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नई दिल्ली: सरकार ने आज (सोमवार) एक बार फिर स्पष्ट किया है कि होटल और रेस्तरां में सेवा शुल्क देना अनिवार्य नहीं है। यदि ग्राहक सेवा से संतुष्ट नहीं है तो वह इसे हटवा सकता है। केन्द्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे सुनिश्चित करें कि होटल और रेस्तराओं में इस बारे में सूचना पट के जरिये स्पष्ट तौर पर सूचना दी गई हो। केन्द्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने एक आधिकारिक वक्तव्य में कहा है, ‘इस बारे में ग्राहकों से कई शिकायतें मिलीं हैं कि होटल और रेस्तरां ‘टिप’ के बदले 5 से 20 प्रतिशत के दायरे में सेवा शुल्क ले रहे हैं। इन होटल एवं रेस्तरांओं में सेवा चाहे कैसी भी हो ग्राहकों को इसका भुगतान करना पड़ता है।’ मंत्रालय ने इस संबंध में होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया से स्पष्टीकरण मांगा जिसने जवाब दिया कि, ‘सेवा शुल्क पूरी तरह से विवेकाधीन है और यदि कोई ग्राहक खानपान सेवा से संतुष्ट नहीं है तो वह इसे हटवा सकता है। इसलिये इसे स्वीकार करना पूरी तरह से स्वैच्छिक है।’ उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के प्रावधान का उल्लेख करते हुये कहा है कि इसके मुताबिक कोई भी व्यापार व्यवहार जो बिक्री बढ़ाने के लिये, अथवा इस्तेमाल या फिर सामान की आपूर्ति अथवा किसी भी सेवा के लिये किया जाता है और उसमें अनुचित तरीका अथवा भ्रामक तरीका अपनाया गया है तो उसे अनुचित व्यापार व्यवहार माना जायेगा।

कोई भी उपभोक्ता इस तरह के व्यापार व्यवहार के खिलाफ उचित उपभोक्ता मंच पर शिकायता कर सकता है। मंत्रालय ने कहा है कि उपभोक्ता मामले विभाग ने इस संबंध में राज्य सरकारों को सचेत किया है कि होटल और रेस्तरां उपभोक्ता संरक्षण कानून का पालन करें और होटल अथवा रेस्तरां में यह सुनिश्चित करें कि उचित स्थान पर सेवा शुल्क के बारे में जानकारी दी जाए।

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