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वाशिंगटन: आतंकी संगठन आईएस ने इराक में अमेरिकी और ईराकी सैनिकों पर रासायनिक हमले शुरू कर दिए हैं। यह जानकारी गुरुवार को पेंटागन ने दी। हालांकि, इस हमले से किसी सैनिकों के हताहत होने की खबर नहीं है। अमेरिकी सेना के नेवी कैप्टन जैफ डेविस ने बताया कि यह हमला मंगलवार को क्याराह एयरबेस पर किया गया है, जहां अमेरिकी और इराकी सैनिकों का शिविर है। इस क्षेत्र को सैनिकों ने जुलाई माह में आईएस के कब्जे से मुक्त कराया था। उन्होंने बताया कि ये रासायनिक हथियार (मस्टर्ड गैस) रॉकेट और मोर्टार के जरिये छोड़े गए थे। इन रासायनिक हमलों में प्रयोग होने वाली मस्टर्ड गैस अत्यंत ज्वलनशील होती है जो शरीर में फफोले, अंधापन और स्थायी विकृति जैसी समस्याएं पैदा कर सकती हैं। इराक में तैनात अमेरीकी सैनिक रासायनिक हथियारों से बचाव के लिए अक्सर गैस मास्क को पहन कर तैनात रहते हैं। डेविस ने बताया, इस हमले से हमारे मिशन को कोई नुकसान नहीं हुआ है और ना ही हम सुरक्षा को लेकर चलाए जा रहे अपने अभियान से पीछे हटने वाले हैं। अमेरिका द्वारा इराक पर 2014 से आईएस के आतंकियों पर कार्रवाई की जा रही है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब आतंकी संगठन ने अमेरिकी सैनिकों पर रासायनिक हमला किया हो। सीरिया में अलेप्पो शहर के बुधवार रात लड़ाकू विमानों से भारी बमबारी की गई, जिनमें कई लोगों के मारने की आशंका है। यह जानकारी सीरियन आब्जर्वेटरी फार ह्यूमन राइट्स ने दी। हालांकि, यह हमला किसने किया इसका खुलासा अब तक नहीं हो सका है। उधर, अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने रूस से अलेप्पो में हवाई हमला तुरंत बंद करने की मांग की है।
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नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच के मौजूदा तनाव की छाया आज 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि पर भी पड़ी जब भारत ने स्पष्ट किया कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए ‘परस्पर विश्वास और सहयोग’ महत्वपूर्ण है।सरकार की ओर से यह बयान उस वक्त आया है जब भारत में ऐसी मांग उठी है कि उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए इस जल बंटवारे समझौते को खत्म किया जाए। यह पूछे जाने पर दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए क्या सरकार सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करेगी तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘‘ऐसी किसी संधि पर काम के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग और विश्वास होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि संधि की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह ‘सद्भावना’ पर आधारित है। फिर पूछे जाने पर कि भारत इस संधि को खत्म करेगा जो उन्होंने कोई ब्यौरा नहीं दिया और सिर्फ इतना कहा कि कूटनीति में सबकुछ बयां नहीं किया जाता और तथा उन्होंने यह नहीं कहा कि यह संधि काम नहीं कर रही है। इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपाति अयूब खान ने सितम्बर, 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था। पाकिस्तान यह शिकायत करता आ रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है। स्वरूप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच इस संधि के क्रियान्वयन को लेकर मतभेद है।
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अलेप्पो: जबरदस्त हवाई हमलों से सीरिया का अलेप्पो आज थर्रा उठा। वहीं, अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव ने नाकाम हो चुके संघर्ष विराम को दोबारा लागू करने की कोशिशों पर पानी फेर दिया है। अपने लागू होने सिर्फ एक हफ्ते बाद सोमवार को नाकाम हो चुके संघर्ष विराम को पुर्नजीवित करने के लिए बाद में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक होने वाली थी लेकिन अमेरिका के इस बयान के बाद तनावपूर्ण माहौल की संभावना कि एक राहत सहायता काफिले पर हवाई हमले के लिए रूस जिम्मेदार है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और रूसी विदेश मंत्री सरजेई लावरोव, दोनों ही लोग इस हफ्ते के आखिर में होने वाली वार्ता से पहले परिषद को संबोधित करने वाले हैं। रूस और अमेरिका संघर्ष विराम योजना के सह प्रायोजक थे। केरी ने चेतावनी दी है कि सीरिया के गृह युद्ध को खत्म करने के लिए यह आखिरी मौका हो सकता है। इसमें पांच साल के दौरान 30,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। संघर्ष में मुख्य रणक्षेत्र अलेप्पो में विरोधियों के कब्जे वाले जिलों और शहर के बाहरी हिस्से में आज सुबह बमबारी की गई है। सीरियन आब्जरवेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स निगरानी संगठन ने बताया कि शहर के पूर्व में बीती रात दर्जनों स्थानों पर बमबारी की गई। शासन के सैनिक अलेप्पो के दक्षिण पश्चिम बाहरी इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं। सीरिया की सरकारी मीडिया ने बताया कि शहर की सरकार के नियंत्रण वाले पश्चिम हिस्से में विद्रोहियों की गोलीबारी हुई जिसमें दो लोग मारे गए।
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संयुक्त राष्ट्र: पूर्व राजनीतिक कैदी आंग सान सू ची ने म्यांमार में पहली लोकतांत्रिक सरकार बनाने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना पहला संबोधन दिया और सांप्रदायिक तनाव से घिरे म्यांमा के प्रति एक अंतरराष्ट्रीय समझ विकसित करने का आह्वान किया। संयुक्त राष्ट्र में विश्वभर के नेताओं की वाषिर्क बैठक में कल सू ची की मौजूदगी निजी एवं राष्ट्रीय सुधार के क्रम में एक ऐतिहासिक अवसर था। सू ची के देश में पांच दशक के सैन्य शासन के बाद लोकतांत्रिक सरकार का दौर आया है। इस मौके पर सू को संकटग्रस्त रखाइन प्रांत के हालात से जुड़ी चिंताएं भी जाहिर करनी थी। बहुसंख्यक बौद्ध लोगों द्वारा लंबे समय से रोहिंग्या मुसलमान समुदाय के साथ किया जा रहे भेदभाव ने वर्ष 2012 में खूनी हिंसा का रूप ले लिया था। एक लाख से ज्यादा लोग अब भी शिविरों में विस्थापन शिविरों में हैं। इनमें अधिकतर रोहिंग्या मुसलमान हैं। सू ची ने कहा कि नई सरकार ‘असहिष्णुता और पूर्वाग्रही ताकतों के खिलाफ मजबूती से खड़ी है।’ उन्होंने कहा, कि एक जिम्मेदार राष्ट्र होने के नाते ‘हम अंतरराष्ट्रीय जांच से नहीं डरते हैं।’ हम ऐसे स्थायी हल के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो शांति एवं स्थिरता की ओर ले जाता हो और देश में सभी समुदायों का विकास सुनिश्चित करता हो।
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