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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने शुक्रवार को लखनऊ में अपनी नई पार्टी के गठन का औपचारिक ऐलान कर दिया । एससी/एसटी एक्ट का विरोध और प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध पार्टी का मुख्य मुद्दा होगा। उनकी पार्टी का नाम जनसत्ता पार्टी हो सकता है। उन्होंने बताया कि जनसत्ता पार्टी, जनसत्ता लोकतांत्रिक पार्टी और जनसत्ता दल, तीन नाम चुनाव आयोग को भेजे गए हैं। पार्टी के चुनाव चिह्न के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा गया है। अभी तक चुनाव आयोग ने नाम और चुनाव चिह्न आबंटित नहीं किया है।

शुक्रवार को अपने आवास पर एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि वह इस बार लगातार छठी बार निर्दलीय विधायक चुने गये हैं। क्षेत्र की जनता की मांग पर अब वह अपनी एक अलग पार्टी बना रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी मैदान में उतरेगी या नहीं इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस बारे में अभी कुछ सोचा नहीं है क्योंकि अभी तक चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर अंतिम मुहर नहीं लगायी है।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के बारे में फैसला करने के बाद वह पार्टी की एक कार्यकारिणी का गठन करेंगे । इसके बाद एक रैली का आयोजन किया जाएगा और इस बात पर विचार किया जायेगा कि लोकसभा चुनाव लडा जाये या नहीं।

'एससी-एसटी ऐक्ट पर केंद्र को घेरते हुए राजा भैया ने कहा कि यह कदम न्यायोचित नहीं है। इस तरह के मामले में पहले विवेचना और उसके बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए। वह दलितों का विरोध नहीं करते बल्कि उनके हिमायती और हमदर्द हैं लेकिन एससी एसटी एक्ट के नाम पर जिस तरह अगडी जातियों का उत्पीड.न होता है उसका वे विरोध करते हैं । प्रोन्नति में भी किसी को जाति के आधार पर नहीं बल्कि उसके काम और योग्यता के आधार पर अवसर दिया जाना चाहिये।'

गौरतलब है कि प्रतापगढ़ और इलाहाबाद जिले के कुछ हिस्सों में राजा भैया का अच्छा खासा प्रभाव है। उनकी छवि एक दबंग क्षत्रीय नेता की है। विवादास्पद बाहुबली राजा भैया भाजपा के कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह और सपा के अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री पद पर रह चुके हैं। ठाकुर समुदाय के वोटों पर उनका अच्छा प्रभाव माना जाता है।

राजा भैया पर करीब 48 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और वह काफी समय तक जेल में भी रहे हैं। इसके बावजूद वह अखिलेश सरकार में कारागार मंत्री भी रहे। नवंबर 2002 में मायावती ने राजा भैया पर पोटा कानून के तहत कार्रवाई भी की थी लेकिन 2003 में मुलायम सिंह यादव के सत्ता संभालने के आधा घंटे बाद ही सारे मामले हटा लिये गये थे।

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