नई दिल्ली: कांग्रेस ने जनगणना में लगातार हो रही देरी पर चिंता जाहिर करते हुए मंगलवार को संसद में जनगणना के साथ-साथ जातीय जनगणना कराने की मांग एक बार फिर उठाई। राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि दशकीय अंतराल पर होने वाली जनगणना में देरी के कारण बड़ी संख्या में नागरिक कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हो रहे हैं और आश्चर्य है कि आपात हालातों में भी कभी बाधित नहीं होने वाली जनगणना को सरकार लगातार टाल रही है। खड़गे ने शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए कहा कि भारत 1881 से हर 10 साल में जनगणना करता आ रहा है। युद्ध, आपातकाल या अन्य संकटों के दौरान भी जनगणना की जाती रही।
कांग्रेस अध्यक्ष ने सरकार को यह भी याद दिलाया कि 1931 में नियमित जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना हुई थी और इस जनगणना से ठीक पहले महात्मा गांधी ने कहा था कि जिस तरह हमें अपने स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए समय-समय पर चिकित्सा जांच की आवश्यकता होती है, उसी तरह जनगणना किसी राष्ट्र के लिए सबसे परीक्षण होती है।
जनगणना के साथ जातिगत जनगणना भी हो: खड़गे
उन्होंने कहा कि दूसरे विश्वयुद्ध और 1971-72 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बावजूद भी उस समय जनगणना हुई थी। इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने जनगणना में रिकॉर्ड देरी की है।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से कहा कि जनगणना के साथ जातिगत जनगणना भी करानी चाहिए ताकि एससी और एसटी ही नहीं अन्य जातियों का आंकड़ा जुटा सकें मगर लेकिन सरकार इन दोनों पर मौन है।
जनगणना के लिए इस साल के बजट में भी केवल 575 करोड़ रुपये का आवंटन है। कोविड-19 महामारी खत्म होने के बाद अन्य देशों में जनगणना कराए जाने का जिक्र करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि दुनिया के 81 प्रतिशत देशों ने कोरोना के बावजूद जनगणना का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
इसमें हो देरी के दूरगामी परिणाम होंगे और कल्याणकारी कार्यक्रम जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करते हैं। लेकिन लगातार विलंब के कारण करोड़ों नागरिक कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच से बाहर हो चुके हैं ओर इसलिए सरकार से निवेदन है कि तत्काल जनगणना और जातिगत जनगणना का काम शुरू कराए।