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लखनऊ: समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जोरदार जीत को अप्रत्याशित बताते हुए शनिवार को कहा कि अब वह कह सकते हैं कि लोकतंत्र में समझाने से नहीं, बहकाने से वोट मिलता है। विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद पहली बार मीडिया से मुखातिब हुए अखिलेश ने कहा ‘पूरे चुनाव में मुझे नहीं लगा कि ऐसा होगा। मेरी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ती थी। पता नहीं क्या हुआ। हम देखना चाहते हैं कि अब समाजवादियों से भी अच्छा काम क्या होगा।’ अखिलेश यादव ने कहा यूपी के राज्यपाल राम नाईक को अपना इस्तीफा सौंपा। अपने राजनीतिक भविष्य की जिम्मेदारी के सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा कि हार की समीक्षा के बाद ही कोई जिम्मेदारी लूंगा। अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के फैसले के सही बताया। अखिलेश यादव ने अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों को गिनाते हुए कहा कि हम उम्मीद करते है कि आने वाली सरकार पहली कैबिनेट में ही किसानों का कर्ज माफ कर देगी। उन्होंने टीस भरे अंदाज में कहा ‘मैं समझता हूं कि लोकतंत्र में समझाने से नहीं बहकाने पर वोट मिलता है। गरीब को अक्सर पता ही नहीं होता कि वह क्या चाहता है। किसान को पता ही नहीं होता कि उसे क्या मिलने जा रहा है। मैं समझता हूं कि जनता कुछ और सुनना चाहती रही होगी। मैं उम्मीद करता हूं कि अगली सरकार समाजवादी सरकार से ज्यादा अच्छा काम करेगी।’
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों में अब तक के रुझानों में भाजपा प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ रही है। वहीं अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की करारी हार होती दिख रही है। रुझानों पर अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि यह समाजवादियों की नहीं, घमंडियों की हार हुई है। शिवपाल सिंह यादव ने कहा, 'यूपी चुनाव में समाजवादियों की नहीं, घमंडी लोगों की हार हुई है। राज्य की जनता ने उन लोगों को सबक सीखा दिया है, जिन्होंने घमंड में आकर मेरा अपमान किया और नेताजी को हटाया।' जसवन्तनगर सीट से खुद शिवपाल सिंह यादव आगे चल रहे हैं। मालूम हो कि शिवपाल सिंह यादव पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 11 मार्च को नई पार्टी बना सकते हैं। पिछले साल चाचा शिवपाल सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव के बीच मनमुटाव सामने आई थी। टिकट बंटवारे को लेकर झगड़ा बढ़ने पर अखिलेश यादव ने उन्हें सरकार और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था। उसके बाद से ही शिवपाल यादव बेहद नाराज दिख रहे थे।
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लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी विधानसभा चुनावों में हार के बाद ईवीएम पर गड़बड़ी का आरोप लगाया। इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव रद्द करके दोबारा से बैलेट पेपर से चुनाव कराने को कहा। मायावती ने कहा कि ईवीएम की गड़बड़ी के चलते उनकी पार्टी चुनाव हारी है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम बहुल इलाकों में भी ज्यादातर वोट भाजपा को ही मिले है। जिससे आशंकाओं को और बल मिलता है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने किसी भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया। जबकि यूपी में 18 से 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट बैंक है। उसके बावजूद भाजपा को जीत मिली है। ये बात हमारे पार्टी के ही नहीं किसी के भी गले में नहीं उतर रही है। उन्होंने कहा कि 2014 के चुनावों में भी ईवीएम में इस तरह की गड़बड़ी की आशंका व्यक्त की गई थी। उत्तर प्रदेश में वोटिंग मशीन की यह चर्चा आम रही है बटन कोई सा भी दबाओ वोट बीजेपी को ही जाएगा। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में भी इस तरह की गड़गड़ी का आरोप लगा है। आखिरी चरण से पहले मेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने यह सवाल किया था। उन्होंने कहा कि वह पत्रकार आज नजर भी नहीं आ रहा है। मायावती ने कहा कि इस मुद्दे पर अब खामोश रहना लोकतंत्र के लिए हानिकारक होगा और भाजपा को चेतावनी दी कि अगर वह दूध का दूध पानी का पानी सामने लाना है तो पुरानी व्यवस्था के तहत चुनाव कराए।
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लखनऊ: रंगों के त्यौहार से ऐन पहले उत्तर प्रदेश में शनिवार को चुनाव नतीजों का पिटारा खुलने के साथ ही यह तय हो जाएगा कि इस बार कौन होली मनाएगा और किसकी उम्मीदें बदरंग हो जाएंगी। इस बार चुनाव में लगभग सभी दलों का काफी कुछ दांव पर है और यह चुनाव कइयों का भविष्य तय कर सकता है। नोटबंदी जैसे साहसिक फैसले के बाद हो रहा यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता तो तय करेगा ही। सपा के नये अध्यक्ष मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की साख और भविष्य को भी काफी हद तक तय कर देगा। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी के प्रति आश्वस्त बसपा का भविष्य भी काफी हद तक इन चुनाव के परिणामों पर टिका है। हालांकि विभिन्न ‘एग्जिट पोल’ में भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर के दावे किये गये हैं, मगर दोनों ही बहुमत से दूर हैं। इसके अलावा बसपा को तीसरे नम्बर पर बताया जा रहा है। बहरहाल, पिछले कई चुनावों के अनुभव ज्यादातर एग्जिट पोल के पक्ष में गवाही नहीं देते। अब सारी निगाहें 11 मार्च को मिलने वाले जनादेश पर टिक गयी हैं। इस साल जनवरी में सपा में बगावत के बाद अपने पिता मुलायम सिंह यादव के स्थान पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश ने इन चुनाव में पहली बार बिना किसी दबाव के अपने हिसाब से पार्टी के रणनीतिक मामलों तथा टिकट वितरण के बारे में फैसले लिये, जिनकी कई मौकों पर सख्त मुखालफत भी की गयी, मगर वह अपने निर्णय पर अडिग रहे।
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