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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकारों द्वारा 'रमजान में मुसलमानों की छुट्टी' के फैसलों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। दोनों राज्य की सरकारों द्वारा मुस्लिम कर्मचारियों को रमजान के पवित्र महीने के दौरान एक घंटा पहले दफ्तर छोड़ने की अनुमति दी गई है।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह अपनी शिकायत संबंधित हाई कोर्ट में ले जाएं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि याचिका में दोनों सरकारों के परिपत्रों को चुनौती दी गई है।

पीठ द्वारा याचिका की सुनवाई में अनिच्छा दिखाने के बाद शंकरनारायणन ने संबंधित हाई कोर्ट में जाने की स्वतंत्रता के साथ याचिका वापस ले ली। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत संबंधित हाई कोर्ट में जाने की स्वतंत्रता के साथ वर्तमान याचिका वापस लेने की अनुमति चाहते हैं। याचिकाकर्ता को अपनी शिकायत हाई कोर्ट में ले जाने की स्वतंत्रता प्रदान की।

इबादत और रहमत का महीना है रमजान

इस्लाम धर्म के लोगों के लिए रमजान का महीना बहुत महत्व रखता है। इस दौरान लोग ज्यादा से ज्यादा नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में पड़ने वाला इस महीने में लोग सुबह से लेकर शाम तक पूर्ण पवित्रता के साथ 29 से 30 दिनों तक रोजा रखते हैं, जिसकी शुरुआत और अंत चांद दिखने के साथ होता है। कहा जाता है कि इस पाक माह (Ramadan 2025) में बहुत सारे ऐसे काम हैं, जिन्हें जरूर करना चाहिए, तो चलिए ''मौलाना मोहम्मद मुबारक हुसैन (इमाम, मस्जिद ए आयशा)'' से जानते हैं इस बारे में।

रमजान को नेकियों का महीना भी कहा जाता है। इस पूरे माह इस्लाम समुदाय के लोग अच्छे काम करते हैं। इस दौरान सिर्फ रोजा रखना ही नहीं बल्कि जरूरतमंदों की मदद करना, लोगों को खाना-पीना खिलाना, अल्लाह की इबादत जैसे काम करने चाहिए। इसके अलावा दूसरों की बुराई करने, झूठ बोलने और झूठी कसमें खाने से तौबा करनी चाहिए। आसान शब्दों में कहा जाए, तो कुछ बुरा बोलने, देखने और सुनने से बचना चाहिए।

इन बातों को न करें अनदेखा

मौलाना मोहम्मद मुबारक हुसैन (इमाम, मस्जिद ए आयशा) के मुताबिक अल्लाह की राह में खर्च करना बहुत अच्छा (अफजल) माना जाता है। भले ही कोई जरूरतमंद व्यक्ति अन्य धर्म के ही क्यों न हों, उनकी भी मदद करनी चाहिए, क्योंकि दूसरों के काम आना भी इबादत है। रोजे का मतलब बस उस अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोजा होता है।

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