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बंगलूरू: कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी को कांग्रेस-जद(एस) गठगबंधन सरकार के महज 14 महीने पूरे होने के बाद ही गुरुवार को विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों के एक वर्ग के बागी होने के बाद राज्य में सियासी संकट पैदा हो गया है। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि गठबंधन बचता है लेकिन लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए हमें इस साजिश पर चर्चा करनी चाहिए।

सत्तारूढ़ गठबंधन में संख्याबल कम होने पर कुमारस्वामी एक पंक्ति का प्रस्ताव लाये और उन्होंने कहा कि सदन ने उनके नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में विश्वास जताया। जैसे ही प्रस्ताव लाया गया विपक्षी भाजपा नेता बी एस येद्दियुरप्पा खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि विश्वास मत की प्रक्रिया एक ही दिन में पूरी होनी चाहिए। इस पर कुमारस्वामी ने येद्दियुरप्पा पर तंज कसते हुए कहा, विपक्ष के नेता काफी जल्दबाजी में दिख रहे हैं। भाजपा इस बात को लेकर आशंकित है कि सत्तारूढ़ गठबंधन मतदान होने से पहले संख्याबल को मजबूत करने के अंतिम प्रयास में जितना संभव हो सके उतना समय बिताने के लिए बहस को लंबा खींचने की कोशिश करेगा।

बंगलूरू: कर्नाटक में सत्तारूढ़ जेडीएस-कांग्रेस सरकार आज (18 जुलाई) विधानसौध में फ्लोर टेस्ट का सामना करने जा रही है। फ्लोर टेस्ट से पहले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता येदियुरप्पा ने कहा कि हम 101 फीसदी आश्वस्त हैं। उनकी संख्या 100 से कम है और हम 105 हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनकी हार होगी। फ्लोर टेस्ट के दौरान बसपा विधायक एन महेश सदन में मौजूद नहीं हैं। फ्लोर टेस्ट के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने विधान सौध में कहा कि मैं सिर्फ इसलिए यहां नहीं आया हूं क्योंकि इस पर सवाल है कि मैं गठबंधन सरकार चला सकता हूं या नहीं। घटनाओं से पता चला है कि कुछ विधायकों द्वारा भी अध्यक्ष की भूमिका को खतरे में डाल दिया गया है।

वहीं, विश्वासमत से पहले बुधवार को जेडीएस-कांग्रेस सरकार का भविष्य अधर में लटकता दिखा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि कांग्रेस-जदएस के बागी 15 विधायकों को जारी विधानसभा सत्र की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के बागी विधायक बी सी पाटिल ने मीडिया को जारी एक वीडियो में कहा, हम माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय से खुश हैं, हम उसका सम्मान करते हैं।

नई दिल्ली: कर्नाटक में 18 जुलाई को विधानसभा में विश्वासमत से पहले बुधवार को कांग्रेस-जदएस सरकार का भविष्य अधर में लटकता दिखा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले, कि सत्ताधारी गठबंधन के भविष्य के फैसले के लिए बागी विधायकों को विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, के बाद बागी विधायकों के सुर नरम नहीं पड़े। ऐसे में जबकि गठबंधन सरकार जरूरी संख्याबल हासिल करने के प्रयास में थी सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि कांग्रेस-जदएस के बागी 15 विधायकों को जारी विधानसभा सत्र की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

अदालत के फैसले को राजनीतिक हलकों में बागी विधायकों के लिए राहत माना गया क्योंकि इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि उन्हें एक विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहते हैं या उससे दूर रहना चाहते हैं। अदालती आदेश के बाद मुंबई में बागी कांग्रेस-जदएस विधायकों ने कहा कि उनके इस्तीफे या सत्र में हिस्सा लेने को लेकर उनके पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता।

नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष को कांग्रेस-जद(एस) के 15 बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने का निर्देश देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बागी विधायकों के इस्तीफों पर स्पीकर अपनी इच्छा से फैसला ले सकते हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बागी विधायकों को सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। फैसला सुनाते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि मामले में संवैधानिक संतुलन बनाना जरूरी है, जो सवाल उठे हैं उनके जवाब बाद में तलाशे जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में सभी पक्षों की ओर से जोरदार दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बागी विधायकों ने आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार बहुमत खो चुकी गठबंधन सरकार को सहारा देने की कोशिश कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारी होने के नाते उन्हें इन विधायकों के इस्तीफे पर पहले फैसला करने और बाद में उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग पर फैसला करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।

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