लखनऊ: अयोध्या में 25 नवंबर को होने वाली विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और उद्धव ठाकरे की रैली पर मंदिर की जमीन के दावेदार निर्मोही अखाड़े को एतराज़ है। वीएचपी कानून से मंदिर बनाने की मांग को लेकर अयोध्या में रैली कर रहा है जबकि निर्मोही अखाड़ा चाहता है कि मंदिर जबरदस्ती नहीं बल्कि समझौते से बने। राम जन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी ने भी इसे वीएचपी और शिवसेना की चुनाव से पहले की राजनीति बताया है।
वीएचपी और शिवसेना की रैली को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि मंदिर के लिए यह कोशिश साढ़े चार साल पहले क्यों नहीं हुई? चुनाव के वक्त ही मंदिर मुद्दा क्यों उठाते हैं? अयोध्या में ढाई लाख की भीड़ जमा करने का मकसद क्या है? बाहर से जुटाई गई भीड़ को काबू कौन करेगा? राम मंदिर के लिए जमा हुए हजारों करोड़ का हिसाब क्या है? अयोध्या में झगड़े वाली जमीन को हाईकोर्ट ने जिन तीन दावेदारों को बांटा था उसमें एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़े को दी थी, जो कि शुरू से ही मंदिर का मुकदमा लड़ रहा है।
निर्मोही अखाड़े के महंत और राम मंदिर के पक्षकार दिनेंद्र दास ने कहा कि मालिकाना हक निर्मोही अखाड़े का है तो विश्व हिंदू परिषद वालों को हमेशा निर्मोही अखाड़े का सहयोग करना चाहिए. लेकिन यह सहयोग करेंगे नहीं। यह तो जिंदगी में जो लूटने वाले हैं वह हमेशा लूटने का प्रयास करेंगे और दंगा करने का प्रयास करेंगे। राम लला के लिए उनका विश्वास नहीं है, उनका तो लक्ष्मी जी पर विश्वास है।
अयोध्या में वीएचपी और शिवसेना की रैलियों के लिए तैयारी शुरू हो गई है। मैदान रैली के लिए तैयार किया जा रहा है। लेकिन राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी कहते हैं कि यह सब भगवान के लिए नहीं बल्कि चुनाव के लिए हो रहा है। राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि अब चूंकि 2019 का चुनाव आ रहा है और देख रहे हैं कि इनके छह महीने और बाकी हैं और मंदिर नहीं बना पाए। मंदिर नहीं बना पाए तो इसका मतलब है कि मंदिर नहीं बना पाएंगे, तो फिर से इस प्रकार से राम भक्तों को गुमराह करके कोई घोषणा करेंगे।
कुछ इसी तरह की बात मुकदमे के एक और पैरोकार धर्मदास भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर जो धंधा करेगा, उसका नष्ट ही होता है। आज से नहीं, अनादि काल से सुना गया है। जो धर्म को बेचता है न तो वह उसके पाप लेकर घूमता है। कई लोग कहते हैं कि 1992 जैसी भीड़ और उन्माद पैदा करना अब किसी के लिए मुमकिन नहीं है। 1992 में एक मस्जिद वहां खड़ी थी, जिसे नफरत का सबब बना दिया गया था। अब मस्जिद जमींदोज़ हो चुकी है और वहां सिर्फ रामलला की मूर्ति है। केन्द्र में भाजपा की सरकार है और राज्य में भी। फिर भीड़ वहां किससे लड़ने जाएगी? लेकिन अगर वाकई ज्यादा भीड़ आती है तो अपने साथ तमाम अंदेशे भी लाती है।