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नई दिल्ली: उद्योग जगत का मानना है कि वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) में अंतिम सहमति बनने और नियम-कायदे जारी होने के बाद इस पर अमल के लिये उसे कम से कम तीन माह का समय चाहिये। देश के अग्रणी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की के नये अध्यक्ष पंकज आर. पटेल ने विशेष बातचीत में यह बात कही है। उन्होंने कहा, ‘हमें जीएसटी के नियम चाहिये। एक बार नियम आ जाए तो उसके बाद हमें अपने सॉफ्टवेयर को उसके अनुरूप करने के लिए तीन माह का समय चाहिए।’ पटेल ने कहा, ‘मोटे तौर पर उद्योगों की सब तैयारी है, लेकिन किस वस्तु पर किस दर से कर लगेगा यह जीएसटी के नियम सामने आने के बाद ही पता चलेगा। हमारे आपूर्तिकर्ता और आगे खरीददारों को भी नियमों के अनुरूप तैयारी करनी होगी। बिल बुक भी नई छपानी होगी, नियम आने पर ही यह तैयारी पूरी होगी।’ उल्लेखनीय है कि जीएसटी व्यवस्था को लागू करने के लिये जीएसटी परिषद ने चार स्तरीय कर ढांचे (5, 12, 18 और 28 प्रतिशत) को अंतिम रूप दिया है। इसमें आवश्यक वस्तुओं के लिये निचली दर होगी जबकि गैर-जरूरी और भोग विलास की वस्तुओं पर सबसे ऊंची दर से कर लगाया जायेगा। सरकार का इरादा अगले वित्त वर्ष से जीएसटी लागू करने का है।

लॉस एंजिलिस: आईफोन बनाने वाली कंपनी एपल ने अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी टिम कुक के वर्ष 2016 के वेतन में 15 प्रतिशत की कटौती की है। कंपनी ने यह निर्णय उसकी वार्षिक बिक्री में 15 साल में पहली बार गिरावट आने के चलते किया है। सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज को कल भेजी जानकारी के अनुसार कंपनी ने कहा कि वर्ष 2016 में उसने कुक को 87.5 लाख डॉलर वेतन-भत्तों का भुगतान किया जो 2015 में दिए गए 1.03 करोड़ डॉलर से कम है। कुक का मूल वेतन हालांकि, 2016 में 20 लाख डॉलर से बढ़ाकर 30 लाख डॉलर कर दिया गया था जो सीधे तौर पर 50 प्रतिशत की वृद्धि है। लेकिन इस दौरान कुक एवं अन्य कार्यकारियों को बोनस एवं भत्तों के तौर पर मिलने वाले लाभ तय लक्ष्य का 89.5 प्रतिशत ही दिये गये। इससे पहले यह अधिकतम मिलता रहा है। इस प्रकार कुक को नकद बोनस के तौर पर 2016 में 54 लाख डॉलर मिला है जो 2015 में 80 लाख डॉलर था। उनके एपल में 2011 में शीर्ष पद संभालने के बाद यह पहली बार उनके वेतन-भत्ते में कटौती की हुई है। कंपनी का कहना है कि वित्त वर्ष 2016 में आईफोन की बिक्री में 2007 के बाद पहली बार कमी आई है। पिछले 15 साल में पहली बार उसकी वार्षिक आय में कमी आई है।

नई दिल्ली: देश की जीडीपी वृद्धि दर मौजूदा वित्त वर्ष में 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह 2015-16 में 7.6 प्रतिशत थी। आर्थिक वृद्धि दर में कमी का कारण विनिर्माण, खनन तथा निर्माण क्षेत्रों में नरमी है। सरकार के इस आंकड़े में नोटबंदी के बाद के ‘उतार-चढ़ाव’ वाले आंकड़े को शामिल नहीं किया गया है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़े जारी करते हुए मुख्य सांख्यिकी विद् टीसीए अनंत ने कहा कि नवंबर के आंकड़े उपलब्ध थे और उसका विश्लेषण किया गया लेकिन यह पाया गया कि नोटबंदी की नीति के कारण इन आंकड़ों में उतार-चढ़ाव काफी अधिक है। ऐसे में नवंबर के आंकड़ें को अनुमान में शामिल नहीं करने का फैसला किया गया। अत: 2016-17 की राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान में नोटबंदी का प्रभाव प्रतिबिंबित नहीं होता और यह केवल सात महीनों या अक्तूबर तक के क्षेत्रवार आंकड़ों पर आधारित है। सरकार ने 9 नवंबर से 500 और 1,000 रुपये नोटों पर पाबंदी लगा दी थी। वास्तविक जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) स्थिर मूल्य (2011-12) पर 2016-17 में 121.55 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वहीं 2015-16 के लिये 31 मई 2016 को जारी जीडीपी के अस्थायी अनुमान के तहत यह 113.50 लाख करोड़ रुपये था।

नई दिल्ली: विपक्षी दलों के चुनावों से पहले बजट पेश किये जाने के विरोध के बीच वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कदम का बचाव किया और कहा कि जब वे दावा कर रहे हैं कि नोटबंदी अलोकप्रिय फैसला है तो फिर वे डर क्यों रहे हैं। जेटली ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘ये वे राजनीतिक दल हैं जो कहते हैं कि नोटबंदी की लोकप्रियता काफी कम है। ऐसे में आखिर वे क्यों बजट से डर रहे हैं।’ उत्तर प्रदेश समेत राज्यों में चुनावों के बाद मार्च 2012 में बजट पेश किये जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, यह कोई परंपरा नहीं है जिसका हर समय पालन किया जाए। जेटली ने कहा, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अंतरिम बजट पेश किया जाता है। किसी ने उसे नहीं रोका। यहां तक कि 2014 में बजट आम चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले पेश किया गया। यह संवैधानिक आवश्यकता है। सरकार वित्त वर्ष के पहले दिन से कल्याणकारी तथा अन्य योजनाओं पर खर्च शुरू करने के इरादे से लंबे समय से फरवरी के अंत में बजट पेश किये जाने की परंपरा को बदली है। सरकार ने 31 जनवरी को संसद का बजट सत्र बुलाने का फैसला किया और अगले दिन एक फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा। वहीं पंजाब और गोवा में चुनाव चार फरवरी को जबकि उत्तर प्रदेश समेत तीन अन्य राज्यों में उसके बाद चुनाव होंगे। कुछ राजनीतिक दल राष्ट्रपति और चुनाव आयोग से मिलकर एण्क फरवरी को बजट पेश किये जाने के निर्णय पर विरोध जताया।

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