरकार को सौंप देगी। पिछले दिनों आरएसटीवी के प्रस्ताव पर ईजीएम बुलाने के फैसले से कमेटी की यह मंशा साफ झलक रही है।

फिलहाल ऐसी कोई संभावना नजर नही आ रही है कि क्लब की मौजूदा कमेटी नये भवन की जमीन बचाने का कोई सार्थक प्रयास करेगी, पीसीआई की वर्तमान कमेटी जमीन के मामले में पिछली ईजीएम में अपनी असमर्थता जाहिर कर चुकी है। ऐसे में इस बात की प्रवल संभावना है ​कि वर्तमान एनडीए सरकार 7 रायसीना रोड़ की तरह राजेंद्र प्रसाद रोड़ पर आवंटित जमीन का आवंटन रद्द कर दे। उप राष्ट्रपति के चुनाव के बाद आरएसटीवी में नई सत्ता कायम होने के बाद लुटियन जोन में स्थित पीसीआई को आवंटित जमीन के लिए आरएसटीवी ने लिखित प्रस्ताव भेजा है। जिसे ईजीएम ने भले ही खारिज कर दिया है, पर इस मुद्दे पर कमेटी की उदासीनता से यह आशंका जरूर हो रही है कि सरकार जमीन का बकाया भुगतान निर्धारित समय सीमा में अदा नही करने की स्थिति में पीसीआई के आवंटन का रद्द कर दे। संभव है कि एनडीए की मौजूदा सरकार भी 7 रायसीना रोड़ की तरह जमीन के इस आवंटन को रद्द करने के बाद नेशनल मीड़िया सेंटर की तरह इस पीसीआई की जमीन को आरएसटीवी को आवंटित कर दे।

 

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