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देहरादून: उत्तराखंड की जगलों में लगी हुई भीषण आग पर क़ाबू पाने के लिए एनडीआरएफ की टीम ऑपरेशन में जुटी हुई है। एनडीआरएफ के अलावा एसडीआरएफ और थलसेना के जवान आग बुझाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं। एमआई-17 हेलीकॉप्टर तैनात कर दिए गए हैं जिनके जरिए पानी का छिड़काव किया जाएगा। यहां बता दें कि आग गरमी के चलते लगी है। इस आग में अब तक सात लोग मारे जा चुके हैं जबकि 15 लोग घायल बताए जा रहे हैं। उत्तराखंड में 800 गांवों के आसपास के जंगल बीते एक हफ़्ते से आग से धधक रहे हैं। क़रीब 205 हेक्टेयर जंगल ख़ाक हो गया है। सबसे ज़्यादा वेतालघाट, रामगढ़ टाइगर रिज़र्व और राजाजी नेशनल पार्क के जंगलों में नुक़सान की खबर है। तेज़ हवा की वजह से फैलती आग को क़ाबू करने के लिए अब एनडीआरएफ़ की टीमों को लगाया गया है। पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा ज़िले के अलग-अलग जगहों पर एनडीआरएफ़ का ऑपरेशन जारी है। कई इलाकों में आग पर काबू पाया भी गया है .लेकिन कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां अभी भी आग पर क़ाबू पाना काफ़ी मुश्किल हो रहा है। उत्तराखंड सरकार के आग्रह पर दिल्ली फ़ायर सर्विसेज़ के डायरेक्टर भी वहां जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी आग के बारे में राज्यपाल से जानकारी मांगी है।
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देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में गर्मी के कारण भड़की आग फैलती जा रही है। शनिवार तक 13 जिले आग की चपेट में आ चुके हैं। इन जिलों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। आग पर काबू पाने के लिए एनडीआरएफ की टीमें भी लगाई गई हैं। वहीं, राज्य में सभी वन अधिकारियों और कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी गई है। हालांकि, कुछ इलाकों में आग पर आंशिक रूप से काबू पा लिया गया है। आग में झुलसने से अब तक छह व्यक्तियों की मौत की सूचना है। अधिकारियों के अनुसार, राज्य के अल्मोड़ा, पौड़ी और गौचर में आग का प्रभाव ज्यादा है। यहां एनडीआरएफ की एक-एक यूनिट लगाई गई है। प्रत्येक यूनिट में 45 जवान शामिल हैं। आग पर काबू पाने के लिए राज्य के वन कर्मचारी और दमकलकर्मी भी जुटे हैं। मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने बताया कि राज्य के कुमाउं तथा गढ़वाल दोनों क्षेत्र में करीब 1890 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की चपेट में आ चुका है। वहीं, प्रमुख वन संरक्षक बीपी गुप्ता ने बताया कि राज्य में फरवरी में आग लगने की शुरुआत हुई थी। इस साल यहां के जंगलों में आग लगने 922 घटनाएं हो चुकी हैं। बहरहाल, धुएं की वजह से लोग बीमार भी पड़ने लगे हैं। बागेश्वर में शुक्रवार को धुएं की वजह से हुई परेशानी की शिकायत लेकर करीब 210 लोग जिला अस्पताल पहुंचे।
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देहरादून: सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तराखंड में यथास्थिति बरकरार रखे जाने पर अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आज (बुधवार) कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है और पर्वतीय राज्य में चल रहे राजनीतिक गतिरोध के मामले में वहां से होने वाले फैसले को स्वीकार किया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन मई तक प्रदेश मे राष्टपति शासन को लेकर यथा स्थिति बनाये रखने के आदेश पर संवाददाताओं से बातचीत में अपनी संक्षिप्त प्रतिक्रिया देते हुए रावत ने कहा, ‘मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। उत्तराखंड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को हम स्वीकार करेंगे।’ रावत की बात से इत्तेफाक व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पार्टी नेता और पूर्व संसदीय कार्य मंत्री इंदिरा हृदयेश ने भी कहा कि पार्टी अदालत का सम्मान करती है। उन्होंने कहा, ‘हम अदालत के निर्णयों का सम्मान करते हैं। हम संविधान की रक्षा में भरोसा करने वाले लोग हैं।’ भाजपा ने भी इस मसले पर मिलते-जुलते विचार व्यक्त किये। सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा, ‘हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है। वह जो भी फैसला देगा, हमें शिरोधार्य होगा।’
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नई दिल्ली: उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन अभी जारी रहेगा। अगली सुनवाई 3 मई को होगी। तब तक केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे गये कई अहम सवालों के जवाब तैयार करने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को प्रस्तावित हरीश रावत के बहुमत सिद्ध करने पर भी रोक लगा दी है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने नये सिरे से याचिका दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट 3 मई से तीन दिन तक बहस सुनेगा और उसके बाद 13 मई को ग्रीष्मावकाश से पहले फैसला सुना दिया जायेगा कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार इस बीच फ्लोर टेस्ट कराने पर विचार करे। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 7 सवाल पूछे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या वर्तमान स्थिति में धारा 175(2) के तहत राज्यपाल बहुमत सिद्ध करने को कह सकते थे। क्या स्पीकर के द्वारा विधायकों को अमान्य घोषित करना एक वजह थी जिसकी वजह से धारा 356 का इस्तेमाल करते हुए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 3. क्या राष्ट्रपति उत्तराखंड विधानसभा की कार्यवाही को राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संज्ञान में ले सकता है। क्या बहुमत सिद्ध करने में हो रही देरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बनाया जा सकता है। विनियोग विधेयक जिसके कारण उत्तराखंड सरकार गिराई गई, उसकी वर्तमान स्थिति क्या है। राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद इसका क्या हुआ।
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