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नई दिल्ली: कांग्रेस ने अरुण जेटली के खिलाफ सुब्रह्मण्यम स्वामी के आक्षेप को आज ‘‘खुला युद्ध’’ करार दिया और कहा कि स्वामी वित्त मंत्री बनना चाहते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने एआईसीसी ब्रीफिंग में संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह एक कामेडी थिएटर है। इसका गंभीर असर है, जबकि ‘‘ब्रेक्जिट’’ संकट सामने है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे समय विदेश मंत्रालय के और वित्त मंत्रालय के संयुक्त नेतृत्व की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह कामेडी थियेटर जारी है तथा प्रधानमंत्री, डा स्वामी को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं या वह किसी के इशारे पर काम कर रहे हैं। डा स्वामी जो वित्त मंत्री बनना चाहते हैं और मौजूदा वित्त मंत्री के बीच यह खुला युद्ध है।’’ ‘‘ब्रेक्जिट’’ के बारे में चव्हाण ने कहा कि इसका भारत पर ‘‘असर’’ होगा क्योंकि भारत ब्रिटेन में सबसे बड़ा निवेशक है और ‘‘मैं समझता हूं कि अगर भारतीय कंपनियों को अच्छा करना है तो हमारे हितों की रक्षा करनी होगी।'' उन्होंने उम्मीद जताई कि यूरोपीय यूनियन मतदान के नतीजे को लेकर सरकार कोई कार्ययोजना लाएगी।

ताशकंद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ताजिकिस्तान और बेलारूस के राष्ट्रपतियों से अलग-अलग द्विपक्षीय बातचीत की और संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों के साथ कारोबार और निवेश के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने यहां उज्बेकिस्तान की राजधानी में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक सम्मेलन के इतर बैठक की। मोदी और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेंको के बीच बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के विविध पहलुओं की समीक्षा की और संबंधों को नई उंचाइयों पर ले जाने की जरूरत पर बल दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'बैठक के दौरान, दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान देने वाले भारत और बेलारूस के बीच राजनयिक संबंधों के 25 साल पूरे होने पर चर्चा की।' उन्होंने कहा, 'दोनों पक्षों ने संबंधों को नई उंचाइयों पर ले जाने की जरूरत पर बल दिया। चर्चा के प्रमुख क्षेत्र कारोबार बढ़ाना, बेलारूस की पोटाश खदानों में भारतीय निवेश की संभावना को प्रेरित करना और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग विशेषकर युवा प्रतिभा को बढ़ावा देना थे।'

ताशकंद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ताजिकिस्तान और बेलारूस के राष्ट्रपतियों से अलग-अलग द्विपक्षीय बातचीत की और संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों के साथ कारोबार और निवेश के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने यहां उज्बेकिस्तान की राजधानी में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक सम्मेलन के इतर बैठक की। मोदी और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशेंको के बीच बैठक में दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के विविध पहलुओं की समीक्षा की और संबंधों को नई उंचाइयों पर ले जाने की जरूरत पर बल दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'बैठक के दौरान, दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान देने वाले भारत और बेलारूस के बीच राजनयिक संबंधों के 25 साल पूरे होने पर चर्चा की।' उन्होंने कहा, 'दोनों पक्षों ने संबंधों को नई उंचाइयों पर ले जाने की जरूरत पर बल दिया। चर्चा के प्रमुख क्षेत्र कारोबार बढ़ाना, बेलारूस की पोटाश खदानों में भारतीय निवेश की संभावना को प्रेरित करना और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग विशेषकर युवा प्रतिभा को बढ़ावा देना थे।'

नई दिल्ली: परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सोल में हुई बैठक के दौरान भारत की सदस्यता के आवदेन पर कोई निर्णय नहीं किये जाने को ‘भारत के लिए शर्मनाक’ बताते हुए कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ये समझने की जरूरत है कि कूटनीति में ‘गहराई और गंभीरता की आवश्यकता होती है सार्वजनिक स्तर पर तमाशे’ की नहीं। पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता आनन्द शर्मा ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि एनएसजी सदस्यता के मुद्दे पर भारत ने अपनी हताशा क्यों जाहिर की और देश की तुलना पाकिस्तान से क्यों होने दी।’ उन्होंने कहा, ‘अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह महसूस करना चाहिए कि कूटनीति में गंभीरता और गहराई की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री मोदी को यह समझने की जरूरत है कि कूटनीति में गंभीरता की जरूरत होती है सार्वजनिक स्तर पर तमाशे की नहीं।’ शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, ‘पूरे विश्व ने देखा कि प्रधानमंत्री ने खुद को और भारत को तमाशा बना दिया। अब भारत को अनावश्यक रूप से शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है।’ उन्होंने कहा कि संबद्ध देशों को अपने पक्ष में करने के लिए मोदी सरकार द्वारा किया गया इतना अधिक प्रयास गैर-जरूरी था। शर्मा ने कहा, ‘हम लोगों का मानना है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के लिए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को इतनी अधिक पैरवी करनी चाहिए थी। एनएसजी देशों के बीच परमाणु व्यापार में जब कोई बाधा नहीं है तो ऐसे में ये अनावश्यक था।’

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