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(आशु सक्सेना) 16 वीं लोकसभा के समापन समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ ही महीने बाद आसन्न लोकसभा चुनाव से पहले 'पूर्ण बहुमत वाली सरकार की पैरवी करते हुए बुधवार को कहा कि पूर्ण बहुमत वाली सरकार की बात को दुनिया में ध्यान से सुना जाता है और देश प्रगति के नये आयामों को हासिल करता है। सोलहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने से पहले अपने धन्यवाद भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, ''आज विश्व में भारत का एक अलग स्थान बना है जिसका पूरा यश 'पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाले देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों को जाता है।''

दरअसल पीएम मोदी को इस बात का अहसास है कि अगर भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से अगर कम रह गई, तब उनकी ताजपोशी पर सवालिया निशान लग जाएगा। पीएम मोदी की पांच साल की यात्रा के दौरान जहां भाजपा को मजबूती मिली कहा जा सकता है, वहीं पार्टी के स्टार प्रचार पीएम मोदी के अपने पुराने सहयोगियों खासकर शिवसेना से रिश्ते काफी खराब हैं। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में यह साफ है कि बहुमत से पीछे रहने की स्थिति में एनडीए के अंदर ही मोदी के नेतृत्व को लेकर मतभेद उभरने की पूरी संभावना है।

ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का रुख क्या होगा। फिलहाल कहना मुश्किल है, क्योंकि ये दो वह नेता हैं, जिन्होंने मोदी के मुद्दे पर ही एनडीए से नाता तोड़ा था। रामविलास पासवान ने 2002 में गुजरात दंगों के बाद एनडीए छोड़ा था। जबकि नीतीश कुमार ने मोदी को भाजपा का पीएम उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद एनडीए से अलग हुए थे।

2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली। देश के संसदीय लोाकतंत्र के इतिहास में यह पहला मौका था, जब कोई गैर कांग्रेसी दल बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने में सफल रहा था। इस सफलता का श्रेय जाहिरानातौर पर पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार स्टार प्रचार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी को मिलना था। मोदी लहर में भाजपा ने हिंदी भाषी राज्यों में जबरदस्त जीत हासिल की। कई राज्यों में तो दूसरी किसी भी पार्टी का खाता भी नही खुलने दिया।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नारा दिया था कि मोदी के नेतृत्व में अच्छे दिन आने वाले हैं। भाजपा के पीएम उम्मीदवार मोदी का चुनाव प्रचार यूपीए सरकार के दौरान लाखों करोड़ रुपये के 2जी घोटाले जैसे भ्रष्टाचार, मंहगाई और विकास के गुजरात मॉडल पर केंद्रीत होता था। मोदी के जोशीले भाषण में पड़ौसी देश पाकिस्तान से एक सिर के बदले में 20 सिर लाने का एलान ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बखुबी अंजाम दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की रैलियों में युवा नये भारत के लिए पूरे दमखम से नज़र आते थे।

मोदी के भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद 2013 में लोकपाल की मांग को लेकर दिल्ली में समाज सेवक अन्ना हजारे की भूख हड़ताल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रीय मुहिम को अंजाम दिया था। ऐसे में मोदी के भ्रष्टाचार मुक्त भारत के वादे पर युवा एकजुट थे। उस चुनाव मेंं युवाओं ने नये भारत की तलाश के लिए मोदी को चुना था।

लेकिन अब पांच साल बाद माहौल पूरी तरह बदला हुआ है। भ्रष्टाचार के मामले में पीएम मोदी खुद आरोप के घेरे में हैं। इसके अलावा अन्य मुद्दों पर भी पीएम मोदी खरे नही उतरे हैं। ऐसे बहुमत का जादुई आंकड़ा उनके पक्ष में आने की संभावना लगभग ना के बराबर है। ऐसे में मोदी के पीएम बनने की संभावना पर सवालिया निशान लगना लाजमी है। संभव है कि 1996 की तरह इस बार भी भाजपा सबसे बड़ा दल हो। लेकिन उस भाजपा नीत सरकार का नेतृत्व मोदी को मिलेगा। इसको लेकर संदेह है।

पीएम मोदी ने अपने सहयोगी दलों के नेताओं के साथ व्यक्तिगत झगड़े मोल लिए हैं। लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के वक्त मोदी ने भाजपा के पुराने सहयोगी शिवसेना से रिश्ते खराब किये। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने शिवसेना को हफ्ता बसूल पार्टी करार दिया था। चंद्रबाबू नायडु की पार्टी टीडीपी और असम गण परिषद एनडीए से अलग हो चुके हैं।

भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की 13 महिने पुरानी सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी। वहीं पार्टी के दूसरे प्रधानमंत्री मोदी को बहुमत से एक सीट कम होने पर दूसरी बार पीएम बनने में बाधक बन सकती है।

कमोवेश ऐसी ही स्थिति प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की भी है। पार्टी को अगर बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल नही हुआ, तो जरूरी नही कि सभी गैर भाजपा दल कांग्रेस नेतृत्व की सरकार को समर्थन देने के लिए राजी हो जाएं। कांग्रेस भी पूर्ण बहुमत के बगैर राहुल गांधी को पीएम पद की जिम्मेदारी संभलवाने का जोखिम नही उठाएगी। देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस को बहुमत मिलने की कोई संभावना नज़र नही आ रही है। लेकिन चुनाव के बाद 17 वीं लोकसभा के गठन के बाद कांग्रेस की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी। गैर भाजपा सरकार के गठन में निश्चित ही कांग्रेस की भूमिका अहम होगी।

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