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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुईयां की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई संबंधी सारे मूल दस्तावेज ट्रांसलेशन के साथ दाखिल करने कहा है। दोनों पक्षों से 16 अक्तूबर तक लिखित दलील मांगी गयी है।

बिलकीस के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उनकी 3 साल की बेटी सहित उनके 7 रिश्तेदारों की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की समय से पहले रिहाई को चुनौती दी गई थी। 11 दिनों तक यह सुनवाई चली। बिलकीस, जनहित याचिकाकर्ता और केंद्र व गुजरात सरकार की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर बड़े सवाल उठाए। कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा था कि दोषियों को मौत की सजा के बाद उम्रकैद की सजा मिली। ऐसे में वो 14 साल की सजा काटकर कैसे रिहा हुए?

अहमदाबाद: वाइब्रेंट गुजरात समिट के 20 पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोधरा कांड को भी याद किया और कहा कि उस समय उन्हें सरकार चलाने का ज्यादा अनुभव नहीं था। जबकि कुछ लोग अपना एजेंडा चला रहे थे।

'गुजरात को संकट से निकालने का लिया था संकल्प'

उन्होंने कहा, "गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में हिंसा भड़क उठी थी। उस समय एक मुख्यमंत्री के रूप में मेरे पास ज्यादा अनुभव नहीं था, फिर भी मुझे गुजरात की जनता पर बहुत भरोसा था। कुछ लोग अपना एजेंडा चला रहे थे। उन्होंने गुजरात को बदनाम करने की साजिश रची और लोगों ने नकारात्मकता फैलाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने सोचा कि गुजरात नष्ट हो गया है, लेकिन हमारी सरकार ने ध्यान केंद्रित किया और गुजरात को इस नकारात्मकता से उबारने के लिए सही निर्णय लिए।"

पीएम मोदी ने आगे कहा, "जो लोग एजेंडा लेकर चलते थे वे उस समय भी घटनाओं का अपने तरीके से आंकलन करने में जुटे हुए थे। कहा गया कि गुजरात से युवा, व्यापारी, उद्योग सब पलायन कर जाएंगे।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2002 गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने पूछा कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है?

न्यायाधीश बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील से सवाल किया कि क्या किसी दोषी की ओर से कारावास की सजा में छूट मांगने का अधिकार संविधान में किसी मौलिक अधिकार के तहत आता है? क्या सजा में छूट की मांग करने वाले दोषियों की ओर से संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर की जा सकती है?

एक दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वी चितांबरेश ने तर्क दिया कि केवल अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिकाएं, जिन्हें हाईकोर्ट के समक्ष दायर किया जाता है, छूट की मंजूरी या अस्वीकृति को चुनौती देने के लिए स्वीकार्य हैं। उन्होंने कहा, यह केवल उन दोषियों के लिए उपलब्ध है जिनके मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं।

नई दिल्ली: बिलकिस बानो केस पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (14 सितंबर) को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय से पहले रिहाई पर फिर सवाल उठाए हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम सजा में छूट की अवधारणा के खिलाफ नहीं हैं। कानून में इसे अच्छी तरह से स्वीकार किया गया है। स्पष्ट करें कि ये दोषी कैसे माफ़ी के योग्य बने। इसके साथ ही दोषियों को बहुत दिनों की पैरोल का भी मौका मिला।"

शीर्ष अदालत ने पूछा कि कैसे कुछ दोषियों को विशेषाधिकार दिया जा सकता है? इस मामले पर अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी।

इस दौरान जस्टिस लूथरन ने कहा कि इस मामले में केवल दोषियों की रिहाई पर बात हो। मामले की क्रूरता पर नहीं। उन्होंने कहा कि दोषियों को पहले ही अपराध को लेकर सजा दी चुकी है। इसके पहले सुनवाई 30 अगस्त को हुई थी। तब कोर्ट ने मुंबई की ट्रायल कोर्ट में जुर्माना भरने पर एक दोषी को फटकार लगाई थी। अदालत ने कहा था कि आपने कोर्ट की अनुमति के बिना जुर्माना क्यों भरा?

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