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नई दिल्ली: 1987 हाशिमपुरा नरसंहार कांड में दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 दोषी पीएसी जवानों को दी उम्रकैद की सजा सुनाई है। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में सभी 16 पीएसी जवानों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था, जिसके बाद पीड़ित पक्ष इस दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। बता दें कि 31 साल पहले यानि की मई 1987 में हुए इस मामले में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस मुरलीधर एवं न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने निचली अदालत के उस आदेश को पलट दिया जिसमें उसने आरोपियों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने प्रादेशिक आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (पीएसी) के 16 पूर्व जवानों को हत्या, अपहरण, आपराधिक साजिश तथा सबूतों को नष्ट करने का दोषी करार दिया। अदालत ने नरसंहार को पुलिस द्वारा निहत्थे और निरीह लोगों की 'लक्षित हत्या' करार दिया।

 

पीड़ित के पिता बोले- 31 साल बाद मिला इंसाफ

1987 हाशिमपुरा नरसंहार को लेकर पीड़ित के पिता जमालुद्दीन ने कहा- हाईकोर्ट का आदेश हमारे पक्ष में है। हम खुश हैं। हमने 31 साल तक इंतजार किया है। दोषियों को आखिरकार सजा दे दी गई। गौरतलब है कि निचली अदालत द्वारा हत्या तथा अन्य अपराधों के आरोपी 16 पुलिसकर्मियों को बरी करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। दोषी करार दिए गए पीएसी के सभी 16 जवान सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

क्या है हाशिमपुरा कांड

हाशिमपुरा नरसंहार मामले में जवानों पर आरोप था कि उन्होंने एक गांव से पीड़ितों को अगवा कर गंगनहर के पास ले जाकर उनकी हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं हत्या करने के बाद उन जवानों ने सबके शव नहर में फेंक दिए थे। हाईकोर्ट ने इस मामले में बीते छह सितंबर को सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था। 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने अपने फैसले में सभी 16 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की पहचान और उनके खिलाफ लगे आरोपों को बिना शक साबित नहीं कर पाया।

ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को यूपी सरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कुछ अन्य पीड़ितों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके अलावा भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी याचिका दायर कर तत्कालीन मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका की जांच के लिए अलग से याचिका दायर की थी। अदालत ने सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। हालांकि मामले में 17 आरोपी बनाए गए थे लेकिन ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई थी। फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया, तो वेस्ट यूपी में माहौल गरमा गया। इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ। कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं। इसके बाद भी मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी। इन सबको देखते हुए मई के महीने में मेरठ शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और शहर में सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला।

इसी बीच 22 मई 1987 को पुलिस, पीएसी और मिलिट्री ने हाशिमपुरा मोहल्ले में सर्च अभियान चलाया। आरोप है जवानों ने यहां रहने वाले किशोर, युवक और बुजुर्गों सहित कई 100 लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गई। शाम के वक्त पीएसी के जवानों ने एक ट्रक को दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे। उस ट्रक में करीब 50 लोग थे। वहां ट्रक से उतारकर जवानों ने लोगों को गोली मारने के बाद एक-एक करके गंग नहर में फेंका गया दिया। इस घटना के बाद करीब 8 लोग सकुशल बच गए थे। जिन्होंने बाद में थाने पहुंचकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसके बाद हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बना।

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