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(आशु सक्सेना) पिछले चुनाव की तरह 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी नरेंद्र दामोदर मोदी ही केंद्रीय बिंदु बने हुए हैं। फर्क यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस बार मोदी प्रधानमंत्री हैं। मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के लिए जनादेश मांग रहे हैं। वहीं खंड़ित विपक्ष मोदी की विदाई के लिए जी जान से जुटा हुआ है। चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष एकजुट नज़र नही आ रहा है। लेकिन राज्यों के स्तर पर भाजपा विरोधी दलों के मजबूत गठबंधन मोदी की दोबारा ताजपोशी में बांधा ज़रूर पैदा कर रहे हैं।
देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा अपने बूते पर 272 का जादुई आंकड़ा हासिल करती नज़र नही आ रही है। वहीं इस चुनाव में पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को भी जबरदस्त झटका लगने वाला है। 16 वीं लोकसभा के चुनाव में 44 सांसदों तक सिमटने वाली कांग्रेस की संख्या में हिजाफा होना भी लगभग तय है। अब सवाल यह है कि 17वीं लोकसभा के चुनाव नतीजों के बाद सरकार का गठन कैसे होगा और उस सरकार का नेतृत्व कौन करेगा।
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(आशु सक्सेना) 16 वीं लोकसभा के समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ ही महीने बाद आसन्न लोकसभा चुनाव से पहले 'पूर्ण बहुमत वाली सरकार की पैरवी करते हुए बुधवार को कहा कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार की बात को दुनिया में ध्यान से सुना जाता है और देश प्रगति के नये आयामों को हासिल करता है। सोलहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने से पहले अपने धन्यवाद भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, ''आज विश्व में भारत का एक अलग स्थान बना है जिसका पूरा यश 'पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाले देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों को जाता है।''
दरअसल पीएम मोदी को इस बात का अहसास है कि अगर भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से अगर कम रह गई, तब उनकी ताजपोशी पर सवालिया निशान लग जाएगा। पीएम मोदी की पांच साल की यात्रा के दौरान जहां भाजपा को मजबूती मिली कहा जा सकता है, वहीं पार्टी के स्टार प्रचार पीएम मोदी के अपने पुराने सहयोगियों खासकर शिवसेना से रिश्ते काफी खराब हैं। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में यह साफ है कि बहुमत से पीछे रहने की स्थिति में एनडीए के अंदर ही मोदी के नेतृत्व को लेकर मतभेद उभरने की पूरी संभावना है।
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(आशु सक्सेना) 16 वीं लोकसभा का आखिरी बजट में मोदी सरकार ने एक बार फिर पहली बार मतदान करने वाले युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश की है। लोक लुभावन बजट में समाज के लगभग सभी वर्गों को खुश करने के लिए सरकारी खजाने से मामूली आर्थिक मदद देकर नये मतदाताओं को बार फिर ख्याब दिखाए गये हैं। सरकार सबका साथ सबका विकास नारे को बुलंद करके अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही है। भाजपा के स्टर प्रचारक पीएम मोदी ने 17 वीं लोकसभा के लिए चुनावी बिगुल फूंक दिया है। 2019 में मोदी की निगाह दक्षिण के राज्यों के अलावा बंगाल पर खासतौर से टिकी हुई हैं। वहीं विपक्ष की कोशिश है कि अधिकांश राज्यों में भाजपा विरोधी वोट के बिखराव को कम किया जाए।
पीएम मोदी की लोकप्रियता में आई गिरावट के मद्देनजर भाजपा का बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने की कोई संभावना नहीं है। वहीं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस बहुमत हासिल करेगी। इसकी संभावना न के बराबर ही है। हां क्षेत्रिय दलों के संभावित संघीय मोर्चे की सरकार बनने की सबसे ज्यादा उम्मीद की जा सकती है।
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(आशु सक्सेना) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2013 में 'अच्छे दिन आने वाले हैं' नारा दिया था। इस नारे के साथ पार्टी के स्टार प्रचार और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत के संकल्प के साथ चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। समूचे देश में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए मोदी गुजरात के विकास मॉडल का ज़िक्र करते हुए भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी और कालेधन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते थे और कांग्रेस के 60 साल के कुशासन के खिलाफ 60 महीने का मौका देने की बात अपनी हर जनसभा में प्रमुखता से करते थे। मोदी अपने जोशीले भाषणों में पाकिस्तान से एक सिर के बदले 20 सिर लाने की बात कह कर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को भी अंजाम देते थे। निसंदेह उस वक्त मोदी देश में सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ आम लोगों खासकर युवाओं को आकर्षित करने में सफल हुए थे।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी लहर का अंदाजा मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में पार्टी को जबरदस्त सफलता से लग गया था। 230 विधानसभा सीट वाले मध्य प्रदेश में भाजपा ने 165 सीट पर कब्जा किया था, जो कि पिछले चुनाव से 22 ज्यादा थी। वहीं 90 विधानसभा सीट वाले छत्तीसगढ़ में 49 सीट भाजपा जीती थी। भाजपा दोनों ही प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज हुई थी।
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