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(आशु सक्सेना) संसद सत्र के समापन के बाद सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गये हैं। केंद्र सरकार के गठन में अहम भूमिका अदा करने वाले सूबे उत्तर प्रदेश की तस्वीर लगभग साफ हो गई है। कांग्रेस के सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद अब मौटे तौर पर तिकोना मुकाबला होना तय है। अब सवाल यह है कि इस मुकाबले में फायदा किसका होगा। पिछले चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। भाजपा नीत एनडीए ने 73 सीट पर जीत दर्ज की। सूबे के इतिहास में यह पहला मौका था, जब भाजपा ने 71 जीती थी। 2014 के चुनाव में मोदी लहर का इस जीत में अहम योगदान था।
यहां अब यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि जब 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी को भाजपा ने अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था। तब मोदी ने अपने पहले भाषण में कहा था कि वह पिछड़े वर्ग से आते हैं। इसके अलावा भाजपा ने प्रदेश के मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति के तहत प्रदेश की धार्मिक नगरी वाराणसी से मोदी को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया। आपको याद दिला दूं कि जब चुनाव अपने अंतिम दौर में था, तब मोदी ने चुनावी सभा में खुद को नीच जाति से बताया था।
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(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा शासित प्रदेश छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन तीनों ही राज्यों का चुनाव पीएम मोदी के लिए लोकसभा चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती है। इन राज्यों के चुनाव नतीजों का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने जहां छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में लगातार तीसरी बार अपनी जीत का परचम लहराया था, वहीं राजस्थान की सत्ता कांग्रेस से छिनने में कामयाब हुई थी। उस चुनाव में भी भाजपा के स्टार प्रचार मोदी ही थे। फर्क सिर्फ यह है कि उस वक्त वह 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। जबकि इस बार वह करीब साढ़े चार साल देश की बागड़ोर संभाल चुके हैं।
भाजपा और उसके स्टार प्रचारक मोदी की लोकप्रियता 2013 में अपने चरम पर थी। मोदी लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए देश भर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। उसी दौरान छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के चुनाव थे। मोदी लहर में भाजपा ने इन तीनों राज्यों में जबरदस्त जनादेश हासिल किया। आपको याद दिला दूं कि उस वक्त मोदी का चुनाव प्रचार टूजी, फोरजी भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी और विदेशों में काला धन पर केंद्रीत था।
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(आशु सक्सेना) पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान अपने शबाब पर है। सूबों के चुनावों में भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है। इन चुनावों में भाजपा खासकर पीएम मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। क्योंकि इनमें से तीन राज्य भाजपा शासित हैं। इन राज्यों में जहां भाजपा को अपनी सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है, वहीं दक्षिण के तेलंगाना और पूर्वोत्तर के मिजोरम में पार्टी के जनाधार को बढाने की भी चुनौती है।
दरअसल इन विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर अगले साल 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना लाजमी है। फिलहाल जो खबरें आ रही हैं, वह भाजपा के पक्ष में नही है। आंकलन के मुताबिक भाजपा शासित मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में इस बार कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। हांलाकि भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि इन चुनावों भी भाजपा विरोधी मतों के बिखराव का लाभ उसे मिल सकता है। क्योंकि विपक्ष के महागठबंधन की कवायद इन चुनावों में परवान नही चढ़ सकी। नतीजतन, भाजपा विरोधी दल आमने सामने ताल ठोके हुए हैं।
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(आशु सक्सेना) लगता है मोदी सरकार मान चुकी है कि अब भावनात्मक मुद्दा ही 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने का एकमात्र रास्ता है। संभवत: यही वजह है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरएसएस, सत्तारूढ़ भाजपा समेत तमाम तथाकथित हिंदुवादी संगठनों ने एक स्वर में राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाया है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून पारित करने की मांग ने चौतरफा जोर पकड़ लिया है।
दरअसल जहां भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भाजपा शासित तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी माहौल से चिंतित है, वहीं वह 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार के कामकाज के बूते पर चुनाव का सामना करने में पार्टी को असहज महसूस कर रहा है। यहीं वजह है कि भाजपा नेतृत्व राम मंदिर का मुद्दा उछाल कर चुनाव के सेमी फाइनल के नतीजों के आधार पर 2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंजाम देना चाहता है। इन दिनों अखबार, टेलिविजन और सोशल मीडिया पर भाजपा शासित सूबे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के मुद्दे सुर्खियों में नही हैं। बहस का सिर्फ एक मुद्दा है कि अगर राम मंदिर हिंदुस्तान में नही बनेगा, तो फिर कहां बनेगा।
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