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(धर्मपाल धनखड़) बसपा सुप्रीमो मायावती राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी दलों में कांग्रेस के संग खड़ी दिखाई देती है, वहीं विभिन्न राज्यों में अलग-अलग क्षेत्रीय दलों के साथ प्रेम की पींग बढ़ा रही है। अर्थात तीसरा मोर्चा में शामिल रहे घटक दलों से मेल जोल बढ़ा रही हैं। यमुना के उस पार यूपी में मायावती समाजवादी पार्टी यानी अखिलेश और राष्ट्रीय जनता दल के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। वहीं यमुना के इस पार हरियाणा में वह इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन कर चुकी हैं। एक तरह से देखा जाए तो यमुना के उस पार वह चौधरी चरण सिंह की विरासत को बसपा के साथ जोड़ने की कोशिश कर रही हैं, तो यमुना के इस पार चौधरी देवीलाल की विरासत से जुड़कर बसपा को मजबूत कर रही हैं।

हरियाणा में बसपा के साथ गठबंधन से जहां इनेलो को नई ताकत मिली है, वहीं प्रदेश में मृतप्रायः बसपा को भी संबल मिला है। 2019 के आम चुनाव के नजरिए से देखें तो इस समय हरियाणा में भाजपाई रणनीतिकारों ने 35 बनाम एक, यानी जाट गैर जाट के आधार पर मत विभाजन की रणनीति अपनाई है। इसके विरोध में इनेलो व बसपा ने मिलकर के कदम बढ़ाया है।

उनका ये कदम भाजपाई रणनीति की उपयुक्त काट हो सकता है।

हरियाणा में दोनों पार्टियों का गठबंधन भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ है। लेकिन केंद्र में बसपा कांग्रेसी खेमे तथा इनेलो भाजपा खेमे के साथ है। ये विरोधाभास दोनों ही दलों के समर्थकों के लिए बड़ी असमंजस की स्थिति पैदा कर रहा है। इनेलो समर्थक वोटर एकदम कांग्रेस के खिलाफ है,तो बसपा समर्थक वोटर भाजपा विरोधी। ऐसे में दोनों ही दलों के समर्थक ऊहापोह की स्थिति से उबरकर एक दूसरे के उम्मीदवारों को खुलकर समर्थन दे पायेंगे, अभी कह पाना मुश्किल है।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि दोनों दलों के समर्थक कट्टर हैं और वे अपने नेता के इशारे पर ही वोटिंग करेंगे। यदि ऐसा होता है तो इनेलो और बसपा दोनों फायदे में रहेंगी। दोनों के गठजोड़ से एक बात निश्चित है कि खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि बसपा उम्मीदवारों की ग़ैरमौजूदगी में उनके समर्थकों का वोट कांग्रेस को मिलता रहा है। इस तरह दोनों का गठजोड़ हर हाल में कांग्रेस के लिए घातक साबित होगा। कांग्रेस को होने वाले नुकसान का फायदा भाजपा को मिलेगा। लोकसभा चुनाव में जहां इनेलो बसपा गठबंधन का उम्मीदवार पिछड़ेगा, उसका सीधा लाभ भाजपा उम्मीदवार को मिलेगा।

इनेलो बसपा के गठबंधन से हरियाणा भाजपा के नेता ज्यादा चिंतित नहीं है। क्योंकि इनेलो बसपा के बीच लोकसभा की सीटें का बंटवारा आठ और दो का होना माना जा रहा है। इस हिसाब से बसपा को कोई बड़ा फायदा होने वाला नहीं है। ऐसे में गठबंधन के चलते इनेलो की लोकसभा सीटें बढ़ती हैं तो केंद्र में उसके पास भाजपा को समर्थन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। दूसरी तरफ यदि ये गठबंधन विधानसभा चुनाव में भी जारी रहता है तो भाजपा और कांग्रेस दोनों को तगड़ा झटका लग सकता है, लेकिन यह लोकसभा चुनाव के परिणाम पर काफी हद तक निर्भर करेगा। और इनेलो के लिए लोकसभा से ज्यादा अहम है विधानसभा चुनाव जीतना। जबकि बसपा का मक़सद लोकसभा में अपनी ताकत बढ़ाने के साथ-साथ प्रदेश मे पार्टी को मजबूती देना है।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने चौधरी चरणसिंह और चौधरी देवीलाल की विरासत को साथ जोड़कर कांग्रेस को साफ संकेत दे दिया है कि वो भाजपा के खिलाफ लड़ाई में महज उसके भरोसे नहीं है। साथ ही उन्होंने तीसरे मोर्चे की संभावनाओं को भी पुनर्जीवित करने का काम किया है। भले ही ये मोर्चा अभी कहीं दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में खंडित जनादेश आने की स्थिति में कांग्रेस भाजपा विरोधी दलों का गठजोड़ खड़ा किया जा सकता है।

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