(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा शासित प्रदेश छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन तीनों ही राज्यों का चुनाव पीएम मोदी के लिए लोकसभा चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती है। इन राज्यों के चुनाव नतीजों का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने जहां छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में लगातार तीसरी बार अपनी जीत का परचम लहराया था, वहीं राजस्थान की सत्ता कांग्रेस से छिनने में कामयाब हुई थी। उस चुनाव में भी भाजपा के स्टार प्रचार मोदी ही थे। फर्क सिर्फ यह है कि उस वक्त वह 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। जबकि इस बार वह करीब साढ़े चार साल देश की बागड़ोर संभाल चुके हैं।
भाजपा और उसके स्टार प्रचारक मोदी की लोकप्रियता 2013 में अपने चरम पर थी। मोदी लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए देश भर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। उसी दौरान छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनाव थे। मोदी लहर में भाजपा ने इन तीनों राज्यों में जबरदस्त जनादेश हासिल किया। आपको याद दिला दूं कि उस वक्त मोदी का चुनाव प्रचार टूजी, फोरजी भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी और विदेशों में काला धन पर केंद्रीत था।
लेकिन चार साल प्रधानमंत्री रहने के बाद मोदी की भाषा बदल गई है। मोदी 2018 के चुनाव में भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी और कालेधन पर लोगों का ध्यान केंद्रीत नही कर रहे हैं। इन मुद्दों पर मोदी के भाषणों में कोई जोर नही है। उनके भाषण खुद पर हो रहे हमलों पर केंद्रीत है। मोदी नोटबंदी से देश की अर्थ व्यवस्था को हुए फायदों से लोगों को अवगत नही करवा रहे हैं। उनका तर्क है कि नोटबंदी के बाद गांधी परिवार को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। लिहाजा वह रो रहे हैं। रोजगार पर भी मोदी का तर्क काबिले तारीफ है। वह कह रहे हैं कि वे बेरोजगारों को रोजगार देने लायक बना रहे हैं। मंहगाई और भ्रष्टाचार पर तो मोदी लगभग पूरी तरह खामोश हैं। इन चुनावों में मोदी का चुनाव प्रचार आत्म केंद्रीत हो गया है।
उनका कहना है कि कांग्रेस उनसे मुकाबला नही कर सकती है। इसलिए उनकी मां,पिता और जाति पर आक्रमण कर रही है। उन्होंने चुनावी सभा में कहा कि उनकी मां राजनीति का र नही जानती, पर कांग्रेस उन्हें राजनीति में घसीट रही है। पीएम मोदी यह नही बता रहे हैं कि नोटबंदी के वक्त उनकी बुजुर्ग मां का बैंक की लाइन में खड़ा होना राजनीति नही तो क्या था? दरअसल, पीएम मोदी की भाषा में यह बदलाव उनकी मजबूरी है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहे भाजपा शासित प्रदेशों के विधानसभा चुनाव का लोकसभा चुनाव में खासा नुकसान तय है।
लिहाजा इन चुनावों में वह जहां एक तरफ राम मंदिर जैसे भावनात्मक मुद्दे का हवा देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं, वहीं मां पिता और जाति जैसे मुद्दों को उठा कर सहानुभूति हासिल करना चाहते है। पीएम मोदी अपनी इस कोशिश में कामयाब हुए या नही यह तो 11 दिसंबर को चुनाव नतीजों के बाद तय होगा। लेकिन इन चुनावों को लेकर जो खबरें आ रही हैं। वह निश्चित ही उनके लिए चिंता का विषय है। भाजपा शासित तीनों ही प्रदेशों में भाजपा विरोधी मतों के विभाजन के बावजूद कांटे का मुकाबल बताया है।
मोदी अपने गृह राज्य गुजरात में सरकार बनाने में भले ही कामयाब रहे हों, लेकिन उन चुनाव नतीजों से यह साफ हो गया था कि उनकी लोकप्रियता में काफी गिरावट आयी है। अगर पीएम मोदी की तमाम कोशिशों के बाद इन राज्यों में भाजपा को झटका लगा तो 2019 की राह उनके लिए बहुत मुश्किल होगी।