हिन्दू धर्मावलंबियों का अति महत्वपूर्ण पर्व वासंतिक चैत्र नवरात्र आज (शुक्रवार) से शुरू हो रहा है। हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2073 का भी शुभारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आज से ही हो रहा है। चैत्र नवरात्र पूजन के दौरान ही चैती छठ महापर्व और रामनवमी भी है। सालभर में चार नवरात्र होते हैं जिसमें शारदीय नवरात्र और वासंतिक नवरात्र का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्र को महापूजा और चैत्र नवरात्र को वार्षिकी पूजा कहा जाता है। इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ भी माना जाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड दैवीय शक्ति से संचालित हो रहा है। नवरात्र के नौ दिन इसी शक्ति की आराधना का विशेष पर्व काल है। सभी अंकों में नौ (9) को सर्वाधिक ऊर्जावान माना जाता है। त्रिगुणात्मक सृष्टि के संचालन के लिए ही महाशक्ति ने सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रूप धारण किया है। आगे इनका विस्तार नवदुर्गा के रूप में हुआ। नवरात्र के पहले दिन आइए हम उनके पहले दैवीय स्वरूप के बारे में जानते हैं.. नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया।
पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित कर साधना करते हैं।