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(सुरेन्द्र सुकुमार) प्रातः वंदन मित्रो ! कानपुर के हमारे मित्र केजी तिवारी ही हमें हुज़ूर साहब के पास ले गए थे। ज़नाब शाह मंज़ूर आलम साहब को उनके मुरीद हुज़ूर साहब ही कहते थे। उनकी ख़ानक़ाह हीर पैलैस सिनेमा हॉल के पीछे थी। वो रात को एक बजे से सुबह चार बजे तक अपने मुरीदों के साथ बैठते थे। जब हम पहली बार उनसे मिलने गए, तो केजी तिवारी ने हमारा परिचय कराया। उन्होंने बैठने का इशारा किया, हम यह देख कर दंग रह गए कि वहाँ अधिकतर मुरीद कानपुर के शायर और कवि थे, उनमें से कुछ तो हमारे मित्र भी थे।

हुज़ूर साहब सफ़ेद लंबा सा कुर्ता अलीगढ़ कट पाजामा पहने थे और एक ऊनी वस्त्र के आसन पर बैठे हुए थे। हमसे पूछा कि ‘ क्या आप कुछ लिखते पढ़ते भी हैं।‘ इतनी विनम्र आवाज़ तो हमने अपने जीवन में कभी भी नहीं सुनी थी। हमने कहा जी। तो पूछा कि ‘क्या लिखते हैं‘? हमने कहा सबकुछ लिखते हैं। कहानी, कविता, ग़ज़ल, गीत, बगहैरा... तो हल्के से मुसकुराए बोले, ‘बहुत अच्छे ‘।

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में एक भाषण दिया था। यही वो भाषण था जिसने सपेरों का देश कहे जाने वाले भारत को दुनिया भर में पहचान दिलाई थी। यूं तो भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा आजादी की रात को दिए गए भाषण की भी काफी चर्चा होती है। लेकिन स्वामी विवेकानंद का ये भाषण उससे ज्यादा प्रासंगिक इसलिए है क्योंकि उस समय देश गुलामी और दासता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। भारत और भारतवासियों को पश्चिमी देश हेय दृष्टि से देखते थे। यही वजह है 11 सितंबर के इस दिन को हर साल स्वामी जी के उस भाषण की सालगिरह के रूप में याद किया जाता है। इस साल स्वामी जी के दिए गए इस कालजयी भाषण के 125 साल पूरे हो रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इस भाषण की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देश को संबोधित किया। प्रस्तुत हैं उस ऐतिहासिक भाषण के मुख्य अंश:-

सावन का पहला सोमवार आज है। शिव भक्त रात से ही मंदिरों में लाइन लगाना शुरू कर चुके हैं। सुबह होते ही श्रद्धालु शिवालयों में जलाभिषेक करने के लिए जुटने लगे। यूपी के इलाहाबाद, गोंडा और काशी के मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ देखने को बनती है। मंदिरों के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। सबके हाथों में बेल-फूल, दूध-दही और पूजा की सामग्रियों से सजी थाली है। इस साल सावन खास है क्योंकि पांच सोमवार होंगे। आज के दिन बहुत भक्त व्रत करते हैं। हर हर महादेव के जयकारों के साथ भगवान भोलेनाथ जलाभिषेक किया जा रहा है। शिव मंदिरों के बाहर बजते बधाव के बीच पूरा वातावरण भक्ति मय हो गया है। नगर के दुखहरण नाथ मंदिर के बाहर बहुत भीड़ है। इलाहाबाद के मनकामेश्वर मंदिर में भी श्रद्धालु का तांता लगा है। कहते हैं आज के दिन व्रत करने से शिव खुश होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। शिवाय की स्तुति के साथ श्रध्दालुओं ने जलाभिषेक शुरू कर दिया है। भारी बारिश के बाद भी सभी शिव मंदिरों में भक्तों का रेला उमड़ रहा है। इस बार सावन में पांच सोमवार का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।

बुद्ध ने यही कहा है, कि न कोई परमात्मा है, न कोई आकाश में बैठा हुआ नियंता है। तो साधक क्या करें? तो बुद्ध ने कहा है, होश से चले, होश से बैठे, होश से उठे। बुद्ध का एक भिक्षु आनंद पूछने लगा; वह एक यात्रा पर जा रहा था और उसने पूछा कि भगवान, कुछ मुझे पूछना है। स्त्रियों के संबंध में मन में अभी भी काम-वासना उठती है; तो स्त्रियां मिल जाएं तो उनसे कैसा व्यवहार करना? तो बुद्ध ने कहा, “स्त्रियां अगर मिल जाएं तो बचकर चलना। दूर से निकल जाना।” आनंद ने कहा, “और अगर ऐसी स्थिति आ जाए कि बचकर न निकल सकें? तो बुद्ध ने कहा, ” आंख नीची झुकाकर निकल जाना। आनंद ने कहा, और यह भी हो सकता है कि ऐसी स्थिति आ जाए कि आंख भी झुकाना संभव न हो। समझो, कि कोई स्त्री गिर पड़ी हो और उसे उठाना पड़े। या कोई स्त्री कुएं में गिर पड़ी हो और जाकर उसको सहारा देना पड़े; या कोई स्त्री बीमार हो; ऐसी स्थिति आ जाए कि आंख बचाकर भी चलना मुश्किल हो जाए? तो बुद्ध ने कहा, “छूना मत।” और आनंद ने कहा, “अगर ऐसी अवस्था आ जाए कि छूना भी पड़े?तो बुद्ध ने कहा, कि जो मैं इन सारी बातों से कह रहा हूं, उसका सार कहे देता हूं : छूना, देखना, जो करना हो करना–होश रखना। इन सारी बातों में मतलब वही है। स्त्री से बचकर निकल जाना, तो भी होश रखना पड़ेगा। स्त्री को बिना देखे निकल जाना, तो भी होश रखना पड़ेगा। बेहोशी में तो आंख स्त्री की तरफ अपने आप चली जाती है।

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