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(आशु सक्सेना): उपचुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सहयोगी दलों से रिश्ते सुधारने की कवायद शुरू कर दी है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा अपने नाराज सहयोगी दलों को साधने में जुट गयी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीती बाजी हारने व साझा विपक्ष के कारण उपचुनाव के खराब परिणामों ने भाजपा का अपने सहयोगी दलों के प्रति रूख़ थोड़ा नरम होता नजर आ रहा है। इस दिशा में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की संभावित मुलाकात को अहम माना जा रहा है। यह मुलाकात बुधवार शाम छह बजे उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री में संभव है। दोनों सहयोगियों में पिछले चार साल में काफ़ी तल्ख़ी देखी गई है। हाल ही में पालघर लोकसभा उपचुनाव में दोनों पार्टियां आमने-सामने थीं। उधर, मौके की नजाकत को भांपते हुए एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों ने भी लोकसभा चुनाव के लिए अधिक सीटों के लिए भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है।

गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता पाने के बाद पीएम मोदी ने सबसे पहले अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना को नाराज किया था। पीएम मोदी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ना सिर्फ एकला चलों की राह अख्तियार की थी, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान अपने सहयोगी शिवसेना की जमकर आलोचना भी की थी। उस वक्त पीएम मोदी ने शिवसेना को हफ्ताबसूल पार्टी की संज्ञा दी थी। 

दिलचस्प पहलू यह है कि विधानसभा के पहले सत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ सदन में शिवसेना ने विपक्ष की भूमिका अदा ​की थी। उस वक्त क्षत्रप शरद पवार ने भाजपा सरकार को जीवनदान दिया था। यह बात दीगर है कि फिलहाल केंद्र, प्रदेश और बंबई नगर निगम में दोनों दल गठबंधन सरकार चला रहे हैं। शिवसेना भाजपा रिश्तों में दरार अभी हाल में संपन्न उपचुनाव में भी देखने को मिली।

उधर, बिहार में भाजपा व जदयू के बीच अगले चुनाव के मद्देनरज बड़ा भाई बनने को लेकर बयानबाजी चल रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के नये सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और राज्य दिव्यांग जन सशक्तिकरण मंत्री राजभर ने लोकसभा और विधानसभा के हालिया उपचुनावों में भाजपा की पराजय के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार ठहरा कर लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के तालमेल के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। फिलहाल लोकसभा में भाजपा के 68 और सहयोगी अपना दल के दो सांसद हैं।

एनडीए की एक बड़ी सहयोगी तेलगुदेशम पार्टी पहले ही अपनी नाराजगी जताते हुए गंठबंधन से बाहर चली गयी है, ऐसे में अब दूसरे बड़े सहयोगी शिवसेना को हर हाल में एनडीए में बनाये रखने में भाजपा जुट गयी है। शिवसेना बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है, जिसके पास 18 लोकसभा सांसद हैं और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में उसकी मजबूत मौजूदगी है। शिवसेना पूर्व में जरूरत पड़ने पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है, विधानसभा चुनाव में वह ऐसा कर भी चुकी है। अगर लोकसभा चुनाव में भी वह ऐसा करती है, तो इससे महाराष्ट्र में भाजपा की संभावनाओं को नुकसान हो सकता है।

ध्यान रहे कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार साझा विपक्ष की पैरोकारी कर रहे हैं और ऐसा होता भी दिख रहा है। वे शिवसेना को भी साथ अाने की अपील कर रहे हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठजोड़ को अगर यूपी में सक्रिय समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व बिहार में सक्रिय राष्ट्रीय जनता दल का समर्थन मिलता है, तो इससे भी चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। बसपा का हर राज्य में दलितों के बीच थोड़ा-बहुत प्रभाव है। वहीं, पूर्वांचली वोटों की मौजूदगी के मद्देनजर सपा व राजद की अपील काम कर सकती है।

इस संदर्भ में हाल के कर्नाटक चुनाव का जिक्र करना भी मौजूं होगा। कर्नाटक में तेलगुदेशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने तेलगू वोटों से भाजपा को वोट नहीं देने की अपील की थी। कर्नाटक में 30 से 35 सीटों पर तेलगू वोटरों का असर है। बड़ी पार्टी बनने के बावजूद भाजपा को तेलगू बहुल इलाकों में अनुपातिक रूप से कम सफलता मिली थी।

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