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नई दिल्ली: भारत ने शुक्रवार को कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) के तुर्की में आयोजित 13वें सम्मेलन में रखे गये विचारों को तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक बताया और कहा कि संगठन को इस तरह के बयान देने से बचना चाहिए। भारत ने इस तरह के बयान देने के ओआईसी के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल खड़ा किया, जिसने अपने बयान में ‘‘भारत अधिकृत जम्मू कश्मीर की जनता के आत्म-निर्णय के अधिकार के लिए व्यापक घरेलू आंदोलन को अपना समर्थन’’ जताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘हम अत्यंत खेद के साथ कहते हैं कि तुर्की के इस्तांबुल में 14-15 अप्रैल को ओआईसी के सदस्य देशों के प्रमुखों-सरकारों के 13वें इस्लामी सम्मेलन के समापन पर जारी अंतिम वक्तव्य में भारत के जम्मू कश्मीर राज्य, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, के संबंध में गलत और भ्रामक बात कही गयी हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हम भारत के आतंरिक मामलों के संबंध में इस तरह की बातों को पूरी तरह खारिज करते हैं जिस पर ओआईसी को बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
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संयुक्त राष्ट्र: भारत ने पठानकोट आतंकी हमले के मास्टरमाइंड मसूद अजहर पर प्रतिबंध नहीं लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति की कार्यशैली पर सवाल उठाया है। भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों को कभी भी आतंकियों पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध स्वीकार न करने का कारण नहीं बताया जाता। आखिर किस वजह से यूएन ने मसूद पर प्रतिबंध नहीं लगाया, इसकी वजह बताई जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने गुरुवार को सुरक्षा परिषद की अलकायदा एवं तालिबान से जुड़ी प्रतिबंध समितियों के कामकाज को लेकर अपनाई जाने वाली गोपनीयता की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य आतंकियों को प्रतिबंधित करने के अनुरोधों पर कैसे फैसला लेते हैं। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों को अंधेरे में रखा जाता है। उन्होंने एक खुली बहस के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कहा कि अलकायदा, तालिबान और आईएस से संबंधित प्रतिबंध समितियों की प्रक्रियाओं को लेकर सर्वसम्मति और गोपनीयता की समीक्षा की जरूरत है। पिछले महीने यूएन में मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने पर फैसला होना था।
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नई दिल्ली: फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के मुद्दे पर चल रही बातचीत ‘अंतिम चरण’ में पहुंच गई है। भारत और फ्रांस कीमत के मुद्दे पर अपने मतभेदों में कमी लाने में सफल हो गए हैं। सरकारी सूत्रों ने बताया कि अब तक करार पूरा नहीं हुआ है, लेकिन यह ‘अंतिम चरण’ में है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब करीब चार महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए एक सहमति-पत्र पर दस्तखत किए थे। राफेल करार की कीमत में कमी लाने के लिए भारत लगातार बातचीत कर रहा था। सूत्रों ने बताया कि पिछली यूपीए सरकार की निविदा के मुताबिक, लागत में बढ़ोत्तरी और डॉलर की दर ध्यान में रखते हुए, 36 राफेल 65,000 करोड़ रुपए से थोड़ी ज्यादा कीमत पर खरीदे जा सकेंगे। इसमें विमान में किए जाने वाले उन बदलावों पर आने वाला खर्च भी शामिल है जिसकी मांग भारत ने की है। उन्होंने बताया, ‘कोशिश यह है कि कीमत आठ अरब यूरो (59,000 करोड़ रुपए) से नीचे लाई जाए।’ सूत्रों ने बताया कि फ्रांस भारत की शर्तों पर कमोबेश सहमत हो गया है। अंतिम करार मई के अंत तक पूरा हो जाने की संभावना है।
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नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को कहा कि हमें जो राष्ट्र बनाना है वह सहिष्णु, समरसतापूर्ण और शांतिपूर्ण होना चाहिए जहां अंतिम व्यक्ति को देश की गाथा का हिस्सा होने का ऐहसास हो। भारतीय आयुध कारखाना सेवा के परीवीक्षा अधिकारियों के बैच को राष्ट्रपति भवन में संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि हमें नागरिक सेवकों, तकनीक के जानकारों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों और विचारकों के तौर पर जो राष्ट्र बनाना है वह एक ऐसा भारत हो जो उसके सभी नागरिकों को अच्छी और संतोषप्रद जिंदगी सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा, ‘यह एक स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, डिजिटल तौर पर सशक्त भारत, शिक्षित और कुशल भारत होना चाहिए तथा एक सहिष्णु, समरसतापूर्ण और शांतिपूर्ण भारत हो जहां अंतिम व्यक्ति खुद को देश की गाथा का हिस्सा महसूस करे। मेरी सरकार इस संबंध में कई पहल कर रही है।’ मुखर्जी ने शस्त्र प्रणाली में आत्मनिर्भरता की जरूरत रेखांकित करते हुए कहा कि यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक विफल गोली के साथ देश की रक्षा कर रहे एक जवान की जिंदगी दांव पर लगी होती है। उन्होंने कहा कि दुनिया में आर्थिक मंदी के बावजूद हमने पिछले वित्त वर्ष में सर्वोच्च विकास दर दर्ज की है।
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