(आशु सक्सेना) 16 वीं लोकसभा का 15 वें सत्र (मॉनसून सत्र) का पहला सप्ताह छोटे पर्दे पर तीन दिन तक लगातार चले एपिसोड का सत्तारूढ़ मोदी सरकार के लिए नि:संदेह सुखद अंत है। सरकार ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ़ 126 मतों के मुकाबले में 325 मत हासिल करके संसद के भीतर अपना बहुमत साबित कर दिया है। सरकार के लिए सुखद यह है कि उसे इस शक्ति परीक्षण में जहां दक्षिण से एक नया साथी एआईडीएमके मिला है। वहीं सरकार के लिए झटका यह है कि दक्षिण का एक साथी टीडीपी ने चार साल समर्थन देने के बाद नाता तोड़ लिया है। अविश्वास प्रस्ताव के बहाने लोकसभा में हुए इस शक्ति परीक्षण में पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ा झटका भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना का मतदान में हिस्सा ना लेना है।
बहरहाल, लोकसभा से छोटे पर्दे पर चले 'मोदी सरकार के चार साल' एपिसोड की शुरूआत मॉनसून सत्र के पहले दिन 18 जुलाई 2018 को अप्रत्याशित रुप से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के आंध्र प्रदेश विभाजन पर टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी देने से हुई । यह तय हो गया कि शुक्रवार 20 जुलाई की देर शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में हुई बहस का जबाव देंगे।
पहले दो दिन अविश्वास प्रस्ताव पर पक्ष और प्रतिपक्ष की रणनीति पर चर्चा में गुजर गये। सरकार ने इस दौरान आर्थिक भगौड़ा कानून पास करवा लिया। इस बिल पर विपक्ष को भी कोई विशेष आपत्ति नही है। 20 जुलाई 2018 सुबह 11 बजे लोकसभा की कार्यवाही शुरु होती है।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत टीडीपी सांसद लोकसभा में जयदेव गाला ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरु करते हुए कहा, यह आंध्र और मोदी सरकार के बीच धर्मयुद्ध है, ये जंग तानाशाह और लोकतंत्र के बीच है। आंध्र प्रदेश आर्थिक बोझ से दबा हुआ है, आंध्र में प्रति व्यक्ति आय कम हुई है। जयदेव गाला ने कहा, 2016 में विशेष पैकेज देने का वादा किया गया था, लेकिन कुछ नहीं मिला। केंद्र सरकार विशेष राज्य का दर्ज देने की बात भी भूल गई। हम आज भी पैकेज का इंतजार कर रहे हैं। इससे पहले बीजू जनता दल (बीजद) के सदस्य अविश्वास प्रस्ताव का बहिष्कार करते हुए सदन से वाकआउट कर गए । सदन में बीजद के 19 सदस्य हैं।
संसद में 'मोदी सरकार के चार साल' पर लोकसभा पर तीन दिन के धारावाहिक की कहानी किसी अच्छे स्क्रिप्ट राइटर ने लिखी। लोकसभा अध्यक्ष ने सदन में पार्टी के सदस्यों की संख्या के आधार हर पार्टी के लिए समय निर्धारित कर दिया। इसमें भाजपा के हिस्से में जहां 3.38 घंटे आये, वहीं प्रमुख विपक्ष कांग्रेस के लिए समय सीमा सिर्फ 38 मिनट थी। नियमानुसार अविश्वास प्रस्ताव के लिए निर्धारित सात घंटे की जगह जब यह चर्चा 12 घंटे की हो चुकी थी। तब लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने घोषणा कि अब पीएम मोदी बोलेंगे, लिहाजा अब जो सदस्य बचे हैं, वह अपनी बात लिखित रुप से दर्ज करवा सकते हैं।
पीएम मोदी ने अपना धारा-प्रवाह भाषण शुरु किया। उन्होंने अपने भाषण में यह साबित करने की कोशिश की कि देश में अस्थिरता के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार रही है। कुर्सी की खातिर कांग्रेस ने चुनी सरकार को अपदस्त किया है। उन्होंने विपक्ष में रहकर कांग्रेस पर अफवाहें फैलाने का गंभीर आरोप भी लगाया। इसके अलावा उन्होंने अपनी सरकार की चार साल की उपलब्धियों के नाम पर देश भर में दिख रहे इश्तहारों के नारों को दोहरा दिया। पीएम मोदी के भाषण के दौरान लगातार नारेबाजी होती रही। एंबिएंस के लिहाज से नारेबाजी की आवाज़ धारावाहिक में चार चांद लगा रही थी।
बहरहाल, संसद में मोदी सरकार के चार साल धारावाहिक के लेखक ने एक दृश्य सोचा नही था। वह था कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भाषण के बाद उभरा दृश्य। धारावाहिक के लेखक को उम्मीद थी कि राहुल के भाषण के दौरान सत्तापक्ष के सदस्य हंगामा करेंगे। हंगामा इतना बढ़ सकता है कि कुछ देर के लिए सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़े। ऐसा हुआ भी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कुछ मिनट के लिए सदन की कार्यवाही राहुल के भाषण के दौरान ही स्थगित की गई। लेकिन भाषण खत्म होते ही राहुल का पीएम मोदी के आसान तक जाना और झूककर गले मिलने का दृश्य अचानक उभरा था। लिहाजा अपने भाषण में पीएम मोदी इस घटना का ज़िक्र करना भी नही भूले। उन्होंने प्रस्ताव का विरोध करने का अनुरोध करने के साथ चर्चा की शुरुआत एक शेर से की, 'न मांझी न रहवर न हक में हवाएं है कश्ती भी जरजर यह कैसा सफर है।'
उन्होंने कहा कि तीस साल बाद बहुमत से चुनी हुई सरकार के खिलाफ अविश्वास क्यों लाया गया? 'यह इसलिए हुआ है कि अहंकार इस प्रकार की प्रवृत्ति करने के लिए खींच कर ले जाता है। मोदी हटाओ। मैं हरान हूं कि आज सुबह भी कि अभी तो चर्चा प्रारंभ हुई थी, जय पराजय का फैसला नहीं हुआ था। जिनको यहां पहुंचने की जल्दी है, वह उठो उठो कर रहे थे। न यहां कोई उठा सकता है न बिठा सकता है। सिर्फ सवा सौ करोड़ जनता कर सकती है। लोकतंत्र में जनता पर भरोसा होना, चाहिए इतनी जल्दबाजी क्या है। पीएम मोदी ने अपने भाषण का अंत कांग्रेस को इस चुनौती के साथ किया कि 2024 में वह फिर अविश्ववास प्रस्ताव लेकर आ सकती है।
पीएम मोदी ने अपने भाषण में मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही की। उन्होंने आंध्र प्रदेश के बंटवारे का ढीकरा कांग्रेस पर फोड़ते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नही दिया जा सकता। लेकिन केंद्र सरकार विशेष आर्थिक पैकज मुहैया करवा चुकी है। भविष्य में भी प्रदेश के साथ सहयोग बनाए रखने के वादे के साथ अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के जबाव की रस्म अदायगी कर दी।
नियम के मुताबिक अविश्ववास प्रस्ताव सरकार का पक्ष रखे जाने के बाद प्रस्तावक को जबाव का मौका मिलता है। लिहाजा इस धारावाहिक में उभरा यह दृश्य भी संभवत: लेखक ने नही लिखा होगा। प्रस्तावक टीडीपी सांसद जयदेव गाला ने व्यवस्था का सवाल उठाते हुए लोकसभा अध्यक्ष से आधे घंटे का समय मांगा। उन्होंने कहा कि कुशल वक्ता पीएम मोदी ने किसी फिल्मी अंदाज में 1 घंटा 45 मिनट तक अपनी बात रखी है। उसके जबाव के लिए उन्हें कम से कम इतना समय तो चाहिए। अध्यक्ष ने उन्हें अपनी बात जल्द खत्म करने के लिए कहा।
संसद में मोदी सरकार के चार साल धारावाहिक का क्लाईमेंक्स सीन था। मत विभाजन। सदन में 543 में से 451 सदस्य मौजूद थे। उसमें से 325 सदस्यों ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का विरोध किया। जबकि प्रस्ताव के पक्ष में 126 मत पड़े। यह आंकड़ा दर्शाने के बाद लोकसभा चैनल पर चल रहे संसद में मोदी सरकार के चार साल धारावाहिक का अंंत हो जाता है।
पीएम मोदी ने संसद में जीत का जश्न मनाना भी शुरु कर दिया। अगले ही दिन उन्होंने चुनाव के लिहाज से सबसे संवेदनशीन उत्तर प्रदेश का दौरा किया। इस दौरे के दौरान शाहजहांपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने संसद के अंदर राहुल गांधी के उनसे गले मिलने की घटना का उपाहस उड़ाया। पीएम मोदी ने बेहतरीन डायलॉग दिया कि जब कारण नही बता पाये तो गले पड़ गये। इसके उलट अगले दिन राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि वह मोदी की नफरत व गुस्से का सामना प्यार और संवेदना से करेंगे। गांधी ने ट्वीट किया, 'संसद में कल की बहस का बिंदु था कि प्रधानमंत्री अपने अफसाने बनाने के लिए हमारे कुछ लोगों के दिलों में घृणा, भय और क्रोध का इस्तेमाल कर रहे हैं। हम यह साबित करने जा रहे हैं कि सभी भारतीयों के दिलों में प्यार और संवेदना ही राष्ट्र निर्माण का तरीका है।'
संसद में चर्चा के दौरान भाजपा शासित राजस्थान के अलवर में एक ओर मॉब लिंचिंग घटना ने सरकार के लिए नया सिर दर्द पैदा कर दिया है। संसद में दूसरे सप्ताह की कार्यवाही शुरु होते ही मॉब लिंचिंग पर सरकार को घेरने का सिलसिला शुरु हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से नया कानून बनने के लिए कह चुकी है। इसके अलावा राज्य सरकारों को ऐसी घटनाओं को सख्ती से रोकने की हिदायत देते हुए भविष्य में सख्त कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। लिहाजा इस सप्ताह संसद में मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर हंगामा बरपा रहने की संभावना है।
मॉनसून सत्र की शुरुआत में पीएम मोदी की अगुवाई में भले ही एनडीए ने अविश्वास प्रस्ताव की बाजी जीत ली हो, लेकिन उसके सामने कई चुनौतियां खड़ी होने जा रही हैं। लोकसभा चुनाव से पहले आये इस अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष ने सरकार की दुखती रगों पर हाथ रखा है। राहुल गांधी ने राफेल डील का मुद्दा उठाकर साफ छवि वाली मोदी सरकार पर सवाल खड़े किये हैं और यह पहली बार था कि जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद में इतना आक्रामक और तथ्यों के साथ भाषण दिया है। वहीं कई विपक्षी दल एक साथ नज़र आये और बैंकिग घोटाला, रोजगार के मुद्दे पर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जिन मुद्दों पर विपक्ष ने सरकार को घेरा है, वो लोकसभा चुनाव में भी एजेंडा होंगे।
मोदी सरकार को परेशान कर सकते हैं ये मुद्दे
विपक्ष संसद में लगातार बेरोजगारी, भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहा है। मोदी सरकार इन दोनों ही मोर्चों पर कुछ खास नहीं कर पाई है। सरकार की ओर से जो भी आंकड़े पेश किये जाते हैं वो हकीकत से कोसों दूर नजर आते हैं। दूसरी ओर राफेल डील और बैंकिंग घोटाले के मुद्दों पर भी मोदी सरकार घिरी हुई नजर आती है। देश में विदेशी सौदों को हमेशा से ही शक की नजर से देखा जाता रहा है क्योंकि कई घोटाले इनसे जुड़कर सामने आ चुके हैं। मोदी सरकार बार बार इस डील को लेकर सफाई दे रही है और फ्रांस सरकार की ओर से भी बयान आया है। लेकिन विपक्ष जनता के बीच जरूर ले जायेगा। दूसरी ओर बैंकिग घोटाले के आरोपी नीरव मोदी, विजय माल्या एनडीए के शासनकाल के समय ही फरार हुये हैं।
संयुक्त विपक्ष की ताकत अविश्वास प्रस्ताव के दौरान
विपक्ष के कई बड़े दल सदन में संयुक्त रूप से मोदी सरकार के सामने खड़े हुये। एसपी, एनसीपी के सदस्यों ने राहुल गांधी को भाषण के दौरान पूरा समर्थन दिया। विरोधी दलों की इसी ताकत को समझते हुये कांग्रेस यूपीए का कुनबा बढ़ाने में जुटी है। गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के लोकसभा उपचुनाव में एकजुटता ने ही भाजपा को हरा दिया था।
बदल गये हैं राहुल गांधी
2014 से अब राहुल गांधी में बड़ा बदलाव आ चुका है। अब वह सीधे पीएम मोदी पर प्रहार करते हैं औक आक्रामक शैली में सवाल-जवाब करते हैं। उनके भाषणों में पहले से ज्यादा पैनापन है और वह गुजरात चुनाव में भी भाजपा के लिये मुश्किल खड़ी कर चुके हैं। अब उनके कई सवालों का भाजपा के पास सीधा कोई जवाब नहीं है फिर चाहे वह बेरोजगारी, बैंकिग घोटाला, गोरक्षा के नाम पर हिंसा जैसे मुद्दे ही क्यों न हों।
शिवसेना ने दिखाये तेवर
कभी भाजपा की सबसे निकट सहयोगी रही शिवसेना अविश्वास प्रस्ताव में वोटिंग से दूर रही। इतना ही नहीं उसने राहुल गांधी के भाषण की तारीफ भी की है। इससे साफ जाहिर है कि महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में शिवसेना इस बार भाजपा के लिये बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है।