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नई दिल्ली: तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के कई राज्यों में हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषा का विवाद एक बार फिर तूल पकड़ चुका है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार पर राज्य पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते हुए सख्त विरोध जताया है। इसके अलावा केरल और कर्नाटक में भी हिंदी भाषा का विरोध किया जा रहा है। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी भावना आजादी के आंदोलन के दौरान की है।

1930 के दशक में जब मद्रास प्रेसीडेंसी में तब की कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को एक विषय बनाने का प्रस्ताव पेश किया, तो ईवी रामासामी और जस्टिस पार्टी ने इसका विरोध किया। यह आंदोलन करीब तीन साल तक चला, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि एक हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया।

इसके बाद 1946 से लेकर 1950 के बीच हिंदी विरोधी अभियान का दूसरा चरण आया। इस दौरान सरकार ने स्कूलों में हिंदी लाने की जब-जब कोशिश की, तब-तब विरोध शुरू हो जाता। एक समझौते के तहत सरकार ने हिंदी को वैकल्पिक विषय बना दिया, जिसके बाद विरोध कुछ कम हुआ।

नेहरू ने संसद में दिया था आश्वासन

1959 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद को आश्वासन दिया कि गैर-हिंदी भाषी राज्य यह तय कर सकते हैं कि अंग्रेजी कितने समय तक आधिकारिक भाषा रहेगी और हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी देश की प्रशासनिक भाषा बनी रहेगी। 1963 में आधिकारिक भाषा अधिनियम पारित होने के विरोध में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया और एक व्यक्ति चिन्नास्वामी ने त्रिची में आत्मदाह कर लिया। दरअसल डर था कि केंद्र सरकार की नौकरियों में हिंदी का ज्ञान प्रमुख मानदंड होगा, जिससे छात्रों में हिंदी के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ।

1965 में तमिलनाडु में हुई थी हिंसा

1965 में तमिलनाडु में हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। सीएन अन्नादुरई ने घोषणा की 25 जनवरी, 1965 को 'शोक दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। मदुरै में प्रदर्शनकारियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें हुईं। इस दौरान ट्रेन के डिब्बों और हिंदी बोर्डों को जलाया गया और सार्वजनिक संपत्ति को लूटा गया। इस हिंसा में करीब 70 लोग मारे गए। इसके बाद तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने आश्वासन दिया कि अंतर-राज्य संचार और सिविल सेवा परीक्षाओं में अंग्रेजी का इस्तेमाल जारी रहेगा।

हिंदी विरोधी आंदोलन की वजह से हारी कांग्रेस

हिंदी के विरोध में डीएमके और छात्रों के नेतृत्व में किए गए आंदोलन की वजह से तमिलनाडु में कांग्रेस की हार हुई और 1967 में डीएमके सत्ता में आ गई। इन चुनावों में तमिलनाडु के सीएम रहे के. कामराज को डीएमके के एक छात्रनेता ने हरा दिया, जिसके बाद कांग्रेस यहां कभी सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

2022 के बाद फिर छिड़ा विवाद

दरअसल एक संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा संस्थानों में हिंदी माध्यम होना चाहिए और अन्य हिस्सों में उनकी स्थानीय भाषा। इस समिति ने यह भी सिफारिश की कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल कराना चाहिए। इसके अलावा नई शिक्षा नीति भी एक वजह है, जिसका एमके स्टालिन विरोध कर रहे हैं।

दरअसल नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि हर स्कूल में तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। हालांकि इस नीति में हिंदी का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कहा गया है कि बच्चों को पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद की होंगी। हालांकि, तीन भाषाओं में से कम से कम दो भारत की मूल भाषाएं होना जरूरी है। तमिलनाडु में फिलहाल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। शिक्षा नीति के अनुसार तीसरी भाषा के रूप में यहां हिंदी या संस्कृत, कन्नड़, तेलगू या कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़ाई जा सकती है, लेकिन एमके स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत को ही थोपेगी।

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