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बेरूत: सीरिया के निगरानी समूह ने आरोप लगाया है कि विद्रोही कई परिवारों को पूर्वी अलेप्पो छोड़कर जाने से रोक रहे हैं, क्योंकि रूस समर्थित सरकारी बलों ने विद्रोहियों के घेरेबंदी वाली जगह पर बमबारी तेज कर दी है। बहरहाल, सीरिया और रूस की सरकारी मीडिया इस बात पर कायम है कि विद्रोहियों ने मानव शरणस्थली के रूप में प्रयुक्त 275,000 एन्क्लेव पर कब्जा किया है, यहां तक कि सरकारी वायुसेना ने भी पूर्वी इलाकों के अस्पतालों और प्रथम प्रतिक्रिया समूहों पर हमले किए हैं। दूसरी ओर विद्रोही यह दिखाना चाहते हैं कि नागरिक कभी भी सरकार के कड़े नियम-कायदों की ओर लौटना स्वीकार नहीं करेंगे। रूस सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन करता है। सीरियन आब्जर्वेटरी फॉर ह्युमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार 100 परिवार अभी इस जगह को छोड़कर जाने का इंतजार कर रहे हैं, जबकि वाईपीजी की सहयोगी ‘सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस’ ने कहा कि ढाई सौ नागरिक जाने की तैयारी में हैं।
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वॉशिंगटन: अमेरिका के पूर्व वित्तमंत्री लॉरेंस एच. समर्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी अभियान की तीव्र आलोचना की है। उन्होंने अव्यवस्था का कारण बने इस अभियान के दीर्घकालिक लाभ को लेकर न सिर्फ संदेह जताया, बल्कि उन्होंने महसूस किया है कि इससे लोगों का सरकार में भरोसा उठ गया है। यहीं नहीं यह उपाय भ्रष्टाचार रोकने में भी सक्षम नहीं है। समर्स ने हार्वड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की शोध छात्रा नताशा सरीन के साथ एक ब्लॉग में यह लिखा है । इसमें कहा गया है कि इस कदम ने अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है और यह मुक्त समाज की भावना के खिलाफ है। यह कदम किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा देने तथा कई अपराधियों को मुक्त कर देने का पक्ष लेता है। ब्लॉग में 1000 और 500 रुपये के नोट बंद करने की नाटकीय कार्रवाई पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा गया है कि यह दशकों में दुनिया में कहीं भी मुद्रा नीति में हुआ सबसे व्यापक बदलाव है। इसमें कहा गया है कि ऐसा होने वाला है कि जिन लोगों ने नोट अभी रखे हैं, उनका कोई मोल नहीं रह जाएगा। इसकी वजह से भारत में खलबली और अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई है। छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारी जो अपना अधिकतर व्यवसाय नकदी से ही करते हैं। उनकी दुकानें वीरान नजर आ रही हैं। आम भारतीयों का पिछला हफ्ता पुराने नोट बदले जाने की उम्मीद में बैंकों के सामने ही खड़े गुजरा।
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वॉशिंगटन: अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के टॉप अधिकारियों और पत्रकारों को एक निजी बैठक के लिए बुलाया और इस दौरान उन पर हमला बोलते हुए उन्हें 'बेईमान’ और ‘धूर्त झूठे’ कहा है। ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने बैठक में हिस्सा लेने वालों के हवाले से कहा, ‘चुनाव के बाद संबंध बेहतर बनाने के लिए सदभावनापूर्ण रूख अपनाने के बजाय ट्रंप आक्रामक थे।’ ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने कहा, ‘उन्होंने सम्मेलन के दौरान मेज के चारों ओर बैठे समूह से शांत लहजे में कहा कि वे लोग अपने दर्शकों को निष्पक्ष और सटीक कवरेज देने में विफल रहे हैं। ट्रंप ने उन लोगों से कहा कि वे उन्हें (ट्रंप को) और उनके द्वारा लाखों अमेरिकियों से की गई अपीलों को समझने में विफल रहे हैं।’ अखबार के अनुसार, 70 वर्षीय ट्रंप ने कल न्यूयार्क में टीवी पत्रकारों और अधिकारियों की बैठक में कवरेज को बयां करने के लिए ‘पक्षपाती’ और ‘बेईमान’ शब्द का प्रयोग बार-बार किया। बैठक में मौजूद चर्चित खबर प्रस्तोताओं में एबीसी न्यूज के प्रस्तोता जॉर्ज स्टीफनोपोलस एवं डेविड मुइर, सीएनएन के वूल्फ ब्ल्ट्जिर एवं एरिन बर्नेट और एबीसी की संवाददाता मार्था राडात्ज थे। ट्रंप ने मीडिया के जिन अधिकारियों से बात की, उनमें सीएनएन वर्ल्डवाइड के अध्यक्ष जेफ जकर, एनबीसी न्यूज के अध्यक्ष देबोराह टरनेस, एमएसएनबीसी के अध्यक्ष फिल ग्रिफिन, एबीसी न्यूज के अध्यक्ष जेम्स गोल्डस्टोन, फॉक्स न्यूज के चार शीर्ष अधिकारी शामिल थे।
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इस्लामाबाद: पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने कहा है कि पाकिस्तान के पास अमेरिका में भारत की लामबंदी का मुकाबला करने तथा डोनाल्ड ट्रंप के नये प्रशासन के साथ तत्काल संपर्क कायम करने का स्वर्णिम अवसर है। मुशर्रफ ने कहा, ‘पाकिस्तान के लिए यह स्वर्णिम मौका है, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को तत्काल कदम उठाने एवं नये अमेरिकी प्रशासन के साथ तत्काल संपर्क कायम करने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि ट्रंप इस क्षेत्र की राजनीतिक पेचीदगियों से अच्छी तरह परिचित नहीं हैं और उन्हें दक्षिण एशिया के संदर्भ में रणनीति बनाना बाकी है। उन्होंने दुनिया न्यूज से कहा कि भारत इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखना चाहता। वह न केवल इस क्षेत्र में बल्कि विश्व में अपने आप को भावी आर्थिक शक्ति के रूप में देखता है। वह न केवल आर्थिक रप से बल्कि कूटनीतिक रप से भी पाकिस्तान को अलग-थलग कर देना चाहता है। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिकी सीनेट में भारतीय कॉकस अधिक सतर्क एवं सक्रिय है, ऐसे मे पाकिस्तान को अमेरिकी गलियारों में पैदा की गयी भारतीय धारणा का मुकाबला करने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने की जरूरत है।
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