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(जलीस अहसन) आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दू राष्ट्र की अपने संगठन की परिभाषा को साफ करते हुए कहा है कि ‘‘हम कहते हैं कि हम हिन्दू राष्ट्र हैं। हिन्दू राष्ट्र हैं, इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं है।‘‘ उन्होंने यह राय भी दी है कि भारत में रहने वाले सभी लोगों को हिन्दू कहा जाए। मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की अवधारणा रखते हुए कहा था कि पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसमें हिन्दुओं और दीगर मज़हबों को मानने वालों की जगह नहीं होगी।
14 अगस्त 1947 को मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान के बन जाने पर जिन्ना ने कहा था, ‘‘ आप आज़ाद हैं। आप अपने मंदिरों में जाने को आज़ाद हैं, आप अपनी मस्जिदों में जाने को आज़ाद हैं या पाकिस्तान में किसी भी पूजा स्थल जाने को आज़ाद हैं। आप किसी भी धर्म-जाति के हों, इसका देश से कोई लेना देना नहीं है।‘‘ जिन्ना के इस भरोसे के बावजूद मुस्लिम राष्ट्र के नाम पर बने इस मुस्लिम बहुल देश में रहने वाले अन्य सभी अल्पसंख्यक धार्मिक समूह कुछ ही समय बाद नियमित भेदभाव का शिकार बनते गए। अपनी आस्था के चलते वे हाशिए पर खिसकते चले गए और हिंसा तथा मौत तक का शिकार बने। आज भी वो सिलसिला वहां जारी है।
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(आशु सक्सेना) 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी भाजपा को हराने के लिये विपक्ष एकजुट होने लगा है। सूत्रों के हवाले से यह जानकारी मिली है कि उत्तर प्रदेश समेत अन्य कई राज्यों में कांग्रेस, सपा, बसपा और आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ चारों दलों में साथ मिलकर लड़ने पर सैद्धांतिक सहमति बन गई है। हालांकि सीट बंटवारे पर अभी अंतिम फ़ैसला नहीं हुआ है। विपक्ष की इस एकजुटता की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति व्यक्त करना हैं।
इस सूबे से वर्तमान में कांग्रेस के खाते में दो सीट हैं। इन दोनों ही सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार नही उतारे थे। बहरहाल, विपक्ष की इस एकता को पुख्ता करने की दिशा में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों को सेमी फाइनल मैच के तौर पर खेलने पर भी सहमति बन गई है। हांलाकि इन राज्यों में सपा, बसपा और आरएलडी का कोई खास बजूद नही हैं। लेकिन चुनावी अंकगणित के मुताबिक इन दलों के एकजुट होने से ना सिर्फ मतों का अंतराल कम होगा, बल्कि कांग्रेस समेत अन्य सभी दल पहले से कुछ ज़्यादा सीटों को जीतने में भी कामयाब हो सकते हैं।
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(धर्मपाल धनखड़) बसपा सुप्रीमो मायावती राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों में कांग्रेस के संग खड़ी दिखाई देती है, वहीं विभिन्न राज्यों में अलग-अलग क्षेत्रीय दलों के साथ प्रेम की पींग बढ़ा रही है। अर्थात तीसरा मोर्चा में शामिल रहे घटक दलों से मेल जोल बढ़ा रही हैं। यमुना के उस पार यूपी में मायावती समाजवादी पार्टी यानी अखिलेश और राष्ट्रीय जनता दल के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। वहीं यमुना के इस पार हरियाणा में वह इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन कर चुकी हैं। एक तरह से देखा जाए तो यमुना के उस पार वह चौधरी चरण सिंह की विरासत को बसपा के साथ जोड़ने की कोशिश कर रही हैं, तो यमुना के इस पार चौधरी देवीलाल की विरासत से जुड़कर बसपा को मजबूत कर रही हैं।
हरियाणा में बसपा के साथ गठबंधन से जहां इनेलो को नई ताकत मिली है, वहीं प्रदेश में मृतप्रायः बसपा को भी संबल मिला है। 2019 के आम चुनाव के नजरिए से देखें तो इस समय हरियाणा में भाजपाई रणनीतिकारों ने 35 बनाम एक, यानी जाट गैर जाट के आधार पर मत विभाजन की रणनीति अपनाई है। इसके विरोध में इनेलो व बसपा ने मिलकर के कदम बढ़ाया है।
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(जलीस अहसन) महिलाओं के अधिकारों को लेकर देश के दो प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा बरसों से कोरी और बेशर्म राजनीति करते आ रहे हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने को लेकर भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई वाली केन्द्रीय सरकारों के दौरान 1996, 1998, 1999 और 2008 में महिला आरक्षण विधेयक लाए गए हैं लेकिन हर बार बिना पारित कराए ये सभी संबंधित लोकसभाओं का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही खुद भी समाप्त हो गए।
हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीति का तीर छोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पेशकश की है कि वे इस विधेयक को पारित कराने के लिए नए सिरे से संसद को दोनों सदनों में लाए तो कांग्रेस उसका बिना शर्त समर्थन करेगी। इस राजनीतिक तीर का पलटवार भी सियासी होना ही था। मोदी सरकार की ओर से राहुल को जवाब आया कि वह सहर्ष ऐसा करने को तैयार है बशर्ते कांग्रेस पार्टी महिला आरक्षण विधेयक के साथ ही ट्रिपल तलाक़, बहु-विवाह और निकाह हलाला विधेयकों को भी पारित कराने में सहयोग करे। मामला साफ है। दोनों राष्ट्रीय दलों को महिला अधिकारों से नहीं, केवल राजनीति से मतलब है।
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