चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने मंगलवार को बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर राज्य में हिंदी थोपकर ‘भाषा युद्ध के बीज बोने’ का आरोप लगाया और कहा कि हिंदी के वर्चस्व की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि वह अपने राज्य पर हिंदी नहीं थोपने देंगे।
किसी अन्य भाषा को मातृभाषा तमिल पर हावी नहीं होने देने: स्टालिन
स्टालिन ने कहा कि उनका राज्य किसी विशेष भाषा के खिलाफ नहीं है और किसी भी भाषा को सीखने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति के रास्ते में नहीं आएगा, लेकिन वह किसी भी अन्य भाषा को मातृभाषा तमिल पर हावी होने और उसे नष्ट करने की अनुमति नहीं देने के लिए दृढ़ संकल्पित है। स्टालिन ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित एक पत्र में कहा, ‘‘यही कारण है कि हम द्विभाषी नीति (तमिल और अंग्रेजी) का पालन कर रहे हैं।’’
स्टालिन ने दावा किया कि भारत के कई राज्यों ने भाषा नीति पर तमिलनाडु द्वारा निर्धारित मार्ग और उसके दृढ़ रुख को समझा है और उन्होंने अपनी चिंताएं व्यक्त करना शुरू कर दिया है।
हिंदी का वर्चस्व समाप्त नहीं होने तक इसके खिलाफ संघर्ष जारी रखने का आश्वासन देते हुए स्टालिन ने कहा, ‘‘हम एक आंदोलन के वंशज हैं, जिसमें एक सिद्धांतवादी सेना थी जिसने तमिल की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।’’
स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके का अनेक बलिदान के माध्यम से हिंदी से मातृभाषा की रक्षा करने का इतिहास रहा है। 1971 में कोयंबटूर में डीएमके की छात्र इकाई द्वारा आयोजित हिंदी विरोधी सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि वह बलिदान देने के लिए तैयार हैं।स्टालिन ने कहा, ‘‘प्रभुत्व का विरोध करना और मातृभाषा की रक्षा करना डीएमके के सदस्यों के खून में समाया हुआ है। यह भावना मेरे जीवन के अंत तक कम नहीं होगी।’’
बीते 21 और 22 फरवरी को कुड्डालोर की अपनी यात्रा को याद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अभिभावक-शिक्षक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि राज्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को स्वीकार नहीं करेगा, भले ही केंद्र तमिलनाडु को 10,000 करोड़ रुपये देने की पेशकश करे। इस पर कुड्डालोर की एक छोटी सी बच्ची नानमुखी ने कहा था, ‘‘क्या होगा अगर केंद्र सरकार धन उपलब्ध नहीं कराती है? तब मैं दे दूंगी।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि उस लड़की ने अपनी बचत में से 10,000 रुपये भेजे। स्टालिन ने केंद्र सरकार पर भाषा युद्ध के बीज बोने का आरोप लगाते हुए कहा कि उस बच्ची की तरह तमिलनाडु में एक करोड़ युवा नानमुखी हैं जो अपनी मातृभाषा की रक्षा के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने कहा, ‘‘हम इसके लिए तैयार हैं... हम किसी अन्य भाषा के वर्चस्व की अनुमति नहीं देंगे।’’
इस बीच, डीएमके के सदस्यों ने एनईपी के माध्यम से हिंदी थोपे जाने का दावा करते हुए राज्य में इसके खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखा। पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने उलुंदुरपेट रेलवे स्टेशन के नाम वाले बोर्ड पर हिंदी अक्षरों को मिटा दिया। डीएमके के विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुए, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने मुख्यमंत्री से जानना चाहा कि सीबीएसई और मैट्रिकुलेशन स्कूलों के छात्रों को प्रदान किया जाने वाला तीसरी भाषा सीखने का अवसर सरकारी स्कूल के छात्रों को क्यों नहीं दिया जा रहा है।